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लक्कुण्डि | 65 नवरंग मण्डप की छत में कमल की नक्काशी अत्यन्त आकर्षक है। सात गोल घेरों में और इन सबके केन्द्र में सूक्ष्म पराग द्वारा प्रदर्शित यह कमल बेलगाँव की 'कमल बसदि' के कमल की बराबरी करता जान पड़ता है।
___ मन्दिर के गर्भगृह का प्रवेशद्वार पंचशाखा प्रकार का है। उसके सिरदल पर पद्मासन में पार्श्वनाथ अपने परिकर सहित एक उभरे हुए आले में विराजमान हैं। नीचे एक नर्तक-दल चित्रित है।
गर्भगृह में भगवान नेमिनाथ की तीन फीट ऊँची प्रतिमा है। उसके आसपास मकरतोरणयुक्त चाप है। तीन छत्र भी देखे जा सकते हैं। सिंहासन पर सिंह उत्कीर्ण हैं (शायद इन्हें देखकर ही कुछ विद्वानों ने इसे महावीर स्वामी की प्रतिमा बताया है। वैसे पाँच या तीन सिंहों से युक्त आसन या चौकी अन्य तीर्थंकरों के लिए भी निर्मित होती थीं)। प्रतिमा के पीछे जो फलक है उस पर एक चँवरधारी भी प्रदर्शित है।
इस मन्दिर में और उसके बाहर कुल मिलाकर 6 शिलालेख हैं। ये सभी ऐतिहासिक महत्त्व के हैं।
___ मन्दिर के बाहर की दीवालों पर की गई कारीगरी विशेष रूप से दर्शनीय है। इन दीवालों में मोतियों की मालाओं, स्तम्भयुक्त चाप और मकरतोरण से सज्जित तिकोने आलों में मूर्तियों आदि का अंकन मन को लुभाता है। पानी बाहर निकालने के लिए प्रणाली भी है। शुकनासी पर हाथियों का सुन्दर उत्कीर्णन किया गया है। इसी प्रकार पशु-पक्षियों का अंकन भी दर्शनीय है । मन्दिर की मुंडेर पर गोल-गोल आले बनाए गए हैं जिनमें तीर्थंकरों की मूर्तियाँ दर्शायी गयी हैं। इन आलों को कीर्तिमुखों से सजाया गया है। कुल मिलाकर, यह मनोहारी मन्दिर दर्शनीय मन्दिरों में से एक है।
पार्श्वनाथ के स्थान पर नागनाथ
ब्रह्मजिनालय के पास ही में एक और जैन मन्दिर है जो अब नागराज मन्दिर कहलाता है। यह भी एक द्रविड़ शैली का मन्दिर है किन्तु इसके ऊपर का भाग ध्वस्त हो गया है। शिखर नहीं रहा। किन्तु इसकी शुकनासी पर गोल आलों में पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा देखी जा सकती है। हाथियों का भी सुन्दर अंकन है। इसके प्रवेश-स्तम्भ पर मोतियों की मालाओं का सूक्ष्म अंकन पर्यटक को आकर्षित करता है। प्रवेशद्वार के सिरदल पर भी पदमासन तीर्थंकर मति और चँवरधारी देखे जा सकते हैं। इसके अन्दर जो स्तम्भ हैं उन पर की गई कारीगरी एवं पॉलिश तथा उनके कोण विशेष रूप से देखने योग्य हैं।
नागराज मन्दिर के गर्भगृह में सिंहों से युक्त आसन है। उसके ऊपर तीन छत्र अंकित हैं। इस आसन पर किसी समय पार्श्वनाथ की मूर्ति विराजमान रही होगी। उसके पीछे एक सर्पकुण्डली का अनुपम उत्कीर्णन है। उसी के नाम पर अब यह नागराज मन्दिर कहलाने लगा है । जैन मूर्ति के स्थान पर अब शिवलिंग है।
___ नागराज प्रतिमा के सात फण हैं, मुकुट है, गले में हार और कमर में आभूषण हैं। कुण्डली के चित्रण में रेखाएँ खास महत्त्व की हैं । संभवतः यह धरणेन्द्र का अंकन है।
इस मन्दिर के पास लगभग 4 फीट की सिर-रहित एक तीर्थंकर मूर्ति पड़ी हुई है।