________________
मलखेड (प्राचीन मान्यखेट) / 1i पास प्रियंकर और शुभंकर भी उत्कीर्ण हैं । लगभग ढाई फुट ऊँची यह मूर्ति नौवीं शताब्दी की बताई जाती है। जैन साहित्य का केन्द्र ___संस्कृत, अपभ्रंश और कन्नड़ साहित्य की दृष्टि से मलखेड (मान्यखेट) का अत्यन्त सम्माननीय स्थान है।
राजा अनोववर्ष प्रथम का एक नाम नृपतुंग भी था। उसने स्वयं संस्कृत में 'प्रश्नोत्तर रत्नमालिका' नामक ग्रन्थ की रचना की थी जिसका विषय नैतिक आचार था। यह ग्रन्थ दूर-दूर तक काफी लोकप्रिय हुआ। कहा जाता है कि इसका अनुवाद तिब्बती भाषा में भी हुआ था। इसी से इस राजा की विद्वत्ता एवं लोकप्रियता तथा प्रभुता का अनुमान लगाया जा सकता है। इस रचना के अन्तिम छन्द से पता चलता है कि राजा अमोघवर्ष ने राजपाट त्याग कर मुनिदीक्षा ले ली थी।
प्रसिद्ध 'शाकटायन व्याकरण' पर भी इन्होंने अमोघवृत्ति नामक टीका लिखी थी ऐसा इस टीका के नाम से प्रकट होता है, या यह टीका इनके नाम से प्रसिद्ध हुई। - अमोघवर्ष के शासनकाल में ही महावीराचार्य ने अपने 'गणितसार' ग्रन्थ की रचना की थी।
कन्नड़ भाषा में अमोघवर्ष ने 'कविराजमा नामक अलंकारशास्त्र/छन्दशास्त्र सम्बन्धी ग्रन्थ का प्रणयन किया था। यह ग्रन्थ आज भी कन्नड़ में एक सन्दर्भ-ग्रन्थ है। इसमें कानड़ी प्रदेश का, जो कि गोदावरी से लेकर कावेरी नदी तक फैला हुआ था, प्रसंगोपात्त सुन्दर वर्णन है। इससे इस प्रदेश की तत्कालीन संस्कृति का भी अच्छा परिचय मिलता है।
राष्ट्रकूट नरेशों के शासनकाल में जैन साहित्य की उल्लेखनीय वृद्धि निरन्तर होती रही।
अमोघवर्ष के उत्तराधिकारी कृष्ण द्वितीय के राजकाल में 'उत्तरपुराण' की समाप्ति बंकापुर (कर्नाटक) में हुई। वहाँ उस समय राष्ट्रकूटनरेश का सामन्त लोकादित्य शासन करता था। यह 'उत्तरपुराण' उसी 'आदिपुराण' का अन्तिम भाग है जिसे आचार्य जिनसेन 42 अध्यायों तक ही पूरा कर पाये थे और जिसमें भगवान आदिनाथ के जीवन का सुन्दर काव्यमय वर्णन बहुत विस्तार के साथ किया गया है और जिसकी विनय एवं जिसका स्वाध्याय आज भी लगभग हर जैन मन्दिर में होता है। 'उत्तरपुराण' में शेष तेईस तीर्थंकरों के जीवन का वर्णन उनके शिष्य गुणभद्राचार्य ने किया है। 'उत्तरपुराण' की प्रशस्ति में गुणभद्राचार्य ने लिखा है कि राजा अमोघवर्ष आदिपुराण के रचयिता आचार्य जिनसेन द्वितीय के चरणों की पूजा किया करते थे।
राष्ट्रकूटनरेश कृष्णराजदेव के शासनकाल में आचार्य सोमदेव सूरि ने अपने संस्कृत गद्यपद्य मिश्रित ग्रन्थ 'यशस्तिलक-चम्प' (समाप्तिकाल 959 ई०) की रचना गंगधारा नामक स्थान पर की थी। इसमें महाराज यशोधर का चरित्र वर्णित है।
कन्नड़ साहित्य के 'कविचक्रवर्ती' पोन्न महाकवि ने मान्यखेट के राष्ट्रकूटनरेश कृष्ण