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116 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
में प्रारम्भ हुआ था। यहाँ अनेक आचार्य श्रवणबेलगोल परम्परा के हुए हैं। उनमें से आचार्य विजयकीर्ति प्रथम की प्रेरणा से भटकल नगर का निर्माण हुआ था।
उपर्युक्त बसदि में अधिकांश प्रतिमाएँ 15वीं सदी की हैं। मकर-तोरण से मण्डित तीर्थंकर पार्श्वनाथ की लगभग चार फुट ऊँची प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में है। उसके साथ यक्ष-यक्षी अंकित हैं। इन्हीं तीर्थंकर की एक और पाँच फुट ऊँची कायोत्सर्ग मूर्ति यक्ष-यक्षी, मकर-तोरण और कीर्तिमुख सहित है। 15वीं सदी की लगभग चार फुट ऊँची महावीर स्वामी की कायोत्सर्ग प्रतिमा कमलासन पर विराजमान है । आदिनाथ की पद्मासन प्रतिमा के साथ यक्ष-यक्षी, तोरण और कीर्तिमुख के साथ 'गजकेसरी' का अंकन आकर्षक है। स्तम्भों के ऊपर अंकित गजकेसरी के मुख से जल के फव्वारे छूट रहे हैं। धरणेन्द्र की अद्भुत मूर्ति के अंकन में देखने लायक हैं-ऊँचा मुकट, तीन हाथों में सर्प और धोती की सुन्दर स्पष्ट सिलवट। पद्मावती के हाथों में भी कमल की कलियाँ दिखाई गई हैं। यहाँ कुछ खण्डित मूर्तियाँ भी हैं। मन्दिर का शिखर बेसर शैली का है। गुण्डबल (Gundbala)
होन्नवर तालुक के इस स्थान में ग्यारहवीं सदी की 'रत्नत्रय बसदि' है। इसमें 10वीं और 11वीं सदी की अधिकांश प्रतिमाएँ हैं । ग्यारहवीं शताब्दी की साढ़े पाँच फुट ऊँची, उलटे कमलासन पर स्थित (चित्र क्रमांक 52) तीर्थंकर आदिनाथ की एक प्रतिमा पर कन्धों तक जटा प्रदर्शित हैं। एक चौबीसी है जिसके मूलनायक का लांछन नहीं है। तीन-छत्र, यक्ष-यक्षी (घुटनों के पीछे ) तथा दो पंक्तियों में शेष तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं।
यहाँ 'सूरस्थ बसदि' नामक एक मन्दिर और है। उसमें भी एक चौबीसी है जिसके मूलनायक तीर्थंकर आदिनाथ हैं। इसके प्रदक्षिणा-पथ में दसवीं सदी की तीन खड्गासन तीर्थंकरमूर्तियाँ हैं जिन पर मकर-तोरण है। इसी सदी की एक पार्श्वनाथ की प्रतिमा भी है जिस पर सात फणों की छाया है। यह साढ़े पाँच फुट ऊँची है (चित्र क्र. 53)। यहाँ गणेश और ब्रह्मयक्ष की मूर्तियाँ भी हैं। दसवीं सदी की ही पद्मावती और धरणेन्द्र की प्रतिमाएँ भी यहाँ हैं । इसी शताब्दी की सरस्वती की एक सुन्दर प्रतिमा ललितासन में है। उसके ऊँचे मुकुट में एक लघु तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं । यह लगभग ढाई फुट की है।
मनको (Manki)
होन्नवर तालुक के ही इस स्थान पर एक 'शान्तिनाथ बसदि' है। प्रतिमा बारहवीं सदी की और लगभग तीन फुट ऊँची है । शान्तिनाथ खड्गासन में हैं, घुटनों तक चँवरधारी अंकित हैं और मकर-तोरण भी है।
इस मन्दिर के एक स्तम्भ के चारों ओर रामायण की कहानी उत्कीर्ण है। उस पर कीतिमुख है, कन्नड़ में छह पंक्तियों का एक लेख है और अन्य आकर्षक डिजाइन हैं। पन्द्रहवीं सदी के इस स्तम्भ की ऊँचाई सात फट है (देखें चित्र क्र. 54)।