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58 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) के एक-एक इंच स्थान का उपयोग तीर्थंकर मूर्तिरूपी रत्नों से मण्डित करने में किया गया है। कुछ मूर्तियाँ खड्गासन हैं तो कुछ पद्मासन में । स्तम्भों को सुरसुन्दरियों के अंकन से भी सजाया गया है।
इस गुफा-मन्दिर की छत में भी सुन्दर, आकर्षक उत्कीर्णन है। इसके केन्द्रीय भाग में आकाशचारी विद्याधर प्रदर्शित हैं । उनका अंकन ऐसा है मानो उनके वस्त्रों में हवा भर गई हो और वे सचमुच ही हवा में तैर रहे हों। इस प्रकार का अंकन ऐहोल को छोड़कर कर्नाटक में शायद ही और कहीं हो। इसी प्रकार एक भाग में कुण्डली मारे नाग का अंकन भी मन को लुभाता है। यहाँ रंगीन दृश्य भी अंकित हैं।
उपर्युक्त गुफा-मन्दिर को तीर्थंकर मूर्तियों का एक विशाल संग्रहालय कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। फिर भी तीन विशालकाय मूर्तियों की ओर हमारा ध्यान विशेष रूप से जाता है । ये मूर्तियाँ भगवान आदिनाथ, सुपार्श्वनाथ और बाहुबली की हैं।
आदिनाथ की प्रतिमा लगभग 8 फीट ऊँची है और चौथे स्तम्भ से जुड़े बरामदे की दाहिनी दीवाल में है। ये आदिनाथ चौबीसी के मूलनायक हैं। उनके ऊपर तीन छत्रों का अंकन है जिनके बीच में एक पद्मासन तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं। छत्रों के ऊपर गोलाकृति में फूलपत्ती अंकित हैं। इस कायोत्सर्ग प्रतिमा के दोनों कन्धों तक जटाएँ प्रदर्शित हैं। सिर के दोनों ओर चँवर तथा पीछे भामण्डल दर्शाए गए हैं। यक्ष-यक्षी भी उत्कीर्ण हैं।
बरामदे के बाईं ओर सुपार्श्वनाथ की लगभग 8 फीट ऊँची प्रतिमा है। इस पर पाँच फण हैं। यह मूर्ति कायोत्सर्ग मुद्रा में है। इसके फणों के ऊपर भी फण जान पड़ता है। एक भक्ता को घुटनों के पास बैठी दिखाया गया है। यह महिला जक्कव्वा है जिसने, यहाँ लगे शिलालेख के अनुसार, बारहवीं सदी में समाधिमरण किया था। . इस गुफा-मन्दिर की पार्श्वनाथ मूर्ति भी दर्शनीय है। कायोत्सर्ग मुद्रा में यह मूर्ति सात फणों से युक्त है। किन्तु उस पर एक ही छत्र अंकित है। सर्प-कुण्डली भगवान की मूर्ति के पीछे तक गई है। बाहुबली की अद्भुत प्राचीन मूर्ति
इस गुफा-मन्दिर में बाहुबली (चित्र क्र. 20) की लगभग 8 फीट ऊँची एक सुन्दर प्रतिमा है। यह श्रवणबेलगोल की प्रतिमा से भी प्राचीन है। इस मूर्ति का निर्माण ईसा की छठी या अधिक से अधिक सातवीं सदी में अर्थात् लगभग 1300 वर्ष पूर्व हुआ होगा। साधारण तौर पर, बाहुबली प्रतिमा के कन्धों पर जटाओं का अंकन नहीं किया जाता, किन्तु इस प्रतिमा के दोनों कन्धों पर केशों की दो-दो लटें लटकती हुई अंकित की गई हैं। इसके पैरों के पास एक-एक सर्प दोनों ओर घुटनों से नीचे तक उत्कीर्ण हैं और घुटनों से ऊपर भी दोनों ओर एक-एक सर्प प्रशित हैं। दोनों ओर एक-एक सर्प की पूंछ कन्धों के पास बल खाकर सिर की ऊँचाई तक चित्रित की गई हैं । बाहुबली की दोनों बहिनों-सुन्दरी और ब्राह्मी का भी यहाँ सुन्दर अंकन है। बाहुबली के केशों का जूड़ा भी आकर्षक रूप में उत्कीर्ण है। कुल मिलाकर, यह प्रतिमा अद्भुत, आकर्षक एवं अपने ढंग की निराली है।
महामण्डप के बाद, चट्टान को ही काटकर बनाया गया एक छोटा-सा गर्भगृह है । इसमें