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46 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
ऐहोल को चालुक्य मन्दिर निर्माण शैली की जन्मभूमि या प्रयोगस्थली कहा गया है । यहाँ ईस्वी 450 और 650 के बीच लगभग सौ मन्दिरों का निर्माण हुआ बताया जाता है जिनमें से 70 के लगभग ध्वस्त अवस्था में अब भी बिखरे पड़े हैं । ये मन्दिर उत्तर भारतीय लम्बे शिखरों वाले भी हैं और दक्षिण भारतीय शैली के शिखरों - गुंबद या उलटे प्याले के आकार वाले हैं ।
क्षेत्र-दर्शन
ऐहोल के प्रमुख मन्दिरों को देखने के लिए पर्यटक को कम-से-कम एक दिन का समय आवश्यक है । वह भी तब जब कि वह किसी गाइड को अपने साथ ले ले ।
सरकारी बस पर्यटक को गाँव में ले जाती है जहाँ वर्षा धूप से बचने के लिए कोई शेड नहीं है। बसों को असुविधा तो है ही । पूछने पर ही पता चलता है कि बस अमुक स्थान पर रुकती है। हालाँकि कर्नाटक सरकार ने इसे पर्यटन स्थल रूप में अँग्रेजी और फ्रेंच भाषाओं में परिचय-पर्चे आदि छपवाकर विज्ञापित कर रखा है । कला और स्थापत्य साहित्य में तो ऐहोल का प्रमुख स्थान है ही, पर्यटकों के विश्राम के लिए वहाँ कर्नाटक सरकार का एक टूरिस्ट बँगला है। वैसे ठहरने के लिए अन्य कोई साधन नहीं है । इसलिए पर्यटक को इस सुविधाअसुविधा को पहले से ही सोच लेना चाहिए । गाँव से सटा हुआ एक मन्दिर -समूह है। वहीं दुर्गा मन्दिर के पास गाइड मिल सकता है ।
उपर्युक्त मन्दिरों के पास ही पुरातत्त्व विभाग द्वारा खुदाई की जा रही है । कोई मन्दिर भूगर्भस्थ हो गया, ऐसा आभास है । यह स्थान गौडर मन्दिर के पास है ।
हुचिमल्ली मन्दिर — गाँव के मन्दिर-समूह में एक दुर्गा मन्दिर है । पुरातत्त्व विभाग ने यहाँ एक सूचना फलक लगाया है जिसमें 20 मन्दिरों या मन्दिर-समूहों के नाम गिनाए गए हैं। इनमें जैन मन्दिर मेगुटी और गाँव के पास के जैन मन्दिर समूह का भी उल्लेख है । इस सूची में पहला नाम 'हुचिमल्ली' मन्दिर का है । कन्नड भाषा में हुचिल्ली का अर्थ है 'पागल स्त्री' अर्थात् यह वह मन्दिर है जहाँ किसी समय कोई पागल औरत रहा करती 1 इसी प्रकार अन्य मन्दिरों को भी निवास स्थान बना लिया गया था ।
लाडखाँ मन्दिर - यह मन्दिर दुर्गा मन्दिर के पास ही है। कहा जाता है कि पहले यह एक जैन मन्दिर था । किन्तु यहाँ के गर्वनर लाडखाँ उसमें रहने लगे तो इसका नाम लाडखाँ मन्दिर ही पड़ गया । मन्दिर की रचना लगभग अर्धवृत्ताकार है । यह बलुआ पत्थर का बना हुआ है । इसका निर्माण 450 ई. में हुआ माना जाता है । इसके मण्डप के स्तम्भ इतने विशाल, विशेषकर बीच के चार - लगभग 4 फुट चौड़े हैं कि इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि यह मन्दिर गुफा - मन्दिर के अनुकरण पर बनाया गया होगा । कुछ कम ऊँचाई के स्तम्भों की दो कतारें भी इनके आस-पास हैं जिससे यह एक बड़ा सभामण्डप सा लगता है । इसमें बैठने का भी स्थान मुख-मण्डप के खुले स्तम्भों के साथ-साथ बना हुआ है । इसके एक स्तम्भ पर मिथुन और दरवाजे की चौखट पर यमुना नदी अपने सेवकों के साथ उत्कीर्ण (अब नष्टप्राय) देखी जा सकती हैं। इसकी छत सभी ओर ढलवाँ है । शिखर नहीं है । दो गर्भगृह हैं जो कि अब खाली हैं । स्तम्भों पर मौक्तिक मालाओं, कामक्रीडारत युगल, हाथियों, छत में कमल, गजलक्ष्मी, चॅवर और छत्र आदि का सुन्दर अंकन है । मिथुन का प्रयोग अनेक स्थानों पर है। दो