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गुलबर्गा /9
संग्रहालय
पर्यटक की दृष्टि से या जैन मूर्तिकला की दृष्टि से यहाँ का संग्रहालय (म्यूज़ियम) देखने लायक है जो कि सेडम रोड पर अस्पताल के सामने दो गुम्बज़ों में है। यहाँ की मूर्तिकला (sculpture) गैलरी में जैन प्रतिमाओं का अच्छा संग्रह है। एक फलक पर ऊपर तीर्थंकर प्रति है और उसके नीचे एक उपदेशकर्ता प्रदर्शित है। इसी प्रकार लगभग तीन फुट की 10वीं शताब्दी की एक पद्मासन प्रतिमा है जिस पर सात फण हैं किन्तु उसके कन्धों पर केशगुच्छ दिखाया गया है (देखें चित्र क्रमांक 5)। केशों को इस प्रकार की लटें वास्तव में भगवान आदिनाथ के कन्धों पर चित्रित की जाती हैं।
उपर्युक्त संग्रहालय की अधिकांश प्रतिमाएँ खण्डित हैं, अनेक स्थानों से संग्रहीत की गई हैं और 8वीं से लेकर । 1वीं शताब्दी तक की हैं। तीर्थंकरों में पार्श्वनाथ की प्रतिमाएँ ही अधिक हैं । मूर्तियाँ कमलासन पर, स्तम्भों से युक्त मेहराब वाली तथा दोनों ओर मकर से चित्रित (मकर-तोरण) एवं कीर्तिमुखयुक्त हैं। चंवरधारी भी प्रदर्शित हैं जो कि तीर्थंकर के दोनों ओर खड़े हुए दिखाए गए हैं। अधिकांश प्रतिमाएँ दो फुट से लेकर चार फुट तक की हैं । एक खण्डित ब्रह्मयक्ष (11वीं सदी) भी इस संग्रहालय में है । उसके चारों हाथ टूटे हुए हैं और उसके सिर के ऊपर एक पद्मासन तीर्थंकरमूर्ति है। एक नागफलक भी कुछ असामान्य है। उस पर नाग के सात प.ण दिखाए गये हैं जो कि पार्श्वनाथ के यक्ष धरणेन्द्र के प्रतीक हो सकते हैं। उसमें दायें तरफ़ पार्श्वनाथ की आकृति है और नीचे पद्मावती की। दूसरी ओर एक छोटा-सा सर्प उत्कीर्ण है।
यदि पर्यटक अपने वाहन या बस से गुलबर्गा होते हुए यात्रा कर रहा है तो उसे यह संग्रहालय अवश्य देखना चाहिए। यह सुबह आठ से दोपहर एक बजे तक खुला रहता है।
राष्ट्रकूट शासन-काल के अतिरिक्त, बहमनी शासकों के युग में भी गुलबर्गा एक महत्त्वपूर्ण राजधानी रहा है । उसे यह गौरव लगभग 200 वर्षों तक प्राप्त रहा । उसके बाद बहमनी शासकों ने बीदर को अपनी राजधानी बना लिया। उसके बाद की, इस नगर की कहानी मूगलों और निजामी शासन के अन्तर्गत आती है।
वैसे यहाँ का क़िला भी दर्शनीय है। उसमें 15 बुर्जे हैं और 25 से भी अधिक तोपें हैं। एक तोप तो पच्चीस फुट लम्बी है। यहाँ अनेक मसजिदें दिखाई देती हैं।
मलखेड (प्राचीन मान्यखेट) अवस्थिति एवं मार्ग
गुलबर्गा के समीप ही सेडम (Sedan) तालुक में एक और महत्त्वपूर्ण प्राचीन जैन केन्द्र है-मलखेड । यदि आप इस स्थान को प्रचलित नक्शे में ढूंढेगे तो वह नहीं मिलेगा क्योंकि यह अब सेरम/सेडक तालुक (तहसोल) में कगना (Kagna) नदी के किनारे बसा हुआ