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धारवाड़ जिले के अन्य जैन-स्थल | 103 नाथ बसदि में दसवीं सदी की प्रतिमाएँ हैं। एक सुन्दर चौबीसी यहाँ लगभग साढ़े तीन फीट ऊँची है । उसके मूलनायक पार्श्वनाथ हैं, उन पर सात फणों की छाया है, यक्ष-यक्षी और मकरतोरण हैं। कोटुमचगी (Kotumachgi)
रोन तालुक के इस स्थान पर भी पार्श्वनाथ बसदि है। उसमें ग्यारहवीं सदी की प्रतिमाएँ हैं। एक कायोत्सर्ग तीर्थंकर प्रतिमा पर एक ही छत्र है और मकरतोरण का सुन्दर अंकन । पाँच फणों वाली एक पार्श्वनाथ प्रतिमा के साथ यक्ष-यक्षी, मकर-तोरण और कीर्तिमुख, एवं एक छत्र की सुन्दर संयोजना है। सर्पो के गले की सिलवटों का उत्कीर्णन विशेष रूप से आकर्षक है (देखें चित्र क्र. 36)। नरेगल (Naregal)
यहाँ एक नारायण मन्दिर (चित्र क्र. 37) है जो किसी समय जैन मन्दिर था। वहाँ पार्श्वनाथ और आदिनाथ की खण्डित प्रतिमाएँ हैं और चौबीसी की चौकी में प्रतिमाओं के लिए खाँचे बने हैं। गर्भगृह के द्वार के सिरदल पर जो आकृति थी वह निकाल दी गई है। ये प्रतिमाएँ 10वीं एवं 11वीं सदी की हैं। नविलगुन्द (Navilgund)
यहाँ की आदिनाथ बसदि अब खण्डहर है। यह भी 10वीं सदी की है। उसमें 10वीं और 11वीं सदी की मूर्तियाँ हैं । मुखमण्डप के नीचे बलिपीठ, शुकनासिका में एक आसीन तीर्थंकर, कायोत्सर्ग मुद्रा में तीर्थंकर आदिनाथ, उनके दाएँ तीर्थंकर पार्श्वनाथ, बाएँ सुपार्श्वनाथ की मूर्तियाँ हैं। चन्द्रप्रभ की भी एक भव्य प्रतिमा है (देखें चित्र क्र. 38)। ज्वालामालिनी देवी का प्राचीन मन्दिर भी यहाँ है। पड़े सुर (Padesur)
___ यहाँ की चन्द्रनाथ बसदि में तेरहवीं सदी को ढाई फीट ऊँची चन्द्रप्रभ की प्रतिमा अर्धपद्मासन में है। उसका आसन टूट गया है और भामण्डल साधारण है । दीवाल में बनी क्षतिग्रस्त चौबीसी के मूलनायक कायोत्सर्ग मुद्रा में तीर्थंकर आदिनाथ हैं। उनके बाएँ-दाएँ पाश्र्व और सुपार्श्व हैं। यह अंकन 12वीं सदी का है । सुखासन में ज्वालामालिनी की मूर्ति 14वीं सदी की है। यह स्थान नविलगुन्द तालुक में है। .. बटेगेरी (Bategeri)
___ गदग तालुक के इस स्थान में 11वीं सदी की खण्डित तीन मूर्तियाँ यक्षिणियों की पाई गई हैं जिनमें से एक चक्रेश्वरी है।