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28 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) बाहर एक होटल भी है जो आर्डर देने पर भोजन आदि की व्यवस्था कर देता है। आठ-दस जैन परिवार मन्दिर के अहाते में ही निवास करते हैं।
स्तवनिधि क्षेत्र कोल्हापुर के वर्तमान भट्टारक श्री लक्ष्मीसेन जी तथा निपाणी के वर्तमान भट्टारक श्री जिनसेन जी के क्षेत्राधिकार में आता है।
इस क्षेत्र का प्रबन्ध निम्नलिखित द्वारा किया जाता हैदक्षिण भारत जैन सभा, श्री क्षेत्र कमेटी पो०-स्तवनिधि-591237 ज़िला-बेलगाँव (कर्नाटक) टेलिफ़ोन नं0 308/ निपाणी एक्सचेंज
सहस्रफणि पार्श्वनाथ गुरुकुल स्तवनिधि ___उपर्युक्त नाम उस गुरुकुल का है जो कि पूना-बंगलोर राजमार्ग पर सड़क के किनारे किन्तु स्तवनिधि से पहले पड़ता है। इसकी स्थापना 1939 में हुई थी।
गुरुकुल में यात्रियों को ठहरने की व्यवस्था भी कर दी जाती है किन्तु गुरुकुल के पास स्थान सीमित है, पहले पूछ लेना चाहिए। यात्रियों के अनुसार गुरुकुल भोजनालय में भोजन का भी प्रबन्ध कर दिया जाता है।
गुरुकूल का 'श्री 1008 सहस्रफणि पार्श्वनाथ मन्दिर' (यह नाम नागरी में लिखा है) मुख्य सड़क के सामने ही दिखाई पड़ता है। इसमें पार्श्वनाथ प्रतिमा पर एक हजार फण बनवाने की योजना थी किन्तु बन नहीं सके । उनके स्थान पर छोटे-छोटे सर्प-फण बनाये गये हैं। किन्तु यह प्रतिमा सहस्रफणि कहलाती है। प्रतिमा बादामी रंग की कायोत्सर्ग मुद्रा में है एवं अत्यन्त भव्य है। मन्दिर के सामने मानस्तम्भ भी है । इस मन्दिर का निर्माण 1963 ई. में हुआ था।
___मन्दिर के पीछे छात्रावास तथा विद्यालय हैं। यह गुरुकुल बाहुबली विद्यापीठ कुम्भोज बाहुबली द्वारा संचालित एवं नियन्त्रित है। यहाँ एक-दो कमरे का अथितिगृह स्नानघर युक्त है, कुछ और कमरे बन रहे हैं । पलश की भी व्यवस्था हो गई है। किन्तु यात्रियों को स्तवनिधि में ही ठहरना चाहिए, क्योंकि यहाँ स्थान की कमी है । गुरुकुल के सामने निपाणी में बसों का टाइम टेबल लगा है। यहाँ रुकनेवाली बसों की भी सूचना उपलब्ध है। मार्गस्थ पार्श्वनाथ
गुरुकुल के पास बेलगाँव की दिशा में पहाड़ी पर पार्श्वनाथ की संगमरमर की दस फुट ऊँची प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में खुले आकाश के नीचे स्थापित है जो कि सड़क से ही दिखाई देती है।