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वरंग | 143
मठ का कोई अलग भवन नहीं है अपितु चन्द्रनाथ मन्दिर के बाहरी बरामदे में ही कामचलाऊ कार्यालय है जिसका कार्य यहाँ पास में ही रहनेवाला अर्चक परिवार देखता है।
चन्द्रनाथ मन्दिर-सामने से देखने पर यह एक साधारण-सा मकान लगता है। उसके गर्भगृह पर छोटा कलश है और कवेलू की छत है । मन्दिर में प्रवेश से पहले एक चौक आता है जिसके चारों ओर खुली दालान या बरामदा है। इस खुले स्थान में यात्रियों को भी ठहरा दिया जाता है, अलग से कमरे नहीं हैं। भवन का प्रवेशद्वार लकड़ी का है और उस पर मकरतोरण, बेल आदि उत्कीर्ण हैं । सिरदल पर पद्मासन पार्श्वनाथ दो चँवरधारियों सहित प्रदर्शित हैं। नीचे यक्ष-यक्षी एवं दोनों ओर दो द्वारपाल हैं । गर्भगृह के प्रवेशद्वार पर भी शृंखला की डिजाइन का सुन्दर उत्कीर्णन है । बसदि में डेढ़-दो फुट मोटे लकड़ी के स्तम्भों का प्रयोग हुआ है । इन पर भी सुन्दर उत्कीर्णन है। कड़ी (बोम्स) पर व्याल अंकित किए गए हैं। छोटे-से गर्भगृह के तीन छोटे-छोटे खण्ड हैं । अन्तिम खण्ड में मूलनायक चन्द्रनाथ की एक फुट ऊँची कायोत्सर्ग मूर्ति है। यह प्रतिमा चन्द्रशिला से निर्मित है। मूर्ति के पीछे से प्रकाश करने पर रोशनी मूर्ति के आरपार दिखाई देती है । मूर्ति के पीछे मकर-तोरण और कीर्तिमुखयुक्त पीतल का फलक है। अन्य कांस्य तीर्थंकर प्रतिमाएँ भी हैं। प्रतिमाओं से आगे वाले खण्ड में पद्मावती देवी की मूर्ति है। उससे आगे का खण्ड खाली है। गर्भगृह से आगे सभामण्डप या बड़ा हॉल है। उसके बाद चौक ।
चतुर्मुख बसदि-उपर्युक्त मन्दिर के पास, सामने ही दिखाई देनेवाली एक छोटी हरीभरी पहाड़ी की तलहटी में एक सरोवर है । इसी में 'केरे-बसदि' या 'जलमन्दिर' या 'चतुर्मुख बसदि' है (चित्र क्र. 64)। कन्नड़ में केरे का अर्थ होता है तालाब । जब इसमें पानी भरा होता है और कमल के फूल खिले होते हैं तब यह पावापुरी जैसा दृश्य उपरस्थित करता है। ऐसे समय में दर्शन के लिए नाव द्वारा जाना होता है। नाव की व्यवस्था क्षेत्र द्वारा की जाती है। यह सरोवर 13 एकड़ में है। कभी-कभी इस सरोवर का पानी सूख भी जाता है।
'केरे बसदि' एक साधारण नक्काशी रहित पाषाण-मन्दिर है। वह ऊँचे चबूतरे पर स्थित है। उस तक जाने के लिए सरोवर के चारों ओर सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। मन्दिर के बाहर चारों ओर खुला चबूतरा है। उसी में लगभग तीन फुट चौड़ा एक कुआँ भी है जिसमें से अभिषेक का जल लिया जाता है। बाहर एक नागफलक भी है । मन्दिर बारह कोण का है। चार त्रिकोणों के रूप में शिखर है । शिखर ताँबे से आवृत है । बस दि चतुर्मुख है । उसका निर्माण इस प्रकार हआ है कि मति हर दिशा से दिखाई देती है। मन्दिर में चार तीर्थंकरों की मर्तियाँ एक ही गोल वेदी पर स्थापित हैं । अन्दर जो प्रदक्षिणा-पथ है वह सँकरा है, मुश्किल से दो फुट चौड़ा होगा। पाषाण-मूर्तियाँ लगभग साढ़े तीन फुट ऊँची कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं।
बसदि के प्रवेशद्वारों पर नागरी में नमस्कार लिखा है । एक द्वार के जिस सिरदल पर 'भगवान पार्श्वतीर्थंकराय धरणेद्रयक्ष-पद्मावतीयक्षीसहिताय नमः' लिखा है उस दिशा में मकर-तोरण और चँवर सहित सात फणों से युक्त पार्श्वनाथ की मूर्ति है। नीचे धरणेन्द्र और पद्मावती हैं। दूसरी दिशा में 'भगवान नेमि तीर्थंकराय सर्वाह्न-यक्ष कूष्मांडिनी-यक्षी सहिताय नमः' लिखा है। उस ओर नेमिनाथ की यक्ष-यक्षी सहित मूर्ति है (देखें चित्र क्र. 65) । अलंकरण पूर्ववत् है । तीसरी दिशा में, 'भगवान अनन्त तीर्थंकराय पाताल यक्ष अनन्तमति यक्षी सहिताय