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स्वादी मठ | 109
राणिबेन्नूरु (Ranibennuru)
शिलालेख से ज्ञात होता है कि ईस्वी सन् 959 में नागुल पोल्लबयु नामक भक्त महिला यहाँ नागुल जिन बसदि का निर्माण कराया था ।
संगूरु ( Sanguru)
विजयनगर के राजा हरिहर के समय में गोवद शासक माधव के सेनापति नेमण्णा 1395 ई. में संगूरु के पार्श्वनाथ जिनालय को नाना प्रकार का दान दिया था। नेमण्णा के पिता और पितामह ने इसी मन्दिर में समाधिमरण किया था ।
तडकोड (Tadkod)
यहाँ भी एक पार्श्वनाथ बसदि है । उसमें ग्यारहवीं और बारहवीं सदी की प्रतिमाएँ हैं । उनमें एक विशिष्ट नागफलक भी है ।
उपर्युक्त फलक में त्रिछत्र के नीचे अनेक फण के नाग आपस में गुँथे हुए हैं । उत्तर भारत क्षेत्रपाल की भाँति ऐसे नागफलक दक्षिण भारत में कई स्थानों पर मिलते हैं । बसदि में सप्त फणयुक्त कायोत्सर्ग प्रतिमा विराजमान है जिस पर कन्नड़ में लेख है । कन्धों तक जटावाले आदिनाथ अर्धपद्मासन में हैं । उनका भामण्डल क्षतिग्रस्त है । मूर्ति पर कन्नड़ लेख है। पद्मावती मुकुट में एक फणसे युक्त पार्श्वनाथ का अंकन है । देवी त्रिभंग मुद्रा में है । एक भग्न शिला शायद सल्लेखना से सम्बन्धित है ।
स्वादी मठ : एक उपेक्षित प्राचीन केन्द्र
अवस्थिति एवं मार्ग
यह स्थान सिरसी से 22 कि. मी की दूरी पर हुवली - येल्लापुर - सिरसी मार्ग पर स्थित है । अब यह कारवाड़ (Karwar, पुराना नाम उत्तर कनारा North Kanara) ज़िले के सिरसी तालुक में एक गाँव है । यह सोदे भी कहलाता है और इसका प्राचीन नाम सोदकेरे है । इसे सोंडा भी कहते हैं । जैन मठ तो इस गाँव से भी अलग ऐसे स्थान में है जिसके आस-पास आठ-दस जैन परिवार ही रहते हैं । वास्तव में, इसे भुला दिया गया है । यहाँ पहुँचने के लिए कुछ बातों पर ध्यान देना ज़रूरी है । जो बस सिरसी से स्वादी गाँव जाती है उसी से वापस लौटना चाहिए । सिरसी से सुबह आठ बजे की बस ली जाए तो दोपहर डेढ़ बजे की बस से स्वादी से वापस लौटा जा सकता है
स्वादी में तीन मठ हैं - एक तो स्वादी गाँव में है जो कि 'वादिराज मठ' कहलाता है । जाता है कि यह पहले जैन मठ था किन्तु अब यह शैव मठ है । उसके सामने मानस्तम्भ जैसी रचना दिखाई देती है।