________________
- 152 | भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
एक समय ऐसा भी आया जब गोम्मटेश की मूर्ति का पूजन बन्द हो गया। तब तत्कालीन भट्टारक ललितकीर्ति जी ने उस समय के शासक दावणि इम्मडि देवराय को इसका बोध कराया। इस राजा ने सन 1646 की 16 फरवरी सोमवार को इस मति का महामस्तकाभिषेक कराया। उपर्युक्त कन्नड़ कवि ने इसे देखा था और उसका वर्णन किया है। अभिषेक से पहले पूजनादि का कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। राजा ने लोगों के ठहरने के लिए पाण्ड्यपुरी (वर्तमान हिरियंगडी गाँव जो कारकल से लगा हुआ है ) में 60 दानशालाओं (धर्मशालाओं) का निर्माण कराया था। पूजोत्सव में शामिल होने वालों के लिए 12 भण्डारों में अनाज आदि का संग्रह किया गया था। मचान बनाने के लिए पाँच हजार लोग पेड़ (बल्लियाँ) लाये थे । इस काम में उन्हें दो माह लगे थे। मूडबिद्री, केलदि आदि की जनता और शासकों ने कपड़ा, घी आदि पदार्थों का उदार दान दिया था । पूजा और अभिषेक-कार्य इस प्रकार सम्पन्न हुआ। पहले दिन हिरियंगडी के नेमिनाथ का पूजन हआ। दूसरे दिन इन्द्रप्रतिष्ठा हई। सर्वाह्न यक्ष की शोभायात्रा भी निकली। रात्रि को नांदी मंगल-विधि सम्पन्न हई। तीसरे दिन बीजारोपण के लिए शुद्ध मिट्टी का संग्रह किया गया। सोने की थालियों में 18 प्रकार का धान बोया गया। इसके पश्चात सर्वोषधि शद्ध जल 12 कलशों में भरा गया। इस जल से मति शद्धि की क्रिया संपन्न हुई । युवराज बाहुबली के राज्याभिषेक के बाद, वैराग्य विधि सम्पन्न हुई। उनके योगिराज होने का उत्सव मनाया गया। उनका केवलज्ञानोत्सव भी हुआ, और उसके बाद महामस्तका. भिषेक।
महामस्तकाभिषेक के समय 32 दण्डों के मण्डप में 1008 कुम्भों को सुनियोजित ढंग से रखा गया। उनके नीचे घास फैलाया गया। बाजे-गाजे के साथ सौभाग्यवती स्त्रियाँ 1008 कलशों में जल लायीं। इस जल से गोम्मटेश की भजाओं और मस्तक पर जल-अभिषेक किया गया। उसके बाद दूध के समान सफेद नारियल के पानी से अभिषेक संपन्न किया गया। इसमें एक लाख नारियलों का पानी काम में लाया गया था। तत्पश्चात केले के पके फलों, गड और चीनी से भरे तीन सौ घड़ों, घी के 108 कलशों और दूध-दही से अभिषेक सम्पन्न हुआ। फिर चावल के आटे और हल्दी के चूर्ग से अभिषेक हुआ। चावल के आटे से अभिषेक के समय प्रतिमा चाँदी जैसी और हल्दी से अभिषेक के समय सोने जैसी लगती थी। इनके बाद कुमकूम, केशर, कपूर, चन्दन से अभिषेक हुआ। फिर सुगंधित फूलों की वर्षा और शान्ति-पूजन नवग्रह-शान्ति-विधान भी किया गया। संघपूजा, भट्टारक-पादप्रक्षालन, वसंतोत्सव के साथ महामस्तकाभिषेक पूर्ण हुआ।
___ अब यह महामस्तकाभिषेक बारह वर्ष में एक बार सम्पन्न होता है और प्रतिवर्ष माघ मास में रथोत्सव आयोजित किया जाता है।
___ काव्य-रचनाओं, स्तुतियों आदि में बाहुबली को गुम्मट, गोम्मट, गोम्मटेश, गोमटजिन, गोम्मटेश्वर जिन, गोम्मट जिनेन्द्र, गोम्मटदेव कहा गया है।
गोम्मटेश-मूर्ति-जिस चिक्कबेट्ट (छोटी पहाड़ी) पर यह मूर्ति स्थापित है, वह जमीन से लगभग 300 फुट ऊँची है। उस पर जाने के लिए शिला को ही काट-काटकर 182 पुरानी सीढ़ियाँ और 30 नई सीढ़ियाँ बनी हुई हैं । पहाड़ी इतनी ऊँची है कि मूर्ति के दर्शन दूर से ही होते हैं, यहाँ तक कि मूडबिद्री की ओर जाने वाली बस में से ही मूर्ति का कुछ भाग दिखाई दे