________________
134 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
उद्धरे ऊद्रि (Udri)
शिकारीपुर तालुक का यह स्थान भी प्रसिद्ध जैन केन्द्र था। यहाँ 'पंच बसदि', 'कनकबसदि' और 'एरग जिनालय' नामक तीन मन्दिर थे । 'ऊद्रि बसदि' 12वीं सदी में निर्मित हई थी। यह एक छोटा-सा मन्दिर (चित्र क्र. 61) है। यहाँ विमान में ऊपर एक छत्रत्रयीयुक्त पदमासन तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं जिनके आसपास चँवरधारी हैं। इसकी छत में कमल का अंकन बहुत मनोहारी है। इसका शिखर कटनीदार है । छत ध्वस्त हो गई है। शुकनासा पर आसीन तीर्थंकर दोनों ओर यक्ष-यक्षी सहित हैं। नवरंग मण्डप की छत पर पूर्ण विकसित कमल उत्कीर्ण है (चित्र क्र. 61 A)। दरवाजे के सिरदल पर एक तीर्थंकर मूर्ति विराजमान है। एक तीर्थकर मूर्ति का यक्ष त्रिमुख ललितासन में है। यहाँ अम्बिका की मूर्ति भी है। हेग्गेरि (Heggeri)
शिमोगा के चिक्कनायकनहल्लि तालुक के इस स्थान पर होयसलनरेश नरसिंहदेव के महासामन्त गोविदेव ने यहाँ पार्श्वनाथ मन्दिर का निर्माण कराकर दान दिया था। कुन्दनबेट्ट (Kundanbetta)
___ यहाँ की बसदि में तीर्थंकर चन्द्रप्रभ की लांछन सहित पद्मासन मूर्ति है। प्रभामण्डल साधारण-सा है । चँवरधारी सिर से ऊपर तक अंकित हैं। आनेकल (Anekal)
- यहाँ 'होयसल बसदि' नामक मन्दिर है । इस मन्दिर का विशेष विवरण सम्प्रति प्राप्त नहीं है।
नरसिंहराजपुर नरसिंहराजपुर कर्नाटक के चिकमंगलूरु जिले में है। ई. सन् 1915 से पहले इस स्थान का नाम येदेवल्ली (Yedevalli) था। उपर्युक्त सन् में यहाँ युवराज कान्तिरव नरसिंहराज वेडियर का आगमन हुआ। उस खुशी में इसका नाम नरसिंहराजपुर कर दिया गया। अवस्थिति एवं मार्ग
हमचा से यहाँ पहुँचने का मार्ग इस प्रकार है-हुमचा से तीर्थहल्ली (35 कि. मी.), वहाँ से कोप्पा (25 कि. मी.) और वहाँ से नरसिंहराजपुर (22 कि. मी.)। हुमचा से कोप्पा तक का मार्ग छोटी पहाड़ियों, छोटी घाटियों से होकर है। कोप्पा से नरसिंहराजपुर घाट-क्षेत्र है, ऊँची