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184 | भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
धर्मस्थल [धर्मो का अपूर्व संगम]
कर्नाटक के किसी भी कोने में यदि आप किसी भी धर्म के अनुयायी से यह पूछे कि क्या वह धर्मस्थल (Dharmasthal) के बारे में जानता है तो उत्तर मिलेगा, “क्यों नहीं, वह तो एक अपूर्व तीर्थस्थल है !" कर्नाटक के लगभग हर स्थान से बसों से जुड़ा जैन और जैनेतर जनता का यह तीर्थस्थान सभी धर्मों का अपूर्व संगम है। यहाँ लगभग पाँच हजार तीर्थयात्री प्रतिदिन आते हैं और स्नानागारयुक्त कमरों वाली आधुनिक धर्मशालाओं में निःशुल्क ठहरने के अतिरिक्त निःशुल्क भोजन भी पाते हैं। सर्वधर्म-सहिष्णुता का लगभग पिछले पांच सौ वर्षों से प्रसिद्ध यह क्षेत्र न केवल धार्मिक क्षेत्र में, अपितु सांस्कृतिक, साहित्यिक और शैक्षिक क्षेत्र में, अपने अपूर्व सहयोग एवं दीन-दुखियों के प्रति सेवा-भाव तथा सहायता के कारण कर्नाटक से बाहर भी, कीर्ति अर्जित कर चुका है। सन् 1982 ई. में यहाँ भगवान बाहुबली की विशाल एवं सुन्दर मूर्ति की प्रतिष्ठा हो जाने से भी यह जैनों के लिए एक प्रमुख धर्मतीर्थ बन गया है । यही कारण है कि यहाँ के धर्माधिकारी वीरेन्द्र हेग्गड़े जी 'अभिनव चामुण्डराय' के नाम से प्रसिद्ध हो गए हैं।
अवस्थिति एवं मार्ग
धर्मस्थल मंगलोर (दक्षिण कन्नड़) जिले के बेलटंगडि तालुक में स्थित है। मंगलोर से यहाँ की दूरी 75 कि. मी. है। मंगलोर से बंटवल तक राष्ट्रीय राजमार्ग क्र. 48 है। वहाँ से राज्य सरकार का राजमार्ग क्र. 64 लेना होता है। राजमार्ग बंटवल से गुरुवायनकेरे, वहाँ से बेलटंगडि और उजिरे (Ujire) तक तय करने के बाद, धर्मस्थल के लिए सड़क मुड़ती है। पूरा मार्ग सुविधाजनक एवं व्यस्त है। यह मंगलोर-चिकमंगलूर मार्ग भी कहलाता है। मडबिद्री से आने वालों को वेणर (20 कि. मी.), वहाँ से गुरुवायनकेरे (15 कि. मी.), और वहाँ से धर्मस्थल (17 कि. मी.) आना चाहिए । गुरुवायनकेरे से नगर-सेवा की तरह हर समय बसें मिलती रहती हैं । श्रवणबेलगोल की ओर से आने वाले यात्री हासन (135 कि. मी.) से या बेलूर (मूडिगेरे होते हुए, चारमाडि घाट बीच में आता है) से यहाँ पहुँच सकते हैं । यहाँ से बंगलोर 349 कि. मी. है।
धर्मस्थल की कुल आबादी 6000 के लगभग है किन्तु यहाँ यात्रियों, बसों (सरकारी, गैर-सरकारी) और अन्य वाहनों का मेला लगा रहता है। कभी-कभी तो यात्रियों की संख्या दस हजार और उससे भी अधिक पहुँच जाती है। सोमवार को, मंजुनाथ की विशेष पूजा के समय, यहाँ आठ-दस हजार यात्री होते हैं । मेले के समय यह संख्या चालीस हजार तक पहुँचती है।
___ मंगलोर की ओर से (गुरुवायनकेरे होते हुए) यहाँ आने पर, धर्मस्थल से दो कि. मी. पहले, 'नेत्रावती' नदी पड़ती है जो कि मंगलोर में अरब सागर में मिलती है। श्रद्धालु इसके