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100 | भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
सामने साधारण-सा मानस्तम्भ है और बलिपीठ भी है। सामने से मन्दिर एकदम साधारण लगता है। प्रवेश-सीढ़ियों से पहले चन्द्रशिला है। प्रवेश-द्वार के दोनों ओर की दीवाले साधारण हैं, उन पर कोई नक्काशी नहीं है। किन्तु मुंडेर के ऊपर द्रविड़ शैली का उत्कीर्णन है । उससे भी ऊपर का भाग क़िले के नमूने का दिखता है।
मन्दिर में गर्भगृह, बड़ा अर्धमण्डप और उससे भी बड़ा महामण्डप तथा रंगमण्डप हैं। इस प्रकार एक अविशिष्ट बसदि होते हुए भी यह मन्दिर विशाल है। वास्तुविदों का मत है कि इसके जीर्णोद्धार एव संवर्धन के कारण इसके भीतरी और बाहरी भागों में परिवर्तन होता रहा है (प्राचीन मन्दिरों में ऐसा होता ही है) । 'जैन कला और स्थापत्य' (भारतीय ज्ञानपीठ) में श्री सौन्दर राजन् ने यह मत व्यक्त किया है कि, “निर्मम विध्वंस और नाम-मात्र की पूजा के होते हुए भी यह भव्य मन्दिर छठी शती तक के अपने अतीत को यशोगाथा कह रहा है।"
प्रवेशद्वार के सिरदल पर पद्मासन तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं। प्रवेशद्वार पर पत्थर की जाली जैसा सुन्दर उत्कीर्णन है। इस बसदि के रंगमण्डप के तीन द्वार हैं-दक्षिण में, उत्तर में और पश्चिम में । इसको चौको (अविष्ठान) पर व्यावरि का जीवन्त अंकन है । मन्दिर के स्तम्भों और दीवालों पर लेख खुदे हुए हैं। तीनों प्रवेशद्वारों के सिरदल पर पद्मासन तीर्थंकरों का उत्कीर्णन है। उसको धरन (beams) पर भी पद्मासन में तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं।
सहस्रकूट-पर्यटक को सबसे अधिक आकर्षित करने वाली यहाँ की दुर्लभ कलाकृति है सहस्रकूट अर्थात् एक हज़ार जिन-प्रतिमाओं का एक ही शिलाखण्ड पर उकेरा जाना या यों कहें कि एक हजार प्रतिमाओं का छोटा-सा मन्दिर (देखें चित्र क्र. 35) । यह सहस्रकूट 11वीं सदी का है। इसकी ऊँचाई 5 फुट 3 इंच है। इसमें चारों ओर मूलनायक की कायोत्सर्ग मुद्रा में ढाई फुट ऊँची काले पाषाण की चमकदार पालिशवाली भव्य मूर्तियाँ हैं। उनके घुटनों के आस-पास पार्श्वनाथ और सुपार्श्वनाथ अंकित हैं । उनके दोनों ओर दो स्तम्भ हैं । मूलनायक के मस्तक से ऊपर का भाग त्रिकोणात्मक है। नीचे का भाग चतुष्कोण है। ऊपरी भाग में आलों में पद्मासन एवं कायोत्सर्ग तीर्थंकरों की कुछ बड़ी मूर्तियाँ हैं। शेष जिन-प्रतिमाएँ पद्मासन में हैं और उनका आकार छोटा है। सबसे ऊपर कीर्तिमुख है । और एक चतुष्कोणीय शिखर की आकृति है। कुल मिलाकर यह सहस्रकूट अकेला ही लक्ष्मेश्वर आने-जाने का सारा श्रम दूर कर मन में आनन्द और श्रद्धा का संचार कर सकता है।
शंख बसदि के नवरंग मण्डप के स्तम्भों पर बेलगाँव जैसी सुन्दर निर्मिति है। छत पर भी कमल का अच्छा अंकन हुआ है। यहाँ 10वीं और 11वीं शताब्दी की पद्मावती देवी एवं कुष्माण्डिनी देवी की क्रमशः 2 फुट और 4 फुट ऊँची मूर्तियाँ भी हैं। प्रवेश से बायीं ओर की पूरी दीवाल पर पत्र-पुष्प का बहुत ही मनोहारी अंकन है । गर्भगृह के अतिरिक्त उसके सामने के मण्डप में भी मूर्तियाँ विराजमान हैं। जो द्रविड़ शैली का उत्कीर्णन यहाँ है उसका बहुत-सा भाग नष्ट हो गया है। उसमें देवियाँ, मौक्तिक मालाएँ तथा कायोत्सर्ग तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं। गर्भगृह की इसी ओर की पूरी दीवाल पर नर्तकियों आदि की छोटी आकृतियाँ अंकित हैं। _ मन्दिर की पिछली दीवाल पर जो अंकन है वह विशेष रूप से आकर्षक या ध्यान देने योग्य है । यद्यपि उसका भी बहुत-सा भाग नष्ट हो गया है तदपि तीर्थंकरों की पद्मासन एवं