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हुमचा | 129
क्यों न हो जाए, यह कभी सूखता नहीं। बरसात में पानी ऊपर तक आ जाता है। इसमें कमल के फूल खिले रहते हैं। अपनी अविच्छिन्न जलाशयता के कारण यह तालाब अतिशययुक्त माना जाता है।
पंचबसदि के पास से ही एक पगडण्डी मठ के नारियल के खेतों तक जाती है। वहीं कुछ दूरी पर एक स्थान है जहाँ किसी समय 'सान्तर राजाओं का महल' था। यह महल लकड़ी का था जो जलकर भस्म हो गया। इसका प्रमाण भी मिलता है। यदि इस स्थान की मिट्टी खोदी जाए तो अनाज जले चावल (Carbonised rice) आज भी प्राप्त होता है। स्कूल बनाते समय यहाँ से कुछ मूर्तियाँ भी निकली थीं। कुन्दकुन्द विद्यापीठ
उपर्युक्त स्थान के पास की पहाड़ी पर एक दो-मंज़िला कुन्दकुन्द विद्यापीठ है । यहाँ लगभग सौ विद्यार्थियों को मैट्रिक तक की शिक्षा, धार्मिक शिक्षा के साथ ही, दी जाती है।
विद्यापीठ के पीछे सन् 978 ई. में विक्रम सान्तर द्वारा बनवाई गई विशाल बाहुबली बसदि थी जिसकी अब केवल चौकी ही शेष रह गई है। मन्दिर के विभिन्न भागों का एक ढेर पत्थरों के ढेर के रूप में पड़ा है।
उपर्युक्त मन्दिर में बाहुबली की कुछ जीर्ण प्रतिमा लगभग पाँच फीट की है जो कि विद्यापीठ के हाल में रखी हुई है। वह उलटे कमलासन पर विराजमान है, छत्र एक ही है। बाहुबली के सिर पर जटाएँ प्रदर्शित हैं जो तीन लटों के रूप में, दोनों कन्धों तक आई हैं। लताएँ पैरों पर ही हैं, हाथों पर नहीं । बाँबी भी नहीं हैं । उत्कीर्ण भामण्डल चापाकार है।
तीर्थंकर पार्श्वनाथ की नवनिर्मित विशाल मूर्ति-विद्यापीठ के पीछे पहाड़ी थी। उसे समतल कराया गया है । इस प्रकार प्रायः खुले प्रांगण में जयपुर में निर्मित 23 फीट ऊँची नीले संगमरमर की मूर्ति खुले आकाश के नीचे स्थापित की गई है। उस पर सर्प का लांछन है। सर्पकुण्डली पैरों तक आई है। आर. सी. सी. की चौकोर चौकी पर, जिसके ऊपर के भाग में संगमरमर लगा है, यह मूर्ति स्थापित है । पाषाण-फलक जंघाओं तक आया है । इतनी विशाल मूर्ति के लिए और कोई आधार (Support) नहीं है । यह प्रतिमा नवनिर्मित है।
कुमुदवती तीर्थ-यह जैन तीर्थ माना जाता है। बिल्लेश्वर गाँव के पास स्थित इस तीर्थ के लिए एक रास्ता पार्श्वनाथ की नवीन प्रतिमा के पास से और दूसरा रास्ता मठ के पीछे से भी दो पगडंडियों के रूप में है। यहाँ एक चौकोर कुण्ड है जो जमीन से लगभग 10 फीट नीचा है । इसके चारों ओर सीढ़ियाँ बनी हैं । बीच में हाथी की आकृति और ऊपर की पाषाणरचना में पुष्प उत्कीर्ण हैं । यहाँ एक प्रणाली से पानी की स्वच्छ शीतल धारा सदा ही कुण्ड में गिरती रहती है। यही कुमुदवती नदी का उद्गम स्थान है । यह धारा कहाँ से आती है यह ज्ञात नहीं हो सका। वैसे इसके ऊपर की पहाड़ी मिट्टी की है । नदी के उद्गम के कारण भी इसे तीर्थ कहते हैं । जैन-जैनेतर सभी इसे मानते हैं। जिन-प्रतिमाओं के अभिषेक के लिए यहाँ से प्रतिदिन हाथी पर रखकर जल लाया जाता है। गाँव के लोग भी यहाँ से पानी ले जाते। हैं। यहाँ एक टीले पर नागफलक है । एक छोटे फलक पर नाग आपस में गुंथे हुए हैं । फलक के ।