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धारवाड़ / 95
विशेष सूचना
हुबली को केन्द्र बनाकर अब 29 कि. मी. दूर धारवाड़, और समय हो तो, 'अमीनबावि' की यात्रा आसानी से की जा सकती है। कर्नाटक के अगले यात्रा-क्रम में हुबली वापस लौटना आवश्यक है। जोग झरनों और अतिशय क्षेत्र हुमचा के लिए हुबली से सिरसी पहुँचना होता है। सिरसी या सागर के लिए हुबली से भी बम्बई आदि दूर के स्थानों से आने वाली एक्सप्रेस बसों में कभी-कभी जगह मिल जाती है। सिरसी के लिए दो मार्ग हैं। एक, कलघटगी और येल्लापुर होते हुए (दूरी 191 कि.मी.) । दूसरा, हुबली से कुण्डगोल, लक्ष्मेश्वर (80 कि.मी.), वहाँ से बंकापुर (36 कि. मी.) तथा हनगल और आतूर (जंगल भरा रास्ता) होते हुए सिरसी (कुल 160 कि.मी. के लगभग)। जैन पर्यटकों के लिए दूसरे रास्ते की सिफारिश की जाती है ताकि वह लक्ष्मेश्वर का सहस्रकूट देख सके। वहाँ धर्मशाला नहीं है। जिनके पास अपना वाहन नहीं है उनके लिए यह अच्छा होगा कि वे लक्ष्मेश्वर देखकर वापस हुबली आ जाएँ और हुबली से सीधे सिरसी चले जाएँ।
धारवाड़
अवस्थिति एवं मार्ग
धारवाड़ (Dharwar) कर्नाटक का एक प्रमुख जिला है। प्राचीन समय में यहाँ जैन धर्म का काफी प्रसार था और आज भी है ।
पूना-बंगलोर राजमार्ग पर स्थित यह शहर बेलगाँव से 80 कि. मी. और हुबली से 21 कि. मी. दूर है। यहाँ गोआ से भी सीधे पहुँचा जा सकता है। पणजी से लोंढा नामक स्थान 100 किलोमीटर है और वहाँ से एक सड़क सीधी धारवाड़ आती है। लोंढ़ा से धारवाड़ 62 कि. मी. है। इस स्थान से बेलगाँव और कारवाड़ के लिए भी सड़क-मार्ग है।
बम्बई-पूना-मिरज (बड़ी लाइन, मिरज से छोटी लाइन) बेलगाँव-लोंढा होते हुए रेलमार्ग धारवाड़ (दक्षिण-मध्य रेलवे) पहुँचता है और हुबली होते हुए बंगलोर में समाप्त होता है।
धारवाड़ ऊँची-नीची भूमि पर सह्याद्रि की तलहटी में बसा होने के कारण एक सुन्दर स्थान लगता है। ऊँची भूमि के कारण शहर का कुछ भाग छिपा-सा जान पड़ता है। यहाँ का मौसम भी अच्छा होता है। मार्च के अन्त में और अप्रेल के प्रारम्भ में सबसे अधिक गरमी पड़ती है और अप्रैल के अन्त में गरज के साथ वर्षा प्रारम्भ हो जाती है । अपनी जलवायु के कारण इसे छोटा महाबलेश्वर कहा जाता है। सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी यह केन्द्र है। यहीं है एक ऊँची पहाड़ी पर धारवाड़ विश्वविद्यालय। उसी में है कन्नड़ अनुसंधान संस्थान (Kannada Research Institute)। इस संस्थान का एक सुनियोजित बड़ा संग्रहालय (museum) है जिसमें बहुत अधिक संख्या में जैन मूर्तियाँ संग्रहीत हैं। यहाँ रेडियो-स्टेशन भी है।