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भगवती आराधना किन्तु' ललितविस्तरके कर्ता हरिभद्र और षड्दर्शन समुच्चयके टीकाकार गुणरत्न जो श्वेताम्बर हैं, कहते हैं कि यापनीय संघके मुनि नग्न रहते थे मोरकी पीछी रखते थे, पाणितल भोजी थे, नग्न मुत्तियाँ पूजते थे और वन्दना करनेवाले श्रावकोंको 'धर्मलाभ' देते थे। परन्तु वे मानते थे कि स्त्रियोंको उसो भवमें मोक्ष हो सकता है। केवलो भोजन करते हैं और सग्रन्थ अवस्था और परशासनसे भी मुक्त होना सम्भव है।
हम इस कथनके प्रकाशमें सर्व प्रथम भ० आ० की परीक्षा करेंगे। प्रेमी जी ने लिखा है गाथा ७९-८३ में मनिके उत्सर्ग अपवाद मागका विधान है जिसके अनुसार मनि वस्त्र धारण कर सकता है । अतः सबसे प्रथम हम इसी पर प्रकाश डालते हैं।
भक्त प्रत्याख्यानके योग्य लिंगका निरूपण करते हुए ग्रंथकार कहते हैं-जो औत्सगिक लिंगका धारी है उसका तो वही लिंग होता है। किन्तु जो आपवादिक लिंगका धारी है उसके पुरुष चिह्नमें यदि दोष न हो तो उसके लिये भी औत्सर्गिकलिंग ही होता है ।। ७६ ।।
इसकी टीकामें अपराजित सूरि ने औत्सर्गिकका अर्थ सकल परिग्रहके त्यागसे उत्पन्न हुआ किया है तथा अपवादिक लिंगका अर्थ परिग्रह सहित लिंग किया है; क्योंकि यतियोंके अपवादका कारण होनेसे परिग्रहको अपवाद कहते हैं, इससे यह स्पष्ट है कि अपवादिक लिंगका धारी गृहस्थ ही होता है। मुनि तो औत्सर्गिक लिंगका ही धारी होता है।
जो अपवादिक लिंग में स्थित हैं और जिनके पुरुष चिह्नमें कोई दोष नहीं है क्या उन सबको ही औत्सर्गिक लिंग धारण करना चाहिये, इसके उत्तरमें कहा है-जो महान् सम्पत्तिशाली राजा आदि हैं, लज्जाशील हैं, जिनके कुटुम्बी मिथ्याधर्मावलम्बो हैं उनको सार्वजनिक स्थानमें औत्सर्गिक लिंग नहीं देना चाहिये। वे सचेल लिंग पूर्वक ही समाधिमरण कर सकते हैं ।। ७८ ।। आगे औत्सगिक लिंगका स्वरूप कहा है
__ अचेलता-वस्त्ररहितपना, केशलोच, शरीरसे ममत्वका त्याग और पीछी औत्सर्गिक लिंगमें ये चार बातें आवश्यक हैं ॥ ७९ ॥
- प्रवचनसारके चारित्राधिकारमें कुन्दकुन्द स्वामी ने भी औत्सर्गिक लिंगका यही स्वरूप कहा है। और मूलाचारमें तो यही गाथा है। दोनों गाथाएँ समान है। यह तो हुआ पुरुषोंके सम्बन्धमें। स्त्रियोंके सम्बन्धमें कहा है-स्त्रियोंके भी जो औत्सर्गिक अथवा अन्य लिंग आगममें कहा है.उनके वही लिंग अल्पपरिग्रह करते हुए होता है ।। ८० ॥
इसकी टीकामें अपराजित सूरि ने स्पष्ट कर दिया है कि तपस्विनी स्त्रियोंके औत्सर्गिक लिंग होता है और 'इतर' का अर्थ श्राविका किया है । तथा लिखा है-भक्त प्रत्याख्यानमें तपस्विनियोंके औत्सर्गिक लिंग होता है। इतर अर्थात् श्राविकाओंके पुरुषोंकी तरह लगा लेना चाहिये । अर्थात् यदि स्त्री रानी वगैरह है, लज्जाशील है, उसके कुटुम्बी मिथ्यामती हैं. तो उसको पूर्वोक्त औत्सर्गिक लिंग जो सकलपरिग्रह त्यागरूप है एकान्त स्थानमें देना चाहिये । इसपर प्रश्न किया गया कि स्त्रियोंके उत्सर्ग लिंग कैसे कहते हैं ? उत्तरमें कहा है कि परिग्रह अल्प करने पर उनके भी उत्सर्गलिंग होता है। यहाँ यह ध्यान देना चाहिये कि यदि ग्रंथकार और टीकाकारको
१. जै० सा० इ० पृ० ५९ ।
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