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हम्पी / 17 सन् 1516 ई. और 1519 ई. में उसने चिंगलपुट जिले की त्रैलोक्यनाथ बसदि को दो गाँव दान में दिए थे। बल्लारी जिले की एक बसदि को 1 528 ई. में उसने दान दिया था और शिलालेख अंकित कराया था। मूडबिद्री की गुरु बसदि को भी उसने स्थायी वृत्ति दी थी। सन् 1530 ई. के “एक जैन शिलालेख में स्याद्वाद मत और जिनेन्द्र के साथ आदिवराह और शम्भु को नमस्कार करना इस नरेश द्वारा राज्य की पारम्परिक नीति के अनुसरण का परिचायक है।" -(डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन)। वराह विजयनगर शासकों का राजकीय चिह्न था।
कृष्णदेवराय के बाद, अच्युतराय और सदाशिवराय नामक दो निर्बल शासकों ने 1530 से 1542 तक राज्य किया। उनके बाद कृष्णदेवराय के दामाद रामराय (अरविड वंश) ने अपने को राजा घोषित कर दिया । रामराय ने दक्षिण की मुस्लिम सल्तनत बीजापुर (आदिलशाही) को समाप्त करने की योजना बनाई किन्तु वह सफल नहीं हो सकी। उसके दावपेचों को देखकर अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुण्डा और बीदर के सुलतानों ने अपनी रक्षा के लिए सेनाएँ इकट्ठी की और सबने मिलकर विजयनगर पर हमले के लिए प्रस्थान किया। कृष्णा नदी के किनारे 18 जनवरी 1565 के दिन तलिकोटा नामक स्थान पर दोनों सेनाओं में भीषण युद्ध हुआ। विजयनगर की जीत होने ही वाली थी कि इस साम्राज्य के मुस्लिम सेनापतियों और सिपाहियों ने धोका दे दिया। (कहा जाता है कि विजयनगर की सेना में दस हजार मुस्लिम सिपाही थे।) युद्ध में, रामराय का हाथी घायल हो गया। रामराय ने पास खड़े घोड़े पर कूदने का प्रयत्न किया किन्तु अहमदनगर के सुलतान ने उसका सिर उड़ा दिया और उसे भाले पर टाँगकर प्रदर्शित किया । सेना में भगदड़ मच गई और एक साम्राज्य का अन्त हो गया।
सुलतानों की सेना ने विजयनगर को लगातार पाँच महीनों तक लूटा और नष्ट किया। हथौड़ों से प्रतिमाएँ, मन्दिर, कला-कृतियाँ नष्ट की गईं। नर-संहार भीषण रूप से हुआ और कुछ ही समय के बाद राजधानी वीरान हो गई और उसमें सिंह जैसे हिंसक जन्तु घूमने लगे। जो नगर अपने चौडे मार्गों, छायादार वक्षों, नहरों, मन्दिरों तथा नीब और सन्तरों की बहतायत एवं हीरे जवाहरात के व्यापार तथा धार्मिक सहिष्णुता एवं साहित्यिक अभिवृद्धि के लिए प्रसिद्ध था, वह एक पुरानी स्मृतिमात्र रह गया। बीजापुर की अधीनता के बाद यह क्षेत्र औरंगजेब के साम्राज्य का अंग बन गया।
एक सावधानी
हम्पी के अवशेषों को देखने के लिए यहाँ का नक्शा अत्यन्त आवश्यक है अन्यथा बहुतसी अच्छी चीजें छूट जाएँगी और पर्यटक का आना व्यर्थ हो सकता है। विरूपाक्ष मन्दिर के पास रामकृष्ण मिशन की पुस्तक दूकान से एक नक्शा निःशुल्क मिलता है जो कि लांगहर्ट की पुस्तक से लिया गया है किन्तु उसमें 'गाणिगित्ति' जैन मन्दिर नहीं है। कुछ अन्य क्षेत्र भी नहीं हैं। इसलिए यह उचित होगा कि पर्यटक इस पुस्तक में दिए गए क्रम से भ्रमण करे।
____ऊपर यह कहा गया है हम्पी में कलावशेष 26 कि.मी. के घेरे में फैले हुए हैं। इसका यह अर्थ बिलकुल नहीं है कि पर्यटक को 26 कि.मी. के क्षेत्र में घूमना है। वास्तव में, ये अवशेष मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किए जाते हैं—(1) मन्दिर-क्षेत्र जो कि थोड़े-से पहाड़ी क्षेत्र और तुंगभद्रा नदी के किनारे-किनारे फैला हुआ है। इस क्षेत्र में वृक्षविहीन ग्रेनाइट पत्थर की