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कारकल / 155 महल था । नागरी, कन्नड़ और अंग्रेजी में श्री आदिनाथ मन्दिर लिखा है। द्वार पर एक हाथी का चित्र बना है। मन्दिर सामने से एक साधारण मकान-जैसा लगता है। इसका अहाता बड़ा है। उसके सामने एक खुला बरामदा है । मन्दिर की दीवाले विशेष लाल पत्थर की बनी हैं। लकड़ी का पुराने ढंग का, पीतल-मढ़ा दरवाजा है। मन्दिर में लकड़ी के ही स्तम्भ हैं और छत भी लकड़ी की है। छत ढलुआ है। चारों ओर प्रदक्षिणा-पथ है। बसदि में महावीर स्वामी की संगमरमर की मूर्ति है। आदिनाथ एवं अन्य तीर्थंकरों की भी मूर्तियाँ हैं । शिखर नहीं है। यक्ष-यक्षी पीतल के हैं तथा मकर-तोरण एवं कीर्तिमुख से संयुक्त हैं।
व्यन्तर-स्तम्भ-उक्त मन्दिर के दाहिनी ओर पाषाण का एक छोटा स्तम्भ है। बताया जाता है कि उस पर 'कलकुडा' नामक व्यन्तर का वास है। महामस्तकाभिषेक से पहले और हर माह संक्रान्ति में पूजन की जाती है ताकि कार्य निर्विघ्न समाप्त होते रहें । इसी स्तम्भ के पास लाल चम्पा फूल का एक पेड़ है जो 300 वर्ष पुराना बताया जाता है । अब इस ज़मीन पर जैन हाईस्कूल बन रहा है।
नेमिनाथ बसदि-कारकल से बिल्कुल लगा हुआ हिरयंगडी गाँव है। यहीं सड़क मन्दिरों तक जाकर समाप्त हो जाती है। आगे पहाड़ी आ गई है। इस छोटे से क्षेत्र में प्राचीन नेमिनाथ बसदि और प्रसिद्ध मानस्तम्भ है।
__ अब्बगदेवी बसदि या आदिनाथ बसदि-यह नाम नागरी में भी लिखा है। इसे रानी अब्बग ने बनवाया था। यह लगभग 300 वर्ष पुराना छोटा-सा मन्दिर है जिसका जीर्णोद्धार भी हो चुका है। इसमें मूलनायक आदिनाथ को लगभग तीन फुट ऊँची काले पाषाण की प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में है। उसके घुटनों का नवीन चित्रण ध्यान देने योग्य है। पीछे पीतल का फलक है। यहीं सामने के दूसरे कक्ष में पीतल की प्रतिमाएँ हैं। इसके स्तम्भ पाषाण के हैं। प्रदक्षिणा-पथ भी है। छत्र टाइल्स की है।
उपर्यवत मन्दिर के पास लगभग 15 फुट चौड़ा एक छोटा मन्दिर है। उसकी छत भी टाइल्स की है। अहाता अवश्य कुछ बडा है। यहाँ सुचनापट लगा है-श्री कर्नाटक जैन परोहित संघ' । मन्दिर के सामने पीपल का एक पेड़ है जहाँ नागफलक है । मन्दिर में दो तल वाली पीतल की वेदी है। उस पर संगमरमर की महावीर स्वामी की प्रतिमा है। पीतल का भामण्डल भी है। नीचे ब्रह्मयक्ष है। सर्वाह्न यक्ष के मस्तक के ऊपर धर्मचक्र है । पीतल का ही एक नन्दीश्वर द्वीप भी है। आसपास लकड़ी का घेरा और प्रदक्षिणा-पथ है।
गम्मतिकारी बसदि या पार्श्वनाथ बसदि-यह भी एक छोटा मन्दिर है । यह कुछ जीर्ण अवस्था में है। इसमें नेल्लिकेरे पाषाण की ही, लगभग चार फुट ऊँची पार्श्वनाथ की मूर्ति कायोत्सर्ग मुद्रा में है । पादमूल में यक्ष-यक्षी हैं । सर्पकुण्डली घुटनों तक प्रदर्शित है । मन्दिर की छत ढलुआ और पाषाण-निर्मित है।
साठ फुट ऊँचा मनोहर मानस्तम्भ-उपर्युक्त मन्दिर से सड़क के अन्त में एक बहुत ऊँचा मानस्तम्भ दिखाई देता है। यह पुरातत्त्व विभाग के संरक्षण में है । एक ही शिला से निर्मित यह मानस्तम्भ लगभग 60 फुट ऊँचा बताया जाता है। इसका निर्माण 1553 ई. में हुआ था । यह तीस मील दूर, बारकुर से लाया गया था। अनुश्रुति है कि इसे लाते समय राजा से यह बात