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वेणूर | 177 का निर्माण कार्य प्रारम्भ किया था। जब यह समाचार कारकल के तत्कालीन शासक राजा इम्मडि भैरवराय को मिला तो उसने विचार किया कि उसके पूर्वज राजा वीर पाण्ड्य ने कारकल में 42 फुट ऊँची बाहुबली मूर्ति प्रतिष्ठापित की है। अगर वेणर में भी इससे ऊँची या भव्य बाहुबली मति बन गई तो उसके पूर्वज और और कारकल की मूर्ति की प्रसिद्धि में कमी आएगी। इसलिए उसने तिम्मराज को संदेश भेजा कि वेणूर में बाहुबली मूर्ति स्थापित नहीं की जाए और मूर्ति को कारकल भेज दिया जाए। तिम्मराज को कारकल-नरेश की यह बात सहन नहीं हई। उसने कहला भेजा कि कैसी भी विपत्ति क्यों न आए, बाहुबली की मूर्ति वेणूर में ही प्रतिष्ठित की जाएगी। यह समाचार पाकर भैरवराय अत्यन्त अप्रसन्न हुआ और उसने अजिल राज्य की सीमा पर अपनी सेना भेजकर वेणूर राज्य पर आक्रमण कर दिया। इस विपत्ति का समाचार पाकर वेणूर-नरेश ने बाहुबली की मूर्ति को यहाँ की फल्गुणी नदी के किनारे रेती में रातोंरात छिपा दिया ताकि हार जाने पर भी गोमटेश की मूर्ति कारकल के राजा के हाथ न लगे। उसके बाद तिम्मराज ने अपने सेनापति को कारकल-नरेश की सेना से युद्ध करने के लिए अपनी सीमा पर भेजा। दोनों सेनाओं में युद्ध हुआ और कारकल-नरेश उसमें हार गया। तब कहीं जाकर 1604 ई. में वर्तमान मति वेणर में स्थापित हो सकी।
तीस वर्ष बाद, मस्तकाभिषेक के समय फिर युद्ध-तिम्मराज के बाद उसकी भानजी मधुरिकादेवी ने 1610 से 1647 तक वेणूर में शासन किया। उसने लगभग 1634 ई. में भुजबली के महामस्तकाभिषेक का आयोजन किया। उस समय भी तत्कालीन कारकलनरेश ने इस समारोह का विरोध किया और वेणूर पर आक्रमण कर दिया। रानी मधुरिका ने कुशलनीति अपनाई और कारकल के राजा को कुछ गाँव भेंट में देकर वापस लौटा दिया। इस प्रकार यह मूर्ति दो बार ईर्ष्या और उसके परिणामस्वरूप युद्ध का कारण बनी। ___आधुनिक वेणूर में कुल आठ मन्दिर हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं-(1) भुजबली (बाहुबली) मन्दिर, (2) अक्कंगल मन्दिर, (3) बिन्नाणि मन्दिर, (4) पार्श्वनाथ मन्दिर, (5) शान्तिनाथ मन्दिर, (6) वर्धमान मन्दिर, (7) तीर्थंकर मन्दिर तथा (8) ऋषभनाथ मन्दिर । मन्दिर क्र. 1 से 4 का परिचय ऊपर दिया जा चका है। शेष चार मन्दिरों का संक्षिप्त परिचय निम्नप्रकार है। ये सभी मन्दिर पास-पास हैं। बाहुबली-प्रांगण के पास ही स्थानीय मठ का कार्यालय भी है। ऊपर दिए गए क्र. 5 से 8 तक के मन्दिर गाँव के पास हैं।
कल्लुबसदि या शान्तिनाथ स्वामी मन्दिर-चूंकि यह बसदि पाषाण (कल्लु =पाषाण निर्मित) है इसलिए यह मन्दिर कल्लु बसदि भी कहलाता है। वैसे इसकी प्रसिद्धि शान्तिनाथ स्वामी मन्दिर के रूप में है। आकार में बड़ा होने से यह बड़ा मन्दिर भी कहलाता है। 1490 ई. के लगभग जैन, शासक तिम्मराज के पूर्वज ने इसका निर्माण कराया था। यह लाल पत्थर का बना है और तिमंज़ला है। इसमें नीचे की मंज़िल के मन्दिर के मूलनायक शान्तिनाथ हैं जिनकी काले पाषाण की लगभग पाँच फुट ऊँची भव्य मूर्ति है । शान्तिनाथ के विग्रह (मूर्ति) के साथ ही उनके यक्ष गरुड़ और यक्षी महामानसी भी उसी शिला में उत्कीर्ण किए गए हैं । मूर्ति की कमर से उपर जो प्रभावली है उसमें अष्ट प्रातिहार्यों (1. अशोक वृक्ष, 2. पुष्पवृष्टि, 3. दिव्यध्वनि, 4. चँवर, 5. सिंहासन, 6. प्रभामण्डल, 7. दुंदुभि और 8. छत्रत्रयी) का सुन्दर और आकर्षक