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72 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
कमलापुर में भी निरीक्षण बंगला है कि किन्तु वहाँ ठहरना भोजन आदि की दृष्टि से असुविधाजनक ही रहेगा।
पौराणिक एवं ऐतिहासिक सन्दर्भ
अजैन जनता के लिए यह पम्मा तीर्थ है जिसका सम्बन्ध विरूपाक्ष (शिव) और पार्वती से है। यह किष्किन्धा क्षेत्र भी कहलाता है। मान्यता है कि बाली-सुग्रीव सम्बन्धी रामायण की घटनाएँ यहीं घटित हुई थीं। यहीं अंजनगिरि है जहाँ हनुमान का जन्म हुआ था। यहाँ बहने वाली तुंगभद्रा का नाम पम्पा था जो कि कन्नड़ में हम्पी (हम्पे) हो गया और उसी के नाम से यह नगर प्रसिद्ध हो गया।
भूवैज्ञानिकों का मत है कि यह क्षेत्र उस गोंडवाना क्षेत्र में आता है जो कि किसी समय अफ्रीका महाद्वीप से जुड़ा हुआ था।
इस क्षेत्र में प्रागैतिहासिक काल के अवशेष भी मिले हैं; जैसे वृषभ, नग्न स्त्री-पुरुष इत्यादि।
रामायण काल से तो इस क्षेत्र का सम्बन्ध आज भी माना जा रहा है। उस युग की यह किष्किन्धा नगरी है। यहीं सुग्रीव का राज्य था। जैन मान्यता के अनुसार यह राजा वानरवंश का था। उसकी ध्वजा पर वानर (बन्दर) का चिह्न था । वानर-वंशी बहुत ही सभ्य और उन्नत जाति के लोग थे। यहीं पर आज की तुंगभद्रा नदी (प्राचीन काल की पम्पा नदी) के उस पार अंजनगिरि में हनुमान का जन्म हुआ था। वे वानर-वंश के थे । आख्यान है कि यहीं राम को पता चला था कि रावण सीता को उठा ले गया है। पश्चात् वे सुग्रीव को साथ लेकर लंका की ओर गये थे। इसी स्थान पर सुग्रीव की गुफा बताई जाती है जहाँ सुग्रीव ने सीता के आभूषण सुरक्षित रखे थे। यहीं के एक पर्वत माल्यवन्त पर राम ने कुछ समय तक निवास किया था। शैव कथा है कि यहीं ब्रह्मा की पुत्री पम्पादेवी ने तपस्या की थी और उनका विवाह विरूपाक्ष (शिव) से हुआ था।
ऐतिहासिक युग में, आज से लगभग चौबीस सौ वर्ष पूर्व, यहाँ पाटलिपुत्र (पटना) के जैन धर्मानुयायी राजाओं का शासन था। उस युग में यह प्रदेश कुन्तल देश कहलाता था। यह नाम अनेक शताब्दियों तक प्रयुक्त होता रहा (लगभग दो हजार वर्षों तक)।
नन्द-राजाओं का शासन चन्द्रगुप्त मौर्य ने समाप्त कर दिया था। सम्राट चन्द्रगुप्त दिगम्बर मुनि हो गए थे और उन्होंने श्रवणबेलगोल की चन्द्रगिरि पर आचार्य भद्रबाहु की सेवा की थी और वहीं समाधिमरण किया था। आधुनिक बल्लारी जिले में मास्की आदि स्थानों पर अशोक के शिलालेखों से इस बात की पुष्टि होती है कि यह प्रदेश मौर्य साम्राज्य का अंग था।
यहाँ ईसा की दूसरी शताब्दी का एक ब्राह्मी शिलालेख भी मिला है।
मौर्य साम्राज्य के क्षीण पड़ने पर आन्ध्र में सातवाहन शासकों का उदय हुआ जिन्होंने ईसा से 200 वर्ष पूर्व से लेकर ईसा की दूसरी शताब्दी तक राज्य किया। इसमें कुन्तल प्रदेश भी सम्मिलित था। इनकी राजधानी पैठन (प्रतिष्ठानपुर) थी। वैदिक ग्रन्थ 'ऐतरेय ब्राह्मण' में इन्हें अनार्य एवं दस्यु कहा गया है। प्राचीन जैन साहित्य में इनका उल्लेख 'पैठन का शालिवाहन