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ऐहोल | 51 (संघ) के शेट्टी केशवय्य ने इस मन्दिर की मरम्मत और संवर्धन के लिए. स्थायी दान दिया था। शिलालेख से यह भी स्पष्ट होता है कि उस समय (11वों सदी में) यह मन्दिर जीर्ण हो चुका था अर्थात् यह मन्दिर भी बहुत प्राचीन है । उत्तरी छोर पर जो एक उपमन्दिर है उसके द्वार की चौखट पर भी सुन्दर नक्काशी है। दरवाजों पर चौबीस तीर्थंकर उत्कीर्ण किए गए हैं । चारण्टी मठ से एक चौकोर गलियारा है और द्वार की चौखटों पर विमानों की अनुकृतियाँ हैं। इसका शिखर दक्षिण भारतीय शैली का है। ये मन्दिर किसी समय चारण्टी मठ के आधीन हो गए, इसलिए चारण्टी मठ मन्दिर कहलाते हैं।
चारण्टी मठ के पास का मन्दिर सातवीं या आठवीं शताब्दी का अनुमानित किया जाता है । इसमें सम्भवतः महावीर स्वामी की मूर्ति रही होगी। अब उसकी हथेलियाँ नहीं हैं । आसन भी ध्वस्त है। उस पर पाँच सिंह और दोनों ओर हस्ति-शीर्ष का अंकन है। गर्भगृह का द्वार पचशाखा प्रकार का है। बायाँ भाग टूट गया है। उसके सिरदल पर पद्मासन तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं । स्तम्भों को सुन्दर ढंग से उत्कीर्ण किया गया है। दो उपमन्दिर भी हैं जिनके प्रवेशद्वारों के सिरदल पर पद्मासन में तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं। एक खड्गासन खण्डित प्रतिमा भी है।
यह मन्दिर समूह मदिनगुडी और त्र्यम्बकेश्वर मन्दिर समूहों के पास है। ऐहोल में एक संग्रहालय भी है जिसमें खण्डित तीर्थंकर प्रतिमाएँ हैं।
येनियवारगुड़ी मन्दिर समूह में 6 मन्दिर हैं। इस समूह के पश्चिम-मुखी एक मन्दिर की रचना दसवीं सदी की जान पड़ती है। उसमें प्रवेश के लिए उत्तर की ओर स्तम्भोंयुक्त एक प्रवेश-मण्डप है। उसके सिरदल पर गजलक्ष्मी का अंकन है। इसकी सजावट के लिए व्यालवरि का अंकन दर्शनीय है। यह भी दो-मंज़िला है। किन्तु अब शिखर, स्तूपी या ग्रीवा कुछ भी शेष नहीं है। यह भी दक्षिण भारतीय या द्रविड शैली का मन्दिर है। इसके आस-पास के मन्दिरों में भी अब मूर्ति नहीं हैं।
उपर्युक्त समूह का एक और मन्दिर है जिसका मुख दक्षिण की ओर है । यह मन्दिर चौकोर मण्डप-प्रकार का है। उसमें अलंकरणयुक्त चार भित्ति स्तम्भ हैं। इसकी छत समतल है और मुंडेर से युक्त है किन्तु नीचे की ओर की छत ढलुआ है।
इसी समूह के एक और मन्दिर (केन्द्रीय) का मुख्य आकर्षण उसके द्वार का सुन्दर उत्कीर्णन या सज्जा है। अब गर्भगृह में एक वृत्ताकार पीठ है और उस पर शिवलिंग स्थापित है। इसके नवरंग के दो कोनों पर दो उपमन्दिर भी हैं। चौकी साधारण है।
योगीनारायण मन्दिर समूह में एक बड़ा पूर्व-मुखी मन्दिर है। यह मन्दिर त्रिकूट या तीन मन्दिरों का समूह है। तीनों मन्दिरों की एक वीथिका (गैलरी) है जो बाहरी मण्डप की ओर खुलती है । गर्भगृह में जो पादपीठ है और जो अन्य चिह्न हैं, उनसे ज्ञात होता है कि यहाँ किसी समय भगवान महावीर की मूर्ति विराजमान रही होगी। किन्तु अब यहाँ महावीर के स्थान पर कार्तिकेय की प्रतिमा स्थापित है। त्रिकूट के गर्भगृह में पार्श्वनाथ की पॉलिशदार मूर्ति है। इस मन्दिर का शिखर अब शेष नहीं है। इसकी रचना-शैली से इसे दक्षिण भारतीय शैली का माना जाता है। मन्दिर के स्तम्भ बलुआ पत्थर के हैं । इस कारण भी इसकी प्राचीनता सिद्ध होती है। यह मन्दिर-समूह विरूपाक्ष मन्दिर के पास है।