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164 / भारत में दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
प्रतिमा, गुरुबसदि में) तक ऊँची प्रतिमाएँ विभिन्न मन्दिरों में हैं। कुछ लघु प्रतिमाओं का आकार यहाँ दिया जा रहा है । बाहुबली (धातु, चार इंच), अनन्तनाथ (पाषाण, पाँच इंच), पद्मप्रभ (पाषाण, तीन इंच), नेमिनाथ (पाषाण, छह इंच), महावीर (पंचधातु, ढाई इंच), खड्गासन तीर्थंकर महावीर (चन्दन, दो इंच), खड्गासन चन्द्रनाथ (ढाई इंच), पाश्वनाथ (पाषाण, छह इंच), चौबीसी (पन्द्रह इंच), सर्वतोभद्रिका (आठ इंच), पद्मासन पार्श्वनाथ और गुरुबसदि में ताड़पत्र की जिन-प्रतिमा आदि (नौ इंच), सरस्वती (धातु, नौ इंच), ज्वालामालिनी (धातु, छह इंच), कूष्माण्डिनी (बारह इंच) तथा काले पाषाण का मानस्तम्भ (चौबीस इंच) आदि।
यहाँ पकी मिट्टी (clay, लेप्पद बसदि में चार फीट ऊँची मूर्ति) तथा विभिन्न प्रकार के पाषाण, कांस्य, पीतल, पंचधातु, अमृतशिला, स्फटिक आदि रत्नों की विभिन्न आकारों की प्रतिमाएँ भी हैं । होस मन्दिर में तो पंचधातु की आठ फीट ऊँची चन्द्रप्रभ की एक बहुत ही मनोज्ञ प्रतिमा है।
होस बसदि या त्रिभुवनतिलकचूडामणि मन्दिर या चन्द्रनाथ-मन्दिर-यह बसदि (देखें चित्र क्र. 70) उपर्युक्त शोध संस्थान से आगे और मठ के बिल्कुल पास में है । एक हज़ार स्तम्भों वाले इस सुन्दर और विशाल मन्दिर का निर्माण, यहाँ के शिलालेख तथा चन्द्रप्रभ के विग्रह (यहाँ व इस प्रदेश में अन्यत्र मूर्ति को 'विग्रह' शिलालेख को 'शासन' कहते हैं) के पादपीठ में अंकित लेख के अनुसार, मंगलूर राज्य के अन्तर्गत नागमण्डल के देशराज ओडेयर के राज्यकाल में 29 जनवरी, 1430 ई. गुरुवार को मूडबिद्री के श्रावकों ने देबराज की आज्ञा से तथा यहाँ के मठ के भट्टारक श्रीमद् अभिनव चारुकीर्ति पण्डिताचार्य के आदेश से कराया था। एक अन्य शासन के अनुसार, इस मन्दिर का नमस्कार-मण्डप यहाँ के श्रावकों ने 1451 ई. में बनवाया था। इस बसदि के सुप्रसिद्ध भैरादेवी-मण्डप का निर्माण भैरादेवी ने 1462 ई. में कराया था। उसी समय चित्रादेवी ने चित्रामण्डप का भी निर्माण कराया था।
उपर्युक्त बसदि (मन्दिर) में गोपुरद्वार मण्डप, भैरादेवी मण्डप, चित्रादेवी मण्डप, नमस्कार मण्डप, तीर्थंकर मण्डप, लक्ष्मी मण्डप (गन्धकुटी) तथा गर्भगृह (मण्डप)-इस प्रकार कुल छह मण्डप हैं जो एक-दूसरे से तथा गर्भगृह से जुड़े हुए हैं और मन्दिर को विशाल आकार प्रदान करते हैं, साथ ही, उसे अपने सुन्दर और कलापूर्ण स्तम्भों के कारण भव्यता प्रदान करते हैं।
चित्रादेवी, भैरादेवी, लक्ष्मीदेवी उन जैन महिलाओं के नाम हैं जिनके नाम पर ये मण्डप बने। इस मन्दिर की तीसरी मंजिल की छत पर ताँबे का आवरण गेरुसोप्पा के महामण्डलेश्वर भैरवराज ने वीरसेन मुनि की आज्ञा से पन्द्रहवीं शताब्दी में चढ़वाया था। बसदि के सामने लगभग 50 फीट ऊँचा एक मानस्तम्भ है। उसका निर्माण 1462 ई. में भैरवराज की रानी नागलदेवी ने कराया था।
मन्दिर में विभिन्न मण्डपों के निर्माण की विभिन्न अवधियों को देखते हुए यह निष्कर्ष निकलता है कि इस मन्दिर में संवर्धन (addition) होते रहे हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि