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मूडबिद्री | 163
विशेषकर रात्रि के समय रंग-बिरंगे बल्बों से प्रकाशित दिखाई देता है।
बताया जाता है कि मैसूर प्रदेश के समीपस्थ द्वारसमुद्र (आधुनिक हलेबिड) का जैन राजा विष्णुवर्धन जब वैष्णव हो गया (कुछ इतिहासकारों के मत से, वह वैष्णव नहीं हुआ, जैन ही रहा आया) तब उसने जैनों पर अत्याचार किए । सम्भव है, बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी में जैनों पर अत्याचार हुए हों। कहा जाता है कि तत्कालीन परिस्थितियों में श्रवणबेलगोल पर भी आँच आई । वहाँ के मठ के भट्टारक चारुकीर्तिजी मठ में सुरक्षित ताडपत्रीय शास्त्रों आदि को सुरक्षा के लिए चिन्तित हो उठे। भ्रमण करते हुए वे मूडबिद्री आये और उन्होंने यहाँ पर जैन मठ की स्थापना करने का निश्चय किया। यह कार्य सन् 1220 ई. में सम्पन्न हुआ। श्रवणबेलगोल तथा बंकापुर से धवल, जयधवल आदि ताड़पत्रों पर लिखे एवं चित्रित मूल्यवान ग्रन्थों आदि को यहाँ सुरक्षित रखा गया। तभी से यह मठ श्रवणबेलगोल के जैन मठ की एक शाखा माना जाता है और यहाँ के भट्टारक भी चारुकीति कहलाते हैं। वर्तमान भट्टारकजी का भी नाम स्वस्तश्री पण्डिताचार्य चारुकीति भट्टारक है। उनका पट्टाभिषेक 1976 ई. में हुआ था। भट्टारकजी का निवास-स्थान भी इसी मठ में है। मठ का भवन काफी पुराना लगता है। उसमें लकड़ी के मोटे-मोटे स्तम्भ हैं और लकड़ी की ही छत है।
____ मठद (मठ की) बसदि-इसमें काले पाषाण की डेढ़ फीट ऊँची तीर्थंकर पार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग मूर्ति है। यहीं पर पूजन आदि, जिनमें आरती भी सम्मिलित है, एवं अन्य विधान सपन्न होते हैं। यहाँ की दीवाल पर भरत-बाहुबली के मिलन का सुन्दर चित्र भी बना है। रात्रि को रंग-बिरंगे प्रकाश की छटा होती है।
____ मठ में प्रबन्धक का कार्यालय भी है। भट्टारकजी की स्वीकृति से ताड़पत्र पर लिखे दुर्लभ ग्रन्थों और दुर्लभ प्रतिमाओं के विशेष दर्शन की भी व्यवस्था है। इसे 'सिद्धान्त-दर्शन' कहते हैं।
मडबिद्री में ठहरने के लिए तीन स्थान हैं। 1. स्व० साहू शान्तिप्रसादजी द्वारा स्थापित रमारानी जैन शोध संस्थान में चार फ्लैट हैं। सभी सुविधाओं से युक्त ये फ्लैट विद्वानों, विशिष्ट व्यक्तियों, अनुसंधान-कर्ताओं के लिए हैं । 2. संस्थान के सामने पार्श्वकीति गेस्टहाउस है। इसमें नीचे दो और ऊपर पाँच-इस प्रकार सात बड़े कमरे स्नानागार सहित हैं।
और भी कमरे बनवाने की योजना है। 3. पुरानी धर्मशाला (मठ से कुछ दूरी पर)। इसकी हालत अच्छी नहीं है । धर्मशाला के जीर्णोद्धार के लिए मठ प्रयत्नशील है। ____ मठ में टेलीफोन की भी व्यवस्था है।
रमारानी जैन शोध संस्थान—यह मठ के अहाते में ही है। इसे स्व. साहू शान्ति प्रसादजी जैन ने अपनी धर्मपरायणा पत्नी रमारानी के नाम पर उनकी स्मृति में बनवाया था। यहाँ विभिन्न ग्रन्थों की लगभग चार हजार पाण्डुलिपियाँ हैं। अनुसंधानकर्ताओं के लिए यह एक विशिष्ट केन्द्र है। विशेष आकर्षण है उन ग्रन्थों का जो कि ताड़पत्रों पर लिखे हुए हैं।
मूडबिद्री के मन्दिरों का परिचय देने से पहले यहाँ की मूर्तियों की विशेषता के बारे में जान लेना उपयुक्त होगा। मूडबिद्री विभिन्न धातु आदि पदार्थों और विभिन्न ऊँचाइयों की जैन मूर्तियों का एक अद्भुत संग्रहालय है । यहाँ आधे अंगुल से लेकर नौ फीट (पार्श्वनाथ