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56 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
यहाँ के शासकों में पुलकेशी द्वितीय अत्यन्त प्रतापी एवं उदार नरेश हुआ है। उसके समय में चालुक्य साम्राज्य की सीमा पूर्व में उड़ीसा, पश्चिम में धारापुरी (एलिफैण्टा), दक्षिण में पल्लव राज्य तक और उत्तर में नर्मदा नदी तक पहुँच गई थी। कन्नौज के सम्राट हर्षवर्धन से भी उसने टक्कर ली थी और उसे हराया था तथा 'परमेश्वर' की उपाधि ग्रहण की थी। उसने हर्षवर्धन को नर्मदा से आगे बढ़ने ही नहीं दिया। ईरान के शासक खुसरो ने उसके राजदरबार में अपना दूत भेजा था। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी पुलकेशी के राज्य की प्रशंसा की है। ऐहोल के मेगुटी मन्दिर (जैन मन्दिर) में जो शिलालेख आज भी लगा है, उसमें भी जैनाचार्य रविकीति ने इस नरेश और उसके पराक्रम एवं गुणों की जी भर प्रशंसा की है। चालुक्य वंश ने यहाँ 200 वर्षों तक राज्य किया। उनके बाद राष्ट्रकूटों ने, फिर कलचुरियों ने, तदनन्तर देवगिरि (दौलताबाद), विजयनगर, आदिलशाही आदि शासकों का यहाँ शासन रहा।
बादामी नगर लाल रंग के बलुआ पत्थरों वाले दो छोटे पहाड़ों के बीच में बसा हुआ है। ये पहाड़ लगभग 400 फुट ऊँचे हैं। इन्हीं दो पहाड़ों के बीच में स्वच्छ जल वाला एक सरोवर है जिसे 'अगस्त्य तीर्थ' कहा जाता है । पहाड़ियों के ऊपर किला है जिसमें जाने के लिए खतरनाक लगने वाली सीढ़ियाँ हैं। किले के लिए मार्ग गुफा-मन्दिर के पास से है किन्तु अब अच्छी दशा में नहीं है । गुफा-मन्दिर किले के पश्चिमी भाग में स्थित है। गुफा-मन्दिर
पर्यटन साहित्य और वास्तु-विवरणों में यहाँ चार गुफा-मन्दिर बताए जाते हैं। किन्तु वास्तव में यहाँ पाँच गुफाएँ हैं। एक गुफा, जो कि प्राकृतिक लगती है, तीसरी और चौथी गुफा के बीच में है। इसमें कुछ अंकन भी हैं किन्तु शायद यहाँ मन्दिर निर्मित होते-होते रह गया। इसके लिए कुछ बड़े पत्थरों पर से चढ़कर जाना पड़ता है, वैसे चार-पाँच सीढ़ियाँ भी हैं । यह अन्य गुफाओं के रास्ते में है । एक गुफा-मन्दिर तो शहर से ही दिखाई देता है।
बादामी से गदग की ओर जाने वाली सड़क पर, जहाँ बादामी नगर का अन्त मालूम पड़ता है वहीं, पहले निचली ढलान पर चलने के बाद गुफा-मन्दिरों तक जाने के लिए पहाड़ी पर पक्की सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। एक दीवाल जैसी रचना भी इन सीढ़ियों के साथ-साथ चलती है। इन सीढ़ियों से ऊपर जाने पर सबसे पहले हमें शैव-गुफा मिलती है जो कि गुफा-मन्दिर क्रमांक 1 है । यह शिला के अधोभाग में बना है। गुफा के ऊपर लगभग 30 फीट शिला जान पडती है। इसमें स्तम्भोंयूक्त बरामदा (मुखमण्डप), चौकोर स्तम्भोंयुक्त महामण्डप (हॉल)
और चट्टान को काटकर बनाया गया एक गर्भगृह है । गर्भगृह में शिवलिंग है जो उत्तरकालीन रचना जान पड़ती है। गुफा-मन्दिर क्रमांक 2 और 3 (दोनों ही वैष्णव) की तुलना में यह मध्यम आकार की है। इसमें मौक्तिक मालाओं एवं शिव के ताण्डव नृत्य सम्बन्धी दृश्य हमें आकर्षित करते हैं।
गुफा-मन्दिर क्रमांक 2 वैष्णव मन्दिर है। इसका बाहरी भाग तीस-पैंतीस फीट चौड़ा जान पड़ता है और इसके ऊपर का शिला-भाग लगभग पचास फीट। इसमें भी मण्डपों की रचना पहली गुफा के समान है। किन्तु इसमें छत पर स्वस्तिक, कमल आदि का अंकन, वादक