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शृंगेरी | 139
एक आश्रम अथवा तपोभूमि के रूप में प्रसिद्ध था । यह एक पवित्र स्थान था जिस पर ऋष्यशृंग के पिता विभाण्डक जैसे ऋषि-मुनियों के चरणों की धूल पड़ी थी। जैनों ने भी अपनी साधना के लिए इसे आदर्श स्थान माना था। सच पूछा जाये तो शृंगेरी जैनधर्म का एक गढ़ ही था। बल्कि इसी कारण शंकर को वहाँ अपना अद्वैत-केन्द्र स्थापित करने के लिए प्रेरणा मिली। शंकर ने दूर-दूर तक की यात्रा की थी और प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा पवित्रीकृत स्थान उन्होंने कितने ही देखे होंगे। तुंग के ही तट पर मत्तू, तीर्थहल्लि और शिवमोग्गा जैसे अनेक पवित्र स्थान मौजूद हैं । इस दृष्टि से इस नदी का स्थान गंगा के बाद ही आता है । बहुत करके शंकर ने यही चाहा होगा कि उनका प्रथम आध्यात्मिक केन्द्र जैनों के किसी गढ़ में ही स्थापित किया जाये । दक्षिण में अपने आध्यात्मिक अभियान पर घूमते हुए उन्होंने आंशिक रूप में जैनधर्म को अपनी धर्मविजय का लक्ष्य बनाया था । जैन तथा बौद्ध धर्म शंकराचार्य के इस आध्यात्मिक आक्रमण के आगे ठहर नहीं पाये।"
___"सुविख्यात श्री 'शारदा मन्दिर' के प्रांगण में लगभग 18 मीटर ऊँचा एक एकाश्म स्तम्भ खड़ा है । यह जैन परम्परा वाला मानस्तम्भ ही है। स्तम्भ के दक्षिण मुख पर एक जैन मूर्ति खुदी हुई है। इससे सिद्ध है कि यह न तो कोई गरुड़ 'कम्बा' है और न ही रूढ हिन्दू मन्दिर वास्तुकला का कोई ध्वजस्तम्भ ही।" - "जैनों के गढ़ के पतन के बाद जैनों के स्थान उजड़कर जीर्ण-शीर्ण स्थिति को पहुँच गये। अभी भी लगभग वहाँ एक दर्जन जैन बसदियाँ देखने को मिलती हैं । इस क्षेत्र से एकत्र की गयी कई जैन मूर्तियाँ कॉलेज संग्रहालय में प्रदर्शित हैं।" प्राचीन पार्श्वनाथ बसदि
एक शिलालेख के अनुसार इस बसदि का निर्माण 1150 ई. में हेम्माडि शेट्टी और सिरियला के पुत्र मारिशेट्टी की स्मृति में हुआ था। सन् 1523 ई. में यहाँ अनन्तनाथ एवं चन्द्रप्रभ की प्रतिमाएँ विराजमान की गई थीं।।
. स्पष्ट है कि इस मन्दिर के मूलनायक तीर्थंकर पार्श्वनाथ हैं। उनके आसपास अनेक तीर्थंकर मूर्तियाँ पद्मासन और खड्गासन में हैं। इसका मुखमण्डप बड़ा लगता है। शिखर त्रिकोणात्मक है। गर्भगृह के प्रवेशद्वार पर दो-दो की पंक्ति में तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं। नवरंग में भी पार्श्वनाथ एवं अन्य तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं । मुखमण्डप में एक शिलालेख है । उसके ऊपरी भाग में तीर्थंकर और चंवरधारी हैं।
विशेष सूचना
शृंगेरी से कारकल भी जा सकते हैं । किन्तु ऐसा करने से कुन्दाद्रि और वरंग छूट जाएँगे। अतः जो कुन्दाद्रि (चढ़ाई के कारण) नहीं जाना चाहें उन्हें हुलिकल घाट होते हुए हेबी जाकर वरंग और वहाँ से कारकल जाना चाहिए। तीर्थहल्ली जाकर आगुम्बे घाटी होते हुए मिनी बस द्वारा (रास्ते में कुन्दाद्रि) हेब्री होकर भी वरंग पहुँचा जा सकता है।