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लक्कुण्डि / 61
महिला ने रत्नों की 1500 जिन-मूर्तियाँ बनवाकर विभिन्न मन्दिरों में दान में दी थीं। इसी प्रकार उसने कन्नड़ कवि पोन्न द्वारा रचित 'शान्तिपुराण' की एक हजार प्रतियाँ लिखवाकर विभिन्न मन्दिरों को भेंट की थीं। उसके सतीत्व के प्रभाव से गोदावरी का वेग रुक गया था, ऐसी भी जनश्रुति है। 'अजितपुराण' में कवि ने दानशीला अत्तिमब्बे के सम्बन्ध में लिखा है"सफेद रुई के समान अत्तिमब्बे का चरित्र शुभ्र है, गंगाजल के समान पवित्र है, अजितसेन मुनि के चरणों के समान पूज्य है तथा सुशोभित कोपणाचल के समान पवित्र है।"
विभिन्न शिलालेखों, साहित्यिक कृतियों के आधार पर अत्तिमब्बे की जीवन एवं चमत्कारी घटनाओं का जो वर्णन डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन ने अपनी पुस्तक 'प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष एवं महिलाएँ' में दिया है उसे यहाँ उन्हीं के शब्दों में उल्लिखित कर देना उपयुक्त होगा
_ "कल्याणी के उत्तरवर्ती चालुक्यों के वंश एवं साम्राज्य की स्थापना में जिन धर्मात्माओं के पुण्य, आशीर्वाद और सद्भावनाओं का योग रहा, उनमें सर्वोपरि महासती अत्तिमब्बे थीं जिनके शील, आचरण, धार्मिकता, धर्म-प्रभावना, साहित्य-सेवा, वैदुष्य, पातिव्रत्य, दानशीलता आदि सद्गुणों के उत्कृष्ट आदर्श से तैलपदेव आहवमल्ल का शासनकाल धन्य हुआ। इस सम्राट के प्रधान सेनापति मल्लप की वह सुपुत्री थीं, वाजीवंशीय प्रधानामात्य मंत्रीश्वर धल्ल की वह पुत्रवधू थीं, प्रचण्ड महादण्डनायक वीर नागदेव की वह प्रिय पत्नी थीं और कुशल प्रशासनाधिकारी वीर पदुवेल तैल की स्वनामधन्या जननी थीं। युवराज सत्याश्रय उनके पति का अनन्य मित्र था और उनको बडी भौजाई मानकर अत्यन्त आदर करता था। स्वयं सम्राट तैलप उन्हें अपने परिवार की ही सामान्य सदस्या मानता था। एक बार मालवा का सुप्रसिद्ध परमारनरेश वाक्पतिराज मुंज एक भारी सेना के साथ धावा मारता हुआ तैलपदेव के राज्य के भीतर तक घुस आया तो चालुक्य सेना ने तत्परता के साथ उसका गत्यवरोध किया और फिर उसे खदेडते हए उसके राज्य मालवा की सीमा के भीतर तक उसका पीछा किया। स्वयं सम्राट् तैलपदेव तो गोदावरी नदी के दक्षिणी तट पर शिविर स्थापित करके वहीं रुक गया, किन्तु उसकी सेना की एक बड़ी टुकड़ी महादण्डनायक नागदेव और युवराज सत्याश्रय के नेतृत्व में नदी पार करके परमार सेना का पीछा करती हुई दूर तक चली गयी। इस बीच भारी तूफ़ान आया और गोदावरी में भयंकर बाढ़ आ गयी । उफनते हुए महानद ने विकराल रूप धारण कर लिया। चालुक्य शिविर में भारी चिन्ता और बेचैनी व्याप गयी। महाराज, महामन्त्री, सेनापति आदि तथा राजपरिवार की अनेक महिलाएँ भी शिविर में थीं जिनमें अत्तिमब्बे भी थीं। उनकी तथा अन्य सबकी चिन्ता स्वाभाविक थी। नदी के उस पार गये लोगों में से कौन और कितने वापस आते हैं, और कहीं परमारों ने पुनः बल पकड़कर उन्हें धर दबाया और नदी तट तक खदेड़ लाये तो उन सबके प्राण जायेंगे । इधर से नदी की बाढ के कारण न उन्हें सहायता पहुँचायी जा सकती है और न वे स्वयं ऐसे उफनते नद को पार कर सकते हैं। विषम परिस्थिति थी। सबकी दृष्टि नदी के उस पार लगी थी, प्रतीक्षा के क्षण लम्बे होते जा रहे थे, उनकी समाप्ति का कोई लक्षण नहीं था, कि अकस्मात् देखा गया कि जिस बात की आशंका थी प्रायः वही घटित होनेवाली थी। संकेतविद्या में सुदक्ष कर्मचारियों ने उस पार का समाचार ज्ञात करके बताया कि जितने लोग मूलतः उस पार गये थे, उनमें से आधे