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शान्तिगिरि क्षेत्र | 23
गिरि क्षेत्र में इस ओर विशेष ध्यान दिया गया है। वहाँ सम्बन्धित मन्दिर आदि पर दर्शन-फमांक दिया गया है जो बहुत सुविधाजनक है।
___ दर्शन क्रमांक 1-यह 'समवसरण मन्दिर' है। इसकी लम्बाई-चौड़ाई 22 x 22 फुट है। यह मन्दिर संगमरमर का बना है। इसमें काँच का समवसरण निर्माणाधीन है। रंग-बिरंगे सुन्दर काँच या शीशों के कटघरे में मानस्तम्भ, वृक्ष, गन्धकुटी आदि का निर्माण किया गया है। यह मोहक समवसरण एक अद्भुत रचना होगी। बिजली के प्रकाश के संयोजन से यह किसी का भी मन मोह लेगा।
___ दर्शन क्रमांक 2-यह नन्दीश्वर मन्दिर है। इसमें पाँच गिरि या पर्वत बनाये गये हैं। इसकी गोल शिलाओं पर पीतल की 52 पद्मासन प्रतिमाएँ स्थापित हैं जिनकी प्रतिष्ठा भी हो चुकी है। स्पष्ट है कि इनकी पूजा होती है। इस मन्दिर का हॉल 30 फुट x 30 फुट है।
नन्दीश्वर द्वीप-जैन मान्यता के अनुसार, इस द्वीप में कुल 52 पर्वत हैं और प्रत्येक पर्वत पर एक-एक चैत्यालय है। फाल्गुन, आषाढ़ और कार्तिक के अन्तिम आठ दिनों में अर्थात् अष्टाह्निका पर्व में देवतागण नन्दीश्वर द्वीप में तथा मनुष्य अपने-अपने मन्दिरों में नन्दीश्वर द्वीप की स्थापना करके बड़े भक्तिभाव से जिनेन्द्र भगवान के इन 52 चैत्यालयों की पूजा करते हैं और पुण्य अर्जित करते हैं ।
दर्शन क्रमांक 3-'कमल मन्दिर'। यह 30 फुट x 30 फुट का एक अष्टकोण भवन है। इसमें चौबीसों तीर्थंकरों की प्रतिमाओं की अद्भुत झाँकी है जोकि संगमरमर की हैं। इनका वर्ण सफेद, काला और बादामी है । चौबीसी चारों दिशाओं में दृश्य है। इसके मूलानायक पद्मप्रभ कायोत्सर्ग मुद्रा में कमलासन पर केन्द्र में विराजमान हैं। शेष तीर्थंकर पद्मासन में हैं। वेदी के तीन स्तर हैं । सभी मूर्तियों की प्रतिष्ठा हो चुकी है और उनकी विधिवत् पूजन होती है।
दर्शन क्रमांक 4-पार्श्वनाथ (तेईसवें तीर्थंकर) की सत्रह फुट उत्तुंग संगमरमर की यह प्रतिमा खुले आकाश के नीचे पाँच फुट ऊँचे एक चबूतरे पर कमलासन पर प्रतिष्ठित है । मूर्ति पर सात फणों की छाया है और सर्पकुण्डली पीछे तक गयी है। मूर्ति के पादमूल में पार्श्वनाथ का लांछन (चिह्न) सर्प बना हआ है। संगमरमर के जिस फलक पर इस तीर्थंकर-प्रतिमा का उत्कीर्णन हुआ है उसी फलक पर चरणों के पास यक्ष-यक्षी धरणेन्द्र और पद्मावती की भी प्रतिमाएँ हैं।
__दर्शन क्रमांक 5-'आदिनाथ मन्दिर'—यह मन्दिर जैन तीर्थंकरों, आचार्यों, ऋषियों, भावी तीर्थंकरों एवं स्तोत्रों का एक विशाल संग्रह ही है जो केवल दर्शनमात्र से जैनधर्म के महान स्तम्भों का सहज ही में परिचय करा देता है। इसका त्रम इस प्रकार है
इस मन्दिर में कमलासन पर संगमरमर की भरत की 9 फुट ऊँची, केन्द्र में भगवान आदिनाथ की 12 फुट ऊँची और बाहुबली को 9 फुट ऊँची प्रतिमाएँ खड़ी हुईं या कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं। इतनी ऊँची प्रतिमाओं के प्रक्षाल के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं।
_____ संगमरमर का 'सम्मेदशिखर का एक नक्शा' यहाँ काँच की चहारदीवारी के अन्दर प्रदर्शित है। पीतल की 4 फुट ऊँची 'चौबीसी' भी यहाँ है। उसके मूलनायक भगवान महावीर हैं । प्रतिमा पर उसका लांछन सिंह है और दोनों ओर चँवरधारी हैं । शेष तीर्थंकरों की पद्मासन