________________
ऐहोल | 49 अनुमान है कि यह गुफा-मन्दिर सातवीं सदी में निर्मित किया गया। यह भी माना जाता है कि इसका कुछ भाग प्राकृतिक है, कुछ भाग चट्टान काटकर बनाया गया है तो कुछ भाग मन्दिरों की भाँति निर्मित है। जो भी हो, गुफा-मन्दिर बादामी के गुफा-मन्दिर से भी विशाल किन्तु कम अलंकृत है।
गुफा-मन्दिर में दो मण्डप हैं जो कि ऊपर से बनाए गए हैं। छत में भी एक तीर्थंकर या भट्टारक मूर्ति उत्कीर्ण है । गर्भगृह की चौखट अनेक शाखाओं वाली है। उस पर सुन्दर अंकन है। उसे पशु, पत्रावली, पुष्पों, मानव आदि से खूब सजाया गया है। कुछ लघु मूर्तियाँ भी हैं। हाथ जोड़े भक्त भी प्रदशित हैं। यहाँ मस्तकहीन एक तीर्थंकर मूर्ति लगभग तीन फुट ऊँची है जो कि आठवीं शताब्दी की जान पड़ती है। इसके मण्डप के सिरे पर तीन शैलोत्कीर्ण मन्दिर भी निर्मित हैं।
मीन बसदि-मेगुटी पहाड़ी के दक्षिण-पूर्व में एक और जैन गुफा-मदिर है जो कि 'मीन बसदि' कहलाता है । यह एक तल का है और इसके ऊपर चट्टान है। इसका निर्माण भी सातवीं सदी के अन्त में या आठवीं सदी के प्रारम्भ में हुआ होगा, ऐसा माना जाता है। इसमें अरहनाथ की मति है जिसका लांछन मत्स्य है। प्रतिमा अर्धपद्मासन में है. उसके पीछे एक बड़ा तकिया है। भामण्डल साधारण है। ऊपर चँवरधारी और छत्रत्रय भी प्रदर्शित हैं। प्रतिमा सातवीं सदी की प्रतीत होती है।
यहीं पर पार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में फणावली युक्त प्रतिमा भी है। सर्पकूण्डली उसके पीछे की ओर गई है। एक फण से युक्त धरणेन्द्र, और पद्मावती को खड़े हुए दिखाया गया है। धरणेन्द्र के हाथ में एक छत्र है । ये दोनों दाहिनी ओर हैं । बाईं ओर विद्याधर उत्कीर्ण हैं। एक भक्त को बैठे दिखाया गया है। कमठ को ऊपर से उपसर्ग करते हुए दिखाया गया है।
तपस्या में रत बाहुबली की एक सुन्दर मूर्ति भी यहाँ है जो कि सातवीं शताब्दी की अर्थात श्रवणबेलगोल की प्रसिद्ध मूर्ति से भी प्राचीन है। बाहबली कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं। उनके पीछे जंगल जैसा प्रदर्शित है। उनके कन्धों पर केशों की जटाएँ स्वाभाविक रूप से लहराती दिखाई गई हैं । नीचे बामी के दोनों ओर सर्प निकलते दिखाये गये हैं। बाहुबली की दोनों बहिनें ब्राह्मी और सुन्दरी लताओं को बाहुबली के शरीर पर से हटाती हुई दिखाई गई हैं । (देखें चित्र क्र. 16)
मुख्य गर्भगृह की छत पर खिले हुए बड़े कमल के फूल का सुन्दर अंकन है। वह एक चौखटे में बना है। उसके आस-पास पुष्पावली सुन्दर ढंग से चित्रित है। उसके चारों ओर त्रिकोणों में मीन-युगल आदि मांगलिक पदार्थ उत्कीर्ण हैं।
गर्भगृह के सामने के मध्यवर्ती मण्डप की छत में भी बड़े आकार की मीन अंकित है। सम्भवतः इसी मीन के उत्कीर्णन के कारण ही इसे 'मीन बसदि' कहा गया। __इस मन्दिर में द्वारपाल का अंकन भी मोहक है। वह त्रिभंग मुद्रा में है। उसके एक हाथ में कमल है, दूसरा पढ़ पर है. और मोतियों की माला है। एक बौना पुरुष तथा अनुचरों सहित एक स्त्री भी अंकित है। महावीर की पद्मासन मूर्ति के अतिरिक्त यहाँ दो अर्धनिर्मित मूर्तियाँ है जो पार्श्वनाथ के माता-पिता की बताई जाती हैं । एक शोभा-यात्रा भी चित्रित है।