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शिमोगा जिले के अन्य जैन स्थल / 133
साढ़े छह फीट ऊँची पद्मासन में पार्श्वनाथ प्रतिमा पर सप्तफणों की छाया है, छत्रत्रयी है । यक्ष- यक्षी कन्धों से ऊपर तक उत्कीर्ण हैं । लताओं का भी अंकन है । चार फीट की एक और पार्श्वनाथ प्रतिमा है । आदिनाथ की एक खण्डित मूर्ति भी है। संभवतः महावीर की प्रतिमा भी है । सिरदल पर तीर्थंकर और गजसिंह का अंकन है । नागपुरुष का भी अंकन है जो कि संभवतः धरणेन्द्र है।
बन्दलिके (Bandalike)
सोर तालुक के इस स्थान की 'शान्तिनाथ बसदि' या 'बन्दलिके बसदि' इस समय ध्वस्त अवस्था में है (चित्र क्र. 59 ) । यह ग्यारहवीं सदी की है । इसके सिरदल पर तीर्थंकर मूर्ति उत्कीर्ण है। यक्ष-यक्षी और द्वारपाल का भी उत्कीर्णन है । अब इसमें मूर्ति नहीं है ।
सन् 911 ई. में राष्ट्रकूट राजा कन्नरदेव जब मलखेड में राज्य करता था, तब यह एक प्रसिद्ध जैन केन्द्र था । उसका महासामन्त कलिविट्टरस बनवासि में राज्य करता था । उसके अधीन सामन्त नागार्जुन था जो नागर खण्ड का शासक था। किसी युद्ध में उसकी मृत्यु हो गई तो सम्राट ने उसकी पत्नी जक्कियब्बे को शासक नियुक्त किया। उसने कुशलतापूर्वक राज्य किया । किन्तु जब रोग ने उसे आ घेरा तो उसने अपनी पुत्री को राज्य सौंप दिया और बदलि तीर्थ में जाकर सल्लेखना ग्रहण कर ली। उसी के नाम पर या उसके द्वारा निर्मित कराए जाने के कारण यहाँ की बसदि 'जविकयव्वे बसदि' कहलाती है । होय्सल सेनापति रेचरस भी यहाँ दर्शनार्थ आया था । यह बसदि दूर-दूर के लोगों को आकर्षित करती थी ।
बल्लि गावि (Baligavi)
शिकारपुर या शिकारीपुर तालुक के इस स्थान की जैन बसदि भी अब ध्वस्त अवस्था
में है ।
ग्यारहवीं सदी में यह एक जैन केन्द्र था । यहाँ एक जैन मठ भी था । विक्रमादित्य षष्ठ ने यहाँ के 'चालुक्य पेर्माडि जिनालय' को दान दिया था। कहा जाता है कि सन् 1068 ई. में जैन कवि और सेनापति ने यहाँ की काष्ठनिर्मित आदिनाथ बसदि को परिवर्तित कराकर उसके स्थान पर पाषाण का मन्दिर बनवा दिया था । किन्तु आज यहाँ केवल शिलालेख ही यहाँ की गाथा सुनाते हैं।
उपर्युक्त स्थान पर पार्श्वनाथ और अम्बिका की तीन-तीन फीट ऊँची खंडित प्रतिमाएँ हैं। हैं जो कि ग्यारहवीं सदी की हैं ।
चिक्क मागडि ( Chikkamagadi)
यह भी शिकारीपुर तालुक में है । यहाँ के बसवण्णा मन्दिर के एक स्तम्भ पर खुदे लेख के अनुसार, कदम्बराज बोप्पा के सामन्त शंकर ने यहाँ 1182 ई. में शान्तिनाथ चैत्यालय बनवाया था और बलिपुर के राजा सूर्याभरण ने इस मन्दिर के लिए सुपारी के 500 पेड़ और सहस्र पुष्पवाटिकाओं से सुशोभित एक उद्यान दान में दिया था (चित्र क्र. 60 ) । होयसल राजा बल्लालदेव के दण्डनाथ रेचण ने भी इसके लिए एक गाँव दान में दिया था। यह बसदि 14वीं सदी की है। उसके सामने एक अद्भुत मानस्तम्भ भी है। इस स्थान पर एक वीरगल भी है ।