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132 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
पटेल के घर की बसदि-इसमें दसवीं शताब्दी की आठ इंच ऊँची 'पंचतीथिका' कांस्यप्रतिमा है। उसमें सप्न फणावली से युक्त पार्श्वनाथ प्रमुख हैं। उनके दोनों ओर कायोत्सर्ग मुद्रा में दो तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं । नौ फणों से युक्त पद्मासन पार्श्वनाथ की भी एक प्रतिमा है ।
___करूर बसदि-यहाँ की पार्श्वनाथ बसदि के सामने की ओर धरणेन्द्र की एक सुन्दर मूर्ति है।
धरणेन्द्र का यक्ष वाहन कछुआ भी यहाँ एक ओर दिखाया गया है। धरणेन्द्र अर्धयोगपट्ट में आसीन है । उसका क रण्ड मुकुट ऊँचा है और फण की छाया है । यह 11वीं सदी का अंकन है। ऊँचाई लगभग तीन फीट है। पदमावती की भी इसी प्रकार की सुन्दर प्रतिमाएँ 10वीं और 11वीं सदी की हैं। सर्वाह्न यक्ष भी अपने धर्मचक्र के साथ यहाँ आसीन हैं । उपर्युक्त बसदि में 10वीं सदी की घिसी-खण्डित चौबीसी, खण्डित पार्श्वनाथ प्रतिमा (11वीं सदी), कांस्य की पार्श्वनाथ प्रतिमा (11वीं सदी), पन्द्रहवीं सदी की अभिनन्दनाथ प्रतिमा (पाषाण की), त्रितीथिका और 15वीं सदी की चौबीसी आदि भी हैं।
कलड़ी (Kaladi)
__यहाँ की बसदि में 12वीं से 15वीं सदी तक की प्रतिमाएँ हैं । तीर्थंकर पार्श्वनाथ की । 328 ई. (लेख के अनुसार) की कांस्य प्रतिमा विशेष आकर्षक है । मूर्ति पद्मासन में छत्रत्रयी से युक्त, यक्ष-यक्षी तथा चँवरधारियों सहित हैं। आकाशचारी विद्याधरों के हाथों में मालाएँ हैं और 'अभिषेक करता हाथी' विशेष आकर्षण है। पन्द्रहवीं सदी की एक कायोत्सर्ग प्रतिमा सप्तफण युक्त है। उसके साथ धरणेन्द्र और पद्मावती भी अंकित हैं। पंचतीथिका यद्यपि खराब हो गयी है, तदपि उस पर अशोक वृक्ष का सुन्दर अंकन है। एक अन्य 'पंचतोथिका' भी है। कुछ खण्डित प्रतिमाएँ भी हैं।
इन्दुवनी बसदि-इस बसदि में 15वीं सदी की मूर्तियाँ हैं। यहाँ कांस्य तीर्थंकर मूर्ति के साथ न तो परिकर है और न ही छत्र। यहीं एक स्मारक के आले में तीर्थंकर की पद्मासन मूर्ति है। दोनों ओर मानस्तम्भ भी है। इस पर कन्नड लेख भी है।
आवलिनाडु (Avalinadu)
यह सोरब तालुक में हैं। इसका प्राचीन नाम हिरिय आवलि था। यह 15वीं सदी में प्रसिद्ध जैन केन्द्र था । यहाँ अनेक मुनियों और श्रावकों ने समाधिमरण किया था। कुप्पटूरु (Kubattur)
सोरब तालुक का यह स्थान 11वीं से 15वीं सदी तक जैन धर्म का प्रसिद्ध केन्द्र और नागर खण्ड का 'तिलक प्राय' था। सन् 1077 ई. में कदम्ब राजवंश की रानी माललदेवी ने यहाँ पार्श्वनाथ बसदि का निर्माण कराया था। यहाँ के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि यहाँ अनेक जैन मन्दिर थे।
पार्श्वनाथ बसदि की मूर्तियाँ तथा अन्य कलावशेष सब 11वीं शताब्दी के हैं । लगभग