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हुमचा | 127
वर्षा और ओलों की वृष्टि भी की थी। भयंकर वर्षा के कारण जब भगवान का शरीर नाक से से भी ऊपर तक पानी में डूबने को हुआ, तब धरणेन्द्र और पद्मावती का आसन कम्पायमान हुआ। अपने पूर्वजन्म (नाग-नागिन) के रक्षक पार्श्वनाथ पर उपसर्ग जान वे तुरन्त दौडे आए। धरणेन्द्र ने भगवान पर फणों की छाया की और पद्मावती ने छत्र से पार्श्वनाथ को ढक लिया। इस फण और छत्र का चित्रण भी इसी प्रतिमा के साथ है। जब कमठ और उसकी पत्नी को अपने उपसर्ग बेकार जाते दिखे तो उन्हें ज्ञान हुआ कि वे तीर्थंकर पर उपसर्ग करके घोर पाप कर रहे हैं। वे पछताए और हाथ जोड़कर उन्होंने भगवान से क्षमा माँगी। उन्हें यहाँ क्षमा मांगते हुए और भक्तिपूर्वक नमन करते चित्रित किया गया है। पार्श्वनाथ की मूर्ति के साथ इस प्रकार का अंकन बहुत ही कम मिलता है। यही कारण है कि यह अंकन दर्शक को याद रहता है। यहीं पर ग्यारहवीं सदी की अम्बिका या कूष्माण्डिनी देवी (नेमिनाथ की यक्षी) की मूर्ति भी लगभग तीन फीट ऊँची है। प्रदक्षिणा-पथ में सिंह का खंडित अंकन भी प्राचीन जान पड़ता है। पार्श्वनाथ-प्रतिमा से आगे के मण्डप में लकड़ी के 6 फीट ऊँचे दो द्वारपाल दोनों ओर हैं। पंचशाखा प्रकार का सुन्दर द्वार भी है। मन्दिर ऊँचे चबूतरे पर है। प्रवेश के लिए सीढ़ियाँ हैं
और मन्दिर के सामने बलिपीठ है। पार्श्वनाथ बसदि के प्रांगण में बहत-से स्मारक-पाषाण और उत्कीर्ण प्रस्तर-खण्ड आदि पड़े हए हैं। इसी मन्दिर के बाज में ऋषिमण्डल यन्त्र और कलिकुण्ड यन्त्र हैं। कलिकुण्ड यन्त्र में 8 बीजाक्षर हैं-ह, भ, म, र, घ, झ, स और ख। ये अष्ट मन्त्राक्षर आठ कर्मों का नाश करते हैं। मन्दिर के सामने मानस्तम्भ भी है।
पद्मावती मन्दिर-पार्श्व बसदि से लगभग सटा पद्मावती मन्दिर है । यह 'पद्मावती गुडि' या 'अम्मनवर बसदि' भी कहलाता है। पद्मावती के इस मन्दिर के सामने लगभग 50 फीट ऊँचा एक बहुत प्राचीन मानस्तंभ है। इसमें ऊपर यक्ष और नीचे तीर्थंकर मूर्ति है। इसका तथा मन्दिर का जीर्णोद्धार भी हो चुका है। उसके गर्भगृह में पार्श्वनाथ की यक्षी पद्मावती की भव्य प्रतिमा है (देखें चित्र क्र. 56)। देवी के हाथों में अंकुश, पाश और पुस्तक हैं तथा चौथा हाथ अभयमुद्रा में है । वे ललितासन में हैं । सवा फीट ऊँची यह प्रतिमा ग्यारहवीं सदी की है। प्रतिमा के उत्कीर्णन में देवी की क्षीण कटि ध्यान देने योग्य है। यक्षिणी के मुकूट पर संबंधित तीर्थंकर की पद्मासन मूर्ति होती है किन्तु यहाँ देवी के मस्तक के ऊपर संगमरमर की पावनाथ को मूर्ति है जिस पर सात फणों की छाया है। ऊँ कीर्तिमुख के रूप में है। चाँदी के फ्रेम की कुलिका के ऊपर पार्श्वनाथ विराजमान हैं। स्वस्तिक और शिखर भी है। मकरतोरण की भी संयोजना है। पद्मावती पारम्परिक वेशभूषा में मुकुट, स्वर्ण-आभूषणों से मण्डित है। यह मूर्ति 'उत्सव मूर्ति' कहलाती है। गर्भगृह के द्वार की चौखट चाँदी की है। उसके सिरदल पर पद्मासन में पार्श्वनाथ और यक्ष-यक्षी हैं । गर्भगृह में प्रवेश से पहले के हॉल में, दोनों तरफ आलों में, दो और सुन्दर पद्मावती प्रतिमाएँ हैं। इसी सभामण्डप में भक्तों की भीड़ जमा होती है। इस सभामण्डप से पहले काफी बड़ा एवं खुला मण्डप है। अन्दर जाने से पहले भीतरी सभामण्डप को बाहरी दीवाल के पास लगभग 6 फीट ऊँची एक-एक द्वारपालिका दोनों ओर हैं। उन पर कीर्तिमुख हैं तथा दोनों ओर वादक-वृन्द का सुन्दर उत्कीर्णन है। पाषाण-निर्मित इस मन्दिर के सामने एक ध्वजस्तम्भ भी है।