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60 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) अवस्थिति एवं मार्ग
लक्कुण्डि का प्राचीन नाम लोक्किगुण्डि था। लोविक स्थान का नाम था और 'गद्याण' (गुण्डि) सिक्कों का नाम । यहाँ सोने के सिक्के बनाने की टकसाल थी।
लक्कुण्डि धारवाड़ जिले के गदग तालुक का एक गाँव है। यह गाँव गदग से ग्यारह कि. मी. की दूरी पर है और कारवाड़-हुबली-गदग-होसपेट-बल्लारी मुख्यमार्ग के किनारे पर स्थित है । एकदम सड़क के किनारे बसा हुआ है यह।
बादामी से रोन (Ron, 32 कि. मी.) होते हुए गदग सड़क-मार्ग द्वारा पहुँचा जाता है। गदग से दिन में सात-आठ बार सिटी बसें केवल लक्कुण्डि तक आती-जाती हैं, टेम्पो भी चलते हैं और मुख्य मार्ग पर अन्य स्थानों को जाने वाली बसें भी उपलब्ध हैं।
रेल-मार्ग (हुबली-शोलापुर लाइन) द्वारा गदग की बादामी से दूरी 68 कि. मी. है। यहाँ से रेल द्वारा हुबली केवल 59 कि. मी. है।
लक्कुण्डि में ठहरने की व्यवस्था नहीं है इसलिए यह अधिक उचित होगा कि गदग को केन्द्र बनाकर लक्कुण्डि की यात्रा की जाए। निजी वाहन वाले सीधे ही यहाँ पहुँच सकते हैं।
गदग सम्बन्धी कुछ उपयोगी जानकारी इस प्रकार है-यह एक छोटा शहर है, ठहरने के लिए बस स्टैण्ड के पास जो बाज़ार है उसमें पास ही कुछ होटल हैं। यहाँ अनेक कॉटन-मिल हैं। क्लॉथ मार्केट के पास राजस्थान जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ का जैनभवन और श्वेताम्बर मन्दिर है तथा हेमचन्द्राचार्य ज्ञानमन्दिर भी है। गुजराती रोड पर एक धर्मशाला भी है किन्तु उसमें भी श्वेताम्बर यात्रियों को ही ठहरने की सुविधा दी जाती है। अतः दिगम्बर यात्रियों को शाकाहारी होटलों में ही ठहरना चाहिए।
ऐतिहासिक महत्त्व
बादामी के चालुक्यों को परास्त कर राष्ट्रकूट वंश के शासकों ने इस क्षेत्र में सत्ता हथिया ली थी। किन्तु दसवीं शताब्दी के अन्त में चालुक्यों का पुनः उदय हुआ और उन्होंने कल्याणी को अपनी राजधानी बनाया। इन चालुक्यों में तैलप एक वीर, पराक्रमी और यो य शासक हुआ है। इसी तैलप ने धार के परमार राजा मुंज को छह बार हराकर बन्दी बनाया था। तैलप की बहिन मृणालवती और मुंज के प्रेम की गाथा भी इतिहास-प्रसिद्ध है । यह राजा सर्वधर्म-सहिष्णु था। आधुनिक कर्नाटक के बल्लारी जिले के कोगलि नामक स्थान को चेन्नपार्श्वनाथ बसदि के 992 ई. के शिलालेख से ज्ञात होता है कि यह राजा जैन धर्म का अनुयायी था। उसने कन्नड़ के सुप्रसिद्ध कवि रन्न को 'अजित पुराण' नामक महाकाव्य पूर्ण करने पर 'कवि-चक्रवर्ती' की उपाधि से विभूषित किया था। कहा जाता है कि लक्कुण्डि का 'ब्रह्म जिनालय' भी इसी राजा ने निर्मित करवाया था। जिनभक्त अत्तिमब्बे
तैलप का एक महादण्डनायक नागदेव था। उसकी पत्नी अत्तिमब्बे अत्यन्त जिनभक्त और दानशीला थी। उसे 'दानचिन्तामणि' की उपाधि प्रदान की गई थी। उसने 'ब्रह्मजिनालय' के लिए भी दान दिया था। ऐसा उल्लेख 1007 ई. के लक्कुण्डि के शिलालेख में है। इस