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40 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
का पाया गया है जिसके संस्कृत-कन्नड लेख से ये बातें ज्ञात होती हैं-(1) विद्यानन्द स्वामी के शिष्य सिंहनन्द्याचार्य के शिष्य हरियण्ण सूरि का शक संवत् 1354 में समाधिमरण हुआ था। (2) सिंहनन्द्याचार्य के शिष्य मुनियण को बन्दवाडि की नेमिनाथ बसदि के लिए शक सं. 1347 को वागुरुम्बे ग्राम तथा शक संवत् 1355 में अक्षय नामक ग्राम दान में दिए गए थे। (3) उस समय विजयनगर के राजा देवराय द्वितीय के अर्न्तगत लक्कप्प के पुत्र त्रियम्बक का गोआ पर शासन चल रहा था। (4) बन्दवाडिग्राम को प्राचीन काल में श्रीपाल राजा द्वारा बसाया गया था तथा वहाँ मंगदण्ड के पुत्र विरुगप ने तीर्थंकर नेमिनाथ का मन्दिर बनवाया था जिसका जीर्णोद्धार आचार्य सिंहनन्दि की प्रेरणा से किया गया था।
उपर्युक्त लेख से पता चलता है कि पन्द्रहवीं शताब्दी से पहले भी गोआ में जैनधर्म का प्रचार था और वहाँ जिन-मन्दिरों का निर्माण होता था।
गोआ सरकार ने 'Tourist Directory' नामक एक पुस्तिका प्रकाशित की है जो हर पर्यटक को प्राप्त कर लेनी चाहिए। उसमें पूजा-स्थान (Places of worship) के अर्न्तगत हिन्दू मन्दिरों की एक सूची दी गई है । इस सूची में यह उल्लेख है कि पुराने गोआ में श्री गोमटेश्वर (Shri Gomateshwar) का एक मन्दिर है। इस मन्दिर को ढूंढ़ते हुए जब प्रस्तुत लेखक वहाँ पहुँचा तो यह ज्ञात हुआ कि यह मन्दिर बाहुबली (गोमटेश्वर) से सम्बन्धित नहीं है बल्कि यह गोमन्तेश्वर या शिवजी का मन्दिर है। जैन पर्यटक को इस उल्लेख से भ्रान्ति हो सकती है।
पुराने गोआ में एक विशाल भवन में भारतीय पुरातत्त्व विभाग का एक विशाल संग्रहालय दर्शनीय तो है किन्तु उसमें कोई जैन पुरावशेष नहीं हैं। इसीके अहाते में एक बड़ा-सा चर्च है जिसमें ईसा की सुन्दर मूर्तियाँ हैं । यह संग्रहालय पणजी जाने वाले मुख्य मार्ग पर ही स्थित है।
बताया जाता है कि 16 वीं शताब्दी में आदिलशाह ने इस शहर को बसाया था और वह अपनी राजधानी बीजापुर से यहाँ लाना चाहता था। किन्तु अलबुकर्क और उसके साथियों ने इस पर अपना कब्जा कर लिया। स्मरण रहे, गोआ 1961 तक पुर्तगालियों के कब्जे में था और जब समझदारी से वे नहीं हटे तो स्वतन्त्र भारत की सेना ने पुलिस कार्रवाई करके पुर्तगालियों को भगा दिया।
गोआ को पर्यटकों का स्वर्ग कहा गया है। उसके प्रति पाश्चात्य पर्यटक तो काफी संख्या में आकर्षित होते ही हैं, भारतीय पर्यटक भी एक बार गोआ अवश्य जाना चाहते हैं। पर्यटकों की यह आम धारणा है कि गोआ में बड़ा उन्मुक्त वातावरण है।
पणजी
बेलगाँव पहँचने पर जैन पर्यटक भी गोआ को यात्रा के आकर्षण से बच नहीं पाते। किसी सीमा तक यह सच भी है। प्रकृति ने उसे निराली छटा दी है। एक ओर अरब सागर लहराता है तो दूसरी ओर पश्चिम घाट (सह्याद्रि पर्वतमाला) की मनोरम पहाड़ियाँ हैं । नारियल, ताड़ और काजू के वृक्षों के बीच हरे-भरे चावल के खेत पर्यटक का मन मोह लेते हैं । गोआ की राजधानी पणजी या पणजिम में पुर्तगालियों की देन देशी-विदेशी शराब और आधी रात तक चलने वाला पॉप संगीत (पाश्चात्य संगीत) कदम-कदम पर मिलेंगे। अनेक पर्यटक इन्हीं बातों से