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118 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
स्थानीय जैन मठ होम्बुज और होम्वुजा दोनों नामों का प्रयोग करता है।
इस क्षेत्र का नाम होन्नु - पुच्च इन दो शब्दों से बना है। 'होन्नु' का अर्थ है सोना और 'पुच्च' से खदान का अर्थ सिद्ध है। अर्थात् वह स्थान जहाँ सोने की खदान हो । वास्तव में यहाँ सोने की खदान नहीं है किन्तु इस स्थान का सम्बन्ध अतीत काल की उस घटना से है जिसमें यहाँ के राजा जिनदत्त को पद्मावती देवी की कृपा से लोहे को भी सोना बनाने की शक्ति प्राप्त हुई थी। यही होन्नुपुच्च बिगड़ते-बिगड़ते होम्बुज या हुंचा हो गया है। मलेनाडु जनपद में स्थित यह क्षेत्र बिलेश्वर पहाड़ी की तलहटी में बसा हुआ है। एक अतिशय-क्षेत्र
अतिशय-क्षेत्र के रूप में इसकी प्रसिद्धि के चार कारण हैं-(1) कमठ क उपसर्ग के समय पार्श्वनाथ की रक्षा करने वाली यक्षिणी पद्मावती (यहाँ के लोग पद्माम्बा भी कहते हैं) की मति, जो मनौतियों-विशेषकर महिलाओं के सौभाग्य की रक्षक के रूप में-दूर-दूर तक जैनअजैन जनता में सदियों से प्रसिद्ध है, (2) यहाँ का 'लक्की' (लोक्कि) वृक्ष जो सदा हरा-भरा रहता है, (3) लगभग 1300 वर्षों पूर्व निर्मित 'मुत्तिनकेरे' (मोतियों का तालाब) जो कभी नहीं सूखता और (4) तुंगभद्रा नदी की सहायक कुमुदवती नदी का उद्गम-स्थल जो कुमुदतीर्थ कहलाता है।
हुमचा में सबसे महत्त्वपूर्ण अतिशय पद्मावती (लोकियब्बे) देवी है जिसका अलग मन्दिर पार्श्वनाथ मन्दिर के समीप ही स्थित है। यहाँ लोग पूजा-अर्चना कर मनौतियाँ मनाते हैं । कहा जाता है कि यदि किसी भक्त का कार्य सिद्ध होने की संभावना हो तो देवी के दाहिने भाग से फूल गिरता है (यहाँ फूल चढ़ाए जाते हैं) । यह कार्यक्रम या सिलसिला यहाँ प्रतिदिन हर समय चलता रहता है । भक्तों की भीड़ लगी रहती है। लोग बसों, कारों व अन्य सभी साधनों से यहाँ पहुँचते हैं।
क्षेत्र का रोचक घटनापूर्ण इतिहास
इस क्षेत्र का इतिहास एक रोचक कहानी है। लगभग 22 शिलालेख यहाँ के मन्दिरों आदि का इतिहास बताते हैं । यह कहानी यहाँ की पंचकूट बसदि (पंचबस्ती) के प्रांगण के एक पाषाण (1077 ई. के एक बहुत बड़े शिलालेख) पर संस्कृत तथा कन्नड़ में खुदी हुई है। लगभग 1680 ई. में कवि पद्मनाभ द्वारा कन्नड़ में रचित 'जिनदत्तरायचरित्रे' में भी यहाँ के सान्तर राजवंश की उत्पत्ति की कथा वर्णित है। इस काव्य का दूसरा नाम 'पद्मावतीचरित्रे' या 'अम्मनवरचरित्रे' भी है। कथा रोमांचकारी घटनाओं से भरपूर है।
सूरसेन देश में, उत्तर मथुरा नाम की नगरी में, राह नाम का एक राजा हुआ है जो महाभारत के युद्ध में, कुरुक्षेत्र में, लड़ा था। उसकी जीत पर प्रसन्न होकर नारायण ने उसे एक शंख और वानर-ध्वज दिया था। वह मथुरा-भुजंग के नाम से प्रसिद्ध था। उसका जन्म उग्रवंश में हुआ था (भगवान पार्श्वनाथ भी इसी वंश के थे)। उसकी कई पीढ़ियों के बाद, इस वंश में सहकार नामक राजा हुआ । उसकी पटरानी का नाम श्रियादेवी था। वे दोनों जिनभक्त थे।