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मचा / 125 लगभग 1500 ताडपत्रीय ग्रन्थ हैं । वरंग मठ में भी इस प्रकार के शास्त्र हैं । इस भवन में प्रवचन की भी व्यवस्था है । इस भवन के पीछे पद्माम्बा ट्रस्ट मैसूर का दो मंजिला भवन है जहाँ रथोत्सव के समय यात्रियों को 6 दिन तक निःशुल्क ठहरने और भोजन की व्यवस्था की जाती है ।
उपर्युक्त भवन के पास ही 'रथ- घर' है । उसमें सुन्दर ढंग से उत्कीर्ण लगभग 15 फीट ऊँचा लकड़ी का रथ है । चाँदी का करीब दस फीट ऊँचा एक और रथ भी यहाँ है ।
उपर्युक्त रथों का प्रयोग रथोत्सव के समय किया जाता है। यह उत्सव मूल नक्षत्र ( मार्च मास) में 6 दिनों तक होता है । इस समय पद्मावती देवी का जुलूस 6 दिनों तक पूरे गाँव में निकाला जाता है। देवी के वाहन इस प्रकार होते हैं- एक दिन सिंहवाहन, दूसरे दिन सर्पवाहन, गजवाहन और विसर्जन के दिन चाँदी की पालकी । इस उत्सव के अवसर पर साहित्य सम्मेलन, धर्म सम्मेलन आदि आयोजित किये जाते हैं । उत्सव में लगभग दस हज़ार जैन-अजैन भाग लेते हैं ।
लक्की मरा - पद्मावती मन्दिर के पीछे, यहाँ एक 'लक्की मरा' है । 'लक्की' वृक्ष का नाम है । इसे संस्कृत में निर्गुण्डि कहते हैं । कन्नड़ में 'मरा' का अर्थ होता है वृक्ष । लक्की वृक्ष को 'करि लक्की' भी कहते हैं। बताया जाता है कि यह कभी नहीं सूखता, सदा हरा-भरा रहता है। इसकी जड़ पद्मावती देवी की प्रतिमा के आसन के नीचे बताई जाती है । यह चारों ओर से कुछ ऊँची पक्की दीवाल से घिरा हुआ है। इसके तीन ओर अंकन है । एक नागफलक है । घोड़े पर जिनदत्तराय अंकित हैं । पद्मावती एवं पार्श्वनाथ भी अंकित हैं। भक्त लोग इस वृक्ष की पूजा करते हैं और नीचे गिरी पंत्तियाँ ले जाते हैं । सर्प दंश के लिए भी इसकी मन्त्रित पत्तियों का उपयोग किया जाता है ।
_मक्कल बसदि (मक्कल - बालक) — इस नाम का एक छोटा-सा मन्दिर यहाँ की धर्मशाला में है । शिलानिर्मित इस मंदिर में चार फीट ऊँची पार्श्वनाथ की सातफणों से 'युक्त प्रतिमा है । यक्ष-यक्ष एवं मस्तक से ऊपर तक चँवरधारी भी अंकित हैं। बाहर एक कुलिका में क्षेत्रपाल भी हैं ।
पुरानी धर्मशाला एक मंज़िला है । उसमें तीस कमरे हैं, बिजली-पानी की व्यवस्था है । कुछ बड़े कमरों में पूरी बस के यात्रियों के लिए भी प्रबंध किया जाता है । यहीं पास में विशिष्ट व्यक्तियों के लिए अतिथिगृह भी है । इसी के पीछे पद्माम्बा प्रौढ -शाला है जिसमें सातवीं से ग्यारहवीं तक की कक्षाएँ लगती हैं ।
एक नई धर्मशाला पुरानी धर्मशाला के पीछे बनाई गई है । वह तीन मंज़िल है । उसमें स्नानागार युक्त 36 कमरे हैं । इस धर्मशाला में चार बिस्तरों वाले स्नानागारयुक्त चार बड़े कमरे भी हैं। यह धर्मशाला मठ से लगी हुई है । नई धर्मशाला और पार्श्वनाथ बसदि के बीच में पत्थर जड़ा विशाल प्रांगण है । उसके बाद ही होम्बुज जैन मठ है । इस प्राचीन विशाल मठ में 18 इंच मोटे लकड़ी के स्तम्भ हैं, जिनके ऊपरी भाग में सूक्ष्म नक्काशी है । तभी लकड़ी की है । मठ में ऊपर भट्टारक - निवास है और नीचे की मंज़िल में मठ का कार्यालय । मठ में ही एक विशाल भोजनशाला है जिसमें सौ-दो सौ व्यक्ति एक साथ भोजन कर सकते हैं।