________________
24 | भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
• मूर्तियाँ कुलिकाओं में प्रतिष्ठित हैं।
तीर्थंकरों की प्रतिमाओं के बाद पद्मासन में जैनधर्म के प्रमुख आचार्यों की मूर्तियाँ हैं । गौतम गणधर उपदेश-मुद्रा में प्रदर्शित हैं। कुन्दकुन्दाचार्य और उमास्वामी के हाथों में पुस्तक है। उनके बाद वोरसेनाचार्य, जिन पेनाचार्य हैं। उनके बाद अमृतचन्द्राचार्य स्थापित हैं। उनके हाथ में भी पुस्तक है । और उनके वाद आचार्य भूलबली और पुष्पदन्त हैं।
आचार्यों की पंक्ति के बाद कायोत्सर्ग मद्रा में भरत को आठ फट ऊँची संगमरमर की मूर्ति है । भरत-प्रतिमा से आगे चन्द्रप्रभ भगवान की डेढ़ फुट ऊँची संगमरमर की प्रतिमा पद्मासन में विराजमान है।
सप्तर्षि प्रतिमाएँ चन्द्रप्रभ की प्रतिमा से आगे प्रतिष्ठित हैं। ये कुलिकाओं में हैं और तीन फुट ऊँची हैं तथा संगमरमर को बनी हुई हैं। इन ऋषियों के नाम हैं-1. श्रीमन्यु, 2. सुरमन्यु, 3. श्रीनिचय, 4. सर्वसुन्दर, 5. जयदान, 6. विनयलालस और 7. जयमित्र । .. दो दीवालों के बीच में कुछ भीतर की ओर एक कोण में 'रत्नत्रय भगवान' की बादामी रंग की संगमरमर की मूर्तियाँ कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं। - भगवान बाहुबली की सवा दो फुट ऊँची कायोत्सर्ग मुद्रा में मूर्ति भी यहीं है।
- इसके बाद भावी तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ कुलिकाओं में विराजमान की गई हैं। उनके द्वार पर चक्रधारी खड़े हुए प्रदर्शित हैं। प्रतिमाएँ कायोत्सर्ग मुद्रा में, तीन फुट ऊँची, संगमरमर की बनी हुई हैं। ये हैं श्री 1008 सीमंधर स्वामी, युगमंधर स्वामी, बाहु स्वामी, सुबाहु स्वामी, सुजात स्वामी, स्वंयप्रभ स्वामी, वृषभानन स्वामी, अनन्तवीर्य स्वामी, सुरप्रभ स्वामी । यहीं संगमरमर के शिला-फलकों पर उत्कीर्ण है 'भक्तामर स्त्रोत', और उसके बाद विशालकीति स्वामी की प्रतिमा है। शायद एकरसता कम करने के लिए अब महावीर
मी की कायोत्सर्ग मुद्रा में सात फुट ऊँची प्रतिमा प्रतिष्ठित की गई है। उनसे आगे वज्रधर स्वामी विराजमान हैं। फिर उत्कीर्ण हैं तीन संगमरमर फलकों पर 'कल्याणमन्दिर स्तोत्र' । तदनन्तर तीर्थंकरों की शृखला पुनः प्रारम्भ होती है । चन्द्रानन स्वामी, भद्रबाहु स्वामी, भुजगम स्वामी, ईश्वर स्वामी, नेमप्रभ स्वामी, वीरसेन स्वामी, महाभद्र स्वामी, देवयश स्वामी और अजितवीर्य स्वामी भी उपयुक्त प्रकार से विराजमान हैं।
पुनः दो दीवालों के बीच में कुछ भीतर की ओर एक कोष्ठ में भगवान पार्श्वनाथ की काले पाषाण की साढ़े चार फुट ऊँवो एक मनोहर प्रतिमा है। उस पर छत्रत्रय है। चँवरधारी भी हैं और प्रतिमा मकरतोरण युक्त है।
आचार्यों की पंक्ति पुनः । ये आचार्य हैं-नेमिचन्द्र आचार्य, अकलंक आचार्य, धरसेन और जयकोति आचार्य । ये प्रतिमाएँ भी पूर्वोक्त आचार्य-प्रतिमाओं के समान विराजमान हैं।
मन्दिर में यक्ष-यक्षी प्रतिमाएँ भी हैं। संगमरमर की ज्वालामलिनी देवी सामान्य पदार्थ हाथों में लिये हुए है। पद्मावती देवी को भी इसी प्रकार की एक मूर्ति है।
अब हम आते हैं शांतिगिरि के सबसे आकर्षक और महत्त्वपूर्ण भाग की ओर। खुले आकाश के नीचे संगमरमर के कमलासन पर क्षेत्र के बीचों-बीच कायोत्सर्ग मुद्रा में संगमरमर की सुन्दर प्रतिमाएँ दर्शक के मन पर अमिट छाप छोड़ती हैं। ये प्रतिमाएँ हैं-बीच में शान्तिनाथ