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140 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
कुन्दाद्रि (कुन्दकुन्दबेट्ट) अवस्थिति एवं मार्ग
यहाँ पहुँचने का मार्ग इस प्रकार है-नरसिंहराजपुर-कोप्पा-तीर्थहल्ली (यहाँ हुमचा से भी सोधे आ सकते हैं)-गुडकेरी (गाँव, तलहटी में)-वहाँ से कुन्दाद्रि (पहाड़) पर लगभग 8 कि. मी. गाड़ी से या पैदल। कार का रास्ता भी वर्षा के कारण खराब हो जाता है। कभी-कभी गाड़ी लौटाने की जगह नहीं मिलती। इस स्थान से आगे आगुम्बे गाँव है। यहाँ तक बड़ी बसें आ सकती हैं। उसके बाद आगुम्बे घाटी (14 कि. मी.) है जिसमें से केवल मिनी बसें ही जा सकती हैं। इस घाटी को पारकर हेब्री (Hebri) नामक स्थान से वरंग और कारकल के लिए सड़क जाती है।
एक मिनी बस सागर-हुमचा-तीर्थहल्ली-कुन्दाद्रि-आगुम्बे-कारकल-मूडबिडी तक है। शृंगेरी से भी यहाँ के लिए बसें आती हैं। नरसिंहराजपुर से भी एक मिनी बस आती है। किन्तु बड़ी बस से कुन्दाद्रि के दर्शनकर वापस तीर्थहल्ली, वहाँ से कलमने के आसपास से हलिकल घाट की सड़क पकड़ कर हेब्री पहुँचना चाहिए और वहाँ से वरंग तथा कारकल। आगुम्बे घाटी में अनेक मोड़ हैं, घना जंगल है और वर्षा भी बहुत होतो है। इसलिए मिनी बस और बड़ी बस के मार्ग का ध्यान रखना चाहिए। बड़ी बस भी आगुम्बे गाँव तक जा सकती है। वहाँ से उतराई प्रारम्भ होती है जो 14 कि. मी. है।
कुन्दाद्रि देखकर नरसिहराजपूर या हमचा वापस लौटना चाहिए या वरंग जाना चाहिए। तलहटी के गाँव में कुन्दाद्रि का अर्चक (पुजारी) रहता है। धर्मशाला नहीं है। पहाड़ के ऊपर चार कमरों का सरकारी गेस्ट हाउस और हुमचा मठ के प्रबन्ध की धर्मशाला बिजलीपानी सहित है, एक हॉल के रूप में । पहाड़ पर ठहरने में असुविधा हो सकती है।
कुन्दाद्रि इस समय कर्नाटक के चिकमंगलूरु जिले के तीर्थहल्ली तालुक के अन्तर्गत आदिवासी इलाके की तीन हजार फुट से अधिक ऊँची एक पहाड़ी है । कुन्दकुन्दाचार्य से सम्बन्धित होने के कारण यह प्राचीनकाल से ही एक तीर्थ माना जाता रहा है।
"मंगलं भगवान् वीरो मंगलं गौतमो गणी।
मंगलं कुन्दकुन्दार्यो जैनधर्मोऽस्तु मंगलम् ॥" सम्भवतः दर जैन इस नमस्कार-मन्त्र से परिचित है और इसमें नमस्कृत कुन्दकुन्दाचार्य से ही इस पहाड़ी का सम्बन्ध है । यहीं उन्होंने तपस्या की थी। यहीं से वे विदेह क्षेत्र गये थे। इसी पहाड़ी पर उन महान् आचार्य के चरण 13 पंखुड़ियों के कमल में बने हुए हैं। कुन्दकुन्दाचार्य
कुन्दकुन्दाचार्य का जन्म दक्षिण भारत में पेदथनाडु जिले में कौण्डकुन्दपुर नामक गाँव में (एक अन्य मत के अनुसार गुंतकल के समीप कुण्डकुण्डी ग्राम में) ईसा की पहली शताब्दी में या आज से लगभग 1900 वर्ष पूर्व हुआ था। अपने गाँव के नाम पर ये कुन्दकुन्द कहलाए (आज