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क्रम
नाम
अर्थ
अनाचार का कारण
४०., सचित्त सौवर्चल सचित्त सैंचल नमक
पृथ्वीकायिक जीववध लवण ४१. सचित्त सैंधव लवण सैंधा नोन ४२. सचित्त लवण साधारण नमक
सचित्त रूमा लवण रोमा नमक सचित्त समुद्री लवण समुद्री नमक सचित्त पांशुधार सचित्त खार वाला नमक लवण सचित्त कृष्ण लवण सचित्त काला नमक
धूमनेत्र धूप करना, धुंआ करना, धूम्रपान करना अग्निकाय समारम्भ, विभूषा ४८. वमन कै करना
अत्यधिक मात्रा में भोजन करने
से असंयम बस्तिकर्म एनिमा वगैरह लेना ५०. विरेचन जुलाब, रेचन लेना ५१. अंजन
आंखों में सुरमा, काजल आदि लगाना परोक्ष हिंसा ५२. दन्तवन दतौन की लकड़ी से दांतुन करना वनस्पतिकायवध गात्राभ्यंग शरीर पर तेल आदि की मालिश करना विभूषा, शरीरपुष्टि से ब्रह्मचर्य
बाधा ५४. विभूषा श्रृंगार प्रसाधन करना, साजसज्जा वस्त्राभूषण विभूषा
इसके अतिरिक्त सूत्रकृतांग (श्रु. १, अ. ९) में धावक (वस्त्रादि धोना), रयण (रगना) आदि कुछ अनाचार बताये हैं। इससे सिद्ध होता है, अनाचारों की यह संख्या अन्तिम नहीं, उदाहरण स्वरूप हैं। अन्य अनेक अनाचार भी हो सकते हैं। उत्सर्ग विधि से जितने भी अग्राह्य, अभोग्य अनाचरणीय अकरणीय कार्य बताए हैं, वे सब अनाचार या अनाचीर्ण हैं।
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११. (क) सूत्रकृतांग १, ९/१२, १४, १६, १७, १८, २०, २९
(ख) दशवै. अ. ६, गा. ५९