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154 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
बाहुबली श्राविकाश्रम-इस में भी दर्शन के लिए मूर्ति है। इस आश्रम में छठी-सातवीं से लेकर अभी उपाधि-कक्षा तक की श्राविकाएँ अध्ययन करती हैं। श्री वीरेन्द्र हेग्गड़े जी की माता श्रीमती रत्नम्मा इसकी अध्यक्षा हैं । यहाँ के मन्दिर में सोलह स्वप्नों का सुन्दर अंकन है। णमोकार-मन्त्र नागरी और कन्नड़ में लिखा है । यह आधुनिक मन्दिर है।
बम्मराज बसदि-मठ से कुछ आगे बम्मराज नामक प्राचीन बसदि है जिसका जीर्णोद्धार हो चका है। मन्दिर छोटा. ढलआ छत वाला और स्तम्भों से युक्त है। यहाँ पार्श्वनाथ की लगभग तीन फुट ऊँची खड्गासन प्रतिमा है जिसकी सर्पकुण्डली घुटनों तक आई है। प्रतिमा के साथ मकर जल उगलते दिखाए गए हैं।
यहीं रामसमुद्र नाम का तालाब है। उसका जल मीठा है और नहाने आदि के उपयुक्त है। इसे यहाँ के रामनाथ राजा ने बनवाया था।
ऊपर वणित मन्दिर आदि एक प्रकार से मठ-क्षेत्र है। इसी में गोमटेश धर्मशाला भी है जिसके तीन अलग-अलग खण्ड हैं। इस क्षेत्र की सड़क मठ-रोड या दानशाला-रोड कहलाती है।
चतुर्मुख बसदि के अर्चक पुजारी श्री नाभिराजेन्द्र का निवास भी पास ही में है। उनके घर में भी एक चैत्यालय है जिसमें पार्श्वनाथ और पद्मावती की प्रतिमाएँ हैं।
श्रवण बसदि-मठ के ठीक सामने की सड़क से हम श्रवण बसदि या चन्द्रनाथ बसदि पहुँचते हैं। इसका निर्माण 1604 ई. में हुआ था । यह मन्दिर हुमचा-मठ के अधीन है। इसके मूलनायक चन्द्रप्रभ हैं जिनकी लगभग चार फुट ऊँची प्राचीन प्रतिमा छत्रत्रयी, मकर-तोरण से युक्त है एवं कमलासन पर विराजमान है। कमलासन पर कन्नड़ में लेख है । यक्षी ज्वालामालिनी की मूर्ति भी यहाँ है। मन्दिर के स्तम्भों पर पूर्णकुम्भ का अंकन है। प्रवेशद्वार के सिरदल पर पद्मासन तीर्थंकर और उससे भी ऊपर एक वेदी में पद्मासन मूर्ति है। पूरा मन्दिर मोटे-मोटे पाषाण-स्तम्भों से निर्मित है। उसका मुखमण्डप या सामने का बरामदा तीनों ओर से खुला है, उत्कीणित स्तम्भों पर आधारित तथा ढलुआ छत से आच्छादित है। इस स्थान की मूर्ति उसी नेल्लिकर (Nellikar) पाषाण की बनी हुई है जिससे चतुर्मुख बसदि की मूर्तियाँ बनी
हैं।
केरे बसदि या चतुर्मुख बसदि-कन्नड़ भाषा में केरे का अर्थ तालाब होता है। यह मन्दिर 300 वर्ष प्राचीन बताया जाता है। यह एक बड़े तालाब में बना है। तालाब गर्मियों में सूख जाता है । उस तक जाने के लिए मुख्य सड़क से ही एक ऊँचा रास्ता है।
इसमें सोपान-जंगला भी है। __बसदि का अहाता बड़ा है। द्वार की चौखट पाषाण-निर्मित है। गर्भगृह लाल मटीले पत्थर का बना है। गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा-पथ है। पश्चिम में ऊँचे चबूतरे पर एक शिलालेख भी है। इस बसदि में कुल 20 स्तम्भ हैं। चारों ओर खुला बरामदा है । मन्दिर जीर्णोद्धार की अपेक्षा रखता है। गोल वेदी पर चार तीर्थंकर-मूर्तियाँ इस प्रकार हैं-पूर्व में आदिनाथ, दक्षिण में चन्द्रप्रभ, पश्चिम में शान्तिनाथ और उत्तर में वर्धमान। मतियों पर छत्रत्रयी और यक्ष-यक्षी भी हैं। शिखर नहीं है।
अरमने बसदि-अरमने का अर्थ है राजमहल । इस बसदि के सामने जैन राजा का