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हम्पी | 87
ब्राह्मी शिलालेख मिला है। चालुक्य शासकों का 1076 ई. का एक और शिलालेख भी प्राप्त हुआ है। यहाँ एक भूमिगत कक्ष भी प्रकाश में आया है जिससे अनुमान है कि यहाँ चालुवयकालीन कोई सांधार (प्रदक्षिणापथ युक्त) मन्दिर था। पुरातत्त्वविदों का यह अनुमान कि चालुक्य राजाओं का महल इस जगह था, इस खुदाई से ग़लत सिद्ध हो गया है। जहाँ राजदरबार लगता था उसके दक्षिण में भी विजयनगर-साम्राज्य से पहले के अवशेष मिले हैं। इनमें एक सुसज्जित चौकी (अधिष्ठान) पर एक मन्दिर था जिसके एक मण्डप में 60 स्तम्भ थे और दूसरे मण्डप में 100 स्तम्भ । लेखक की इस क्षेत्र की यात्रा के बाद समाचार प्रकाशित हुआ है कि खुदाई में दो प्राचीन जैन मन्दिर प्रकाश में आए हैं। इस प्रकार हम यह देखते हैं कि हम्पी में जैन मन्दिरों की संख्या काफी अधिक थी। उनकी संख्या या प्रतिशत भी बहुत
धिक रहा होगा। निश्चित ही यह क्षेत्र विजयनगर राजधानी की स्थापना से पहले ही एक प्रसिद्ध प्राचीन जैन केन्द्र रहा होगा।
6. महानवमी डिब्बा या दशहरा डिब्बा या राजसिंहासन मंच (throne platform) या विजय-सदन (House of Victory)-यह पाषाण निर्मित एक विशाल मंच है जिसे कृष्णदेव राय ने अपनी उड़ीसा-विजय के उपलक्ष्य में बनवाया था। यहाँ दशहरा उत्सव मनाया जाता था और, एक विदेशी यात्री के अनुसार, राजा अपना वैभव देखा करता था। उस समय आज के राज्य की गणतन्त्र दिवस जैसी परेड इसके सामने हुआ करती थी। यह मंच 15 फीट चौड़ा, 65 फीट लम्बा और करीब 40 फीट ऊँचा है। इस मंच पर कलात्मक स्तम्भ थे और अनेक तल के मण्डप थे जो आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दिये गए।
इस मंच की दीवालों पर नक्काशी ध्यान से देखने योग्य है।
पूर्व दिशा की दीवाल पर हाथी, ऊँट, घोड़ों, नर्तकियों, होली का दृश्य आदि कलाकारी के सुन्दर नमूने हैं। इनके बारे में पुरातत्त्वविद् लांगहर्ट ने लिखा है, "There is pronounced Jaina style about all these older bas-reliefs." इसी के पास 1883 ई. में स्वेल (Swell) को एक शिलालेख मिला था जिसमें जैनाचार्य मलधारीदेव के मरण का वृत्तान्त है। ये आचार्य श्रवणबेलगोल के मल्लिषेण मलधारीदेव (1129 ई.) के रूप में पहचाने गए हैं। यहाँ हंस और मगरमच्छों का जो उत्कीर्णन है, उसके बारे में भी लांगहर्ट का मत है कि यह शैली या इस प्रकार की नक्काशी, जैन और बौद्धों के अनुरूप "a favourite design of the early Jain's and Buddhists" है। (इस क्षेत्र में (हम्पी में) एक भी बौद्ध अवशेष प्राप्त नहीं होने से यहाँ बौद्ध प्रभाव का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता।)
इसी मंच की पूर्वी दीवाल के पास एक कक्ष है। उसकी दीवाल पर दो विदेशी राजदूतों (एक चीनी और एक अरबी) का अंकन है। इन्हें भी ध्यान से देखना चाहिए। यहीं एक ही पत्थर का ऐसा दरवाज़ा है जो हर बात में लकड़ी का दरवाज़ा मालूम पड़ता है।
उत्कीर्णन में आदमी की शेर से लड़ाई, शिकार के दृश्य और राजा के अश्व प्रदर्शित हैं। नर्तकियों और स्त्री-संगीतकारों आदि को देखकर भी लांगहरर्ट ने लिखा है, "Perhaps, nowhere is the Jaina influence more marked than in the bas-reliefs."
यहाँ सैनिकों आदि की केश-विन्यास शैली भी ध्यान देने लायक है। उनके बाल लम्बे होते थे और वे चोटी गूंथते थे। इन्हें देखकर भी लांगहर्ट ने यह मत व्यक्त किया है, "The