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धारवाड़ जिले के अन्य जैन-स्थल | 107
शताब्दी की प्रतिमाएँ हैं । साढ़े चार फीट ऊँची पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर सात फण हैं और धरणेन्द्र एवं पद्मावती भी उत्कीर्ण हैं (देखें चित्र क्र. 43)। पाँच फीट की एक प्रतिमा यक्ष-यक्षिणी सहित एवं मकर-तोरण से युक्त है। यहाँ सुपार्श्वनाथ और ब्रह्म यक्ष की 11वीं सदी की प्रतिमाएँ भी हैं। गुत्तल (Guttal)
हवेरी तालुक के इस गाँव में दसवीं सदी की साढ़े तीन फीट ऊँची पार्श्वनाथ की एक मूर्ति कायोत्सर्ग मुद्रा में, सात फण एवं मकर-तोरणयुक्त प्राप्त हुई है (देखें चित्र क्र. 44) ।
पुस्तकगच्छ के मलधारिदेव और सोमेश्वर पंडितदेव के शिष्य केतिशेट्टि ने इस ग्राम में 1162 ई. में पार्श्वनाथ का मन्दिर निर्मित कराया था और उसके लिए राजा विक्रमादित्य से दान में भूमि प्राप्त की थी। हवेरी (Haveri)
यहाँ की 'मुड्डू माणिक्य बसदि' में दसवीं शताब्दी की लगभग साढ़े तीन फीट ऊँची पार्श्वनाथ की पद्मासन मूर्ति है जो छत्रत्रयी, सात फणों से युक्त, सिर से ऊपर तक चँवरधारियों सहित तथा तीन ओर लताओं से अलंकृत है (देखें चित्र क्र. 45) । इसी प्रकार की एक और पार्श्वनाथ की मूर्ति भी यहाँ है ।
स्थानीय सिद्धेश्वर मन्दिर में ग्यारहवीं शती के कुछ जैन चिह्न, जैसे चँवरधारी, ब्रह्मयक्ष का अश्व आदि खण्डित अवस्था में हैं।
बताया जाता है कि यहाँ का वीरभद्र मन्दिर किसी समय एक जैन मन्दिर था जो कि ग्यारहवीं शताब्दी का है। उसका शिखर कटनीदार है।
धारवाड़ तालुक और उसके आस-पास के कुछ स्थलों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार हैअम्मिनबावि (Aminbhavi)
___यह स्थान धारवाड़ के बिलकुल निकट है और यहाँ पहुँचने के लिए सिटी बसें भी उपलब्ध हैं। यहाँ की 'पार्श्व बसदि' में दसवीं और ग्यारहवीं सदी की भव्य मूर्तियाँ हैं।
ग्यारहवीं सदी की इस स्थान की एक चौबीसी जैन मूर्तिकला का एक उत्तम उदाहरण है (चित्र क्र. 46)। इसके मूलनायक आदिनाथ हैं। उनकी जटाएँ कन्धों तक प्रदर्शित हैं । मस्तक पर एक अलंकृत छत्र है । उनके दाहिनी ओर के स्तम्भ पर सात फणों से युक्त पार्श्वनाथ कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं। आदिनाथ के इसी ओर के पादमूल में गोमेद यक्ष को बैठे हुए दिखाया गया है। बाईं ओर सुपार्श्वनाथ कायोत्सर्ग मुद्रा में तथा यक्षी चक्रेश्वरी हैं । स्तम्भों के छोर पर मक दिखाए हैं। उनके मुख से पानी के गोल छल्ले निकलते प्रदर्शित हैं। इन छल्लों में और उनके बाहर 24 तीर्थंकरों की लघुमूर्तियाँ हैं । आदिनाथ के मस्तक के दोनों ओर एक-एक चँवर उत्कीर्ण हैं। लगभग तीन फुट की इस चौबीसी में जितना सूक्ष्म और सुन्दर अंकन हुआ है वह केवल देखने से ही समझ में आ सकता है। ऐसा उत्कीर्णन बहुत कम पाया जाता है । पाँच सिहों के आसन पर दसवीं सदी की साढ़े चार फुट ऊंची महावीर स्वामी की प्रतिमा भी अलंकृत फलक