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स्तवनिधि | 21
दूसरे देवकोष्ठ में जो गर्भगृह है उसके बाहर दो वेदियाँ और हैं जिन पर उपर्युक्त प्रतिमाएँ आदि स्थापित हैं । कोष्ट का प्रवेशद्वार पीतल का है।
तीसरा कोष्ठ ब्रह्मदेव का स्थान है। उनके एक ओर शान्तिनाथ विराजमान हैं। यह प्रतिमा पद्मासन में है। उस पर तीन छत्र हैं । चँवरधारी सिर तक उत्कीर्ण हैं। प्रतिमा के ऊपर कीर्तिमुख भी है। इस पर बेलबूटेदार तोरण है । यह प्रतिमा लगभग दो सौ वर्ष प्राचीन बताई जाती है।
इस कोष्ठ में स्थापित ब्रह्मदेव की मूर्ति बहुत विशाल है। उस पर सिन्दूर पुता है। इस मूर्ति के विषय में यह जनश्रुति है कि किसी समय ब्रह्मदेव विशाल थे। कालान्तर में वे छोटे हो गए, उनके तीन खण्ड हो गए। पहले उन्हें बैठकर देखना पड़ता था इतने विशाल थे वे । उनके कोष्ठ का प्रवेश-द्वार चाँदी का था। बाद में पीतल का बना दिया गया। इस कोष्ठ में एक स्थान ऐसा है जहाँ मनौती के लिए नारियल फोड़ा जाता है।
ब्रह्मदेव सम्बन्धी अतिशय से इस क्षेत्र की जैन-अजैन जनता बड़ी प्रभावित है। कहा जाता है, यदि कोई भावपूर्वक इनके दर्शन करता है तो उसकी मनोकामना दर्शन करने के कुछ ही दिनों बाद पूरी हो जाती है। यहाँ प्रतिदिन जैन-अजैन जनता दर्शन के लिए काफी संख्या में आती है। भक्तजन विशेष रूप से नारियल चढ़ाते हैं । फूल, कपड़ा, सोना, चाँदी आदि भी चढ़ाए जाते हैं।
यहाँ जनवरी (पौष वदी अमावस्या) को मेला लगता है जिसमें जैन-अजैन भारी संख्या म आते हैं।
स्तवनिधि मन्दिर के ऊपर की मंजिल पर एक सहस्रकूट चैत्यालय भी है जो कि भद्रमण्डप कहलाता है। यहाँ एक सर्वतोभद्रिका भी है। इसमें चारों ओर चार तीर्थंकर हैं । एक ओर कायोत्सर्ग मुद्रा में नेमिनाथ हैं तो दूसरी ओर आदिनाथ, पार्श्वनाथ का भी अंकन है। मूलनायक के रूप में पद्मासन में महावीर स्वामी छत्रत्रय युक्त हैं । सर्वतोभद्रिका प्राचीन बताई जाती है। हर मूर्ति के ऊपर कोणीय शिखर है। देवकुलिका लकड़ी की है।
मन्दिर के तीन ओर पहाड़ो है। सामने जो सीढ़ियाँ दिखाई देती हैं वे क्षेत्रपाल मन्दिर तक जाती हैं।
मन्दिर के तीनों ओर धर्मशाला है। कुल पच्चीस कमरे हैं। बिजली-पानी की व्यवस्था भी है। ऊपर के हर कमरे में स्नानघर की व्यवस्था है किन्तु नीचे नल नहीं है । क्षेत्र की पानी की टंकी में पहाड़ी झरने का पानी निरन्तर आता रहता है जो कि ठण्डा होता है और मीठा है। इस धर्मशाला में ठहरकर यात्री पहाड़ी स्थान की उपयोगिता एवं आनन्द का अनुभव करता है। ठहरने का शुल्क दान के रूप में लिया जाता है।
यदि पूरी बस इस क्षेत्र पर आए तो यात्रियों को ठहराने के लिए भी वहाँ एक बड़ा हाल है। उसमें एक समय में लगभग 200 यात्री ठहर सकते हैं । इस हाल के साथ एक रसोईघर भी है। इसका शुल्क भी दान के रूप में लिया जाता है।
___ मन्दिर के बाहर नारियल आदि अन्य सामान की छोटी-मोटी दुकानें हैं। कुछ-एक फोटोग्राफर भी यहाँ निवास करते हैं। आवश्यकता का सामान यहाँ उपलब्ध हो जाता है। मन्दिर के