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बीजापुर / 17
इसका अवसर ही नहीं मिलता। फिर भी, इस गैलरी में ऊपर जाकर लोग अपनी आवाज़ की गूंज सुनते हैं । चालीस मीटर व्यास की इस गुम्बद में यदि आप एक ओर खड़े हो जाएँ और दीवाल की ओर मुंह करके धीरे से भी बोलें तो आपकी बात दूसरो ओर सुनी जा सकती है और अपनी ही आवाज़ की गूंज से आपको ऐसा लगेगा कि कोई आपकी बात का उत्तर दे रहा है। इस गैलरी में फुसफुसाहट या कागज़ की खड़खड़ भी बारह वार गूंजती है। लोग उसे सुनने के लिए ताली बजाते हैं या सीटी बजाते हैं या खाँसते हैं और आश्चर्य से अभिभूत होकर लौट जाते हैं। किसो भो भवन में श्र वग-व्यवस्था (Acoustics) का यह एक अद्भुत चमत्कार ऐसे समय (17वीं शती में) निर्मित हआ जब विज्ञान इतना उन्नत नहीं था। इसकी सात मज़िलों वाली मीनारें एवं अन्य कलाकारी भी पर्यटक को मुग्ध करती हैं। और यह गम्बद है क्या ? मुहम्मद आदिलशाह (1627-56) का मकबरा । इस सुल्तान ने गद्दी पर बैठते ही इसे बनवाना प्रारम्भ कर दिया था। किन्तु इसकी साज-सज्जा पूरी होने के पहले ही उसका अन्तकाल हो गया । गुम्बद में लकड़ी का जो मण्डप है, उसके नीचे जमीन के अन्दर उसे दफनाया गया है। उसी के पास उसकी बेगम और बेटी की कब्र भी हैं । इस गुम्बद के कारण ही बीजापुर को दक्षिण का आगरा कहा जाता है।
गोल गुम्बद बीजापुर रेलवे स्टेशन से लगभग दो फांग की दूरी पर है और उसके सामने की सड़क स्टेशन-रोड कहलाती है जो कि सीधी गाँधी चौक की ओर जाती है।
गाँधी चौक और गोल गुम्बद के बीच कांग्रेस भवन पड़ता है । वहीं बसवेश्वर की मूर्ति घोड़े पर है। यहीं डी.सो. कम्पाउण्ड और कर्नाटक सरकार का आदिलशाही होटल है। इन सभी के पास एक प्रसिद्ध इमारत गगनमहल है जहाँ सोलहवीं शताब्दी में अली आदिलशाह अपनी प्रजा की शिकायतें सुना करता था। और इसी महल के पीछे आनन्दमहल रोड पर है-एक पुरानी मस्जिद करीमुद्दीन मस्जिद। किसी समय यह एक विशाल जैन मन्दिर था और सम्भवतः दो-मंजिल । इसके विशाल हॉल में अनेक स्तम्भ हैं। एक-एक पंक्ति में दस बड़े स्तम्भ हैं और इस प्रकार की पाँच पंक्तियाँ स्पष्ट दिखाई देती हैं। इस समय यह पुरातत्त्व विभाग के संरक्षण में है।
गगनमहल एक क़िला है। उसी के भीतर एक जलमन्दिर है जो कि लगभग 35 फट चौड़ा और 35 फुट लम्बा तथा लगभग बारह फुट गहरा है। उसमें बाहर की ओर कमल, तारा आदि की सुन्दर चित्रकारी है। इसे जलस्थित चौमुखा (जिसमें प्रतिमा चारों ओर से देखी जा सकती है) मन्दिर कहने को जी करता है । यह पत्थर का बना हुआ है। इस मन्दिर के चारों ओर आठ-दस फुट चौड़ी (बारह फुट गहरी खाई है जिसमें किसी समय पानी भरा रहता होगा । किन्तु उसमें पानी भरने के लिए नाली या पाइप की व्यवस्था उसकी रचना में कहीं भी नज़र नहीं आयी। यह भी नहीं मालूम पड़ता कि मन्दिर में जीने की क्या व्यवस्था थी। इसका इतिहास ज्ञात नहीं हो सका । जैन मन्दिर के समीप होने तथा आज भी जलमन्दिर के नाम से ही प्रसिद्ध होने के कारण यह शंका होती है कि क्या यह भी ध्वस्त या अप्रयुक्त जिनमन्दिर तो नहीं है ? जो भी हो, इस विषय में शोध की आवश्यकता है।
कांग्रेस भवन के सामने ही बारा (बारह) कमान हैं। ये इतने ऊँचे, चौड़े और विशाल