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भगवती सूत्र - श. ३ उ. १ कुरुदत्तपुत्र देव की ऋद्धि
यावत् विनीत तथा निरन्तर अट्टम यानी तेले तेले की तपस्या और पारणे में आयम्बिल ऐसी कठोर तपस्या से अपनी आत्मा को भावित करने वाला, दोनों हाथ ऊँचे रख कर सूर्य की तरफ मुंह करके आतापना की भूमि में आतापना लेने वाला, आपका अन्तेवासी - शिष्य कुरुदत्तपुत्र नामक अनगार पूरे छह महीने तक श्रमण पर्याय का पालन करके, पन्द्रह दिन की संलेखना से अपनी आत्मा को संयुक्त करके, तीस भक्त तक अनशन का छेदन करके, आलोचना और प्रतिक्रमण करके समाधिपूर्वक काल के अवसर पर काल करके, ईशान कल्प में अपने विमान में ईशानेन्द्र के सामानिक देव रूप से उत्पन्न हुआ है । इत्यादि सारा वर्णन जैसा तिष्यक देव के लिए कहा है, वह सारा वर्णन कुरुदत्तपुत्र देव के विषय में भी जानना चाहिए, तो हे भगवन् ! वह कुरुदत्तपुत्र देव, कितनी महाऋद्धि वाला यावत् कितना वैक्रिय करने की शक्ति वाला है ?
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१४ उत्तर - हे गौतम ! इस सम्बन्ध में सब पहले की तरह जान लेना चाहिए । विशेषता यह है कि कुरुदत्तपुत्र देव, अपने वैक्रियकृत रूपों से सम्पूर्ण दो जम्बूद्वीप से कुछ अधिक स्थल को भरने में समर्थ है, इसी तरह दूसरे सामानिक देव, त्रायस्त्रशक देव, लोकपाल और अग्रमहिषियों के विषय में भी जानना 'चाहिए । हे गौतम! देवेन्द्र देवराज ईशान की अग्रमहिषियों की यह विकुर्वणा शक्ति है, वह केवल विषय है, विषय मात्र है, परन्तु सम्प्राप्ति द्वारा कभी इतना वैक्रिय किया नहीं, करती नहीं और भविष्यत् काल में करेगी भी नहीं ।
इसी तरह सनत्कुमार आदि देवलोकों के विषय में भी समझना चाहिए, किन्तु विशेषता इस प्रकार है:- सनत्कुमार देवलोक के देव सम्पूर्ण चार जम्बूद्वीप जितने स्थल को भरने और तिर्छा असंख्यात द्वीप समुद्रों जितने स्थल को भरने की शक्ति है । इसी तरह सामानिक देव, त्रायस्त्रशक देव, लोकपाल और अग्रमहिषियाँ, ये सब असंख्यात द्वीप समुद्र जितने स्थल को भरने की शक्ति वाले हैं । सनत्कुमार से आगे सब लोकपाल असंख्येय द्वीप समुद्रों जितने स्थल को भरने की शक्ति वाले हैं। इसी तरह माहेन्द्र नामक चौथे देवलोक में भी
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