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दशवकालिकसूत्र [२१८] हे मुनि ! तुम अकाल में (असमय में भिक्षा का समय न होने पर भी भिक्षा के लिए) जाते हो, काल का प्रतिलेख (अवलोकन) नहीं करते। (ऐसी स्थिति में भिक्षा न मिलने पर) तुम अपने आपको क्लान्त (क्षुब्ध) करते हो और सनिवेश (ग्राम) की निन्दा करते हो ॥५॥
[२१९] भिक्षु (भिक्षा का) समय होने पर भिक्षाटन करे और (भिक्षा प्राप्त करने का) पुरुषार्थ करे। भिक्षा प्राप्त नहीं हुई, इसका शोक (चिन्ता) न करे (किन्तु अनायास ही) तप हो गया, ऐसा विचार कर (क्षुधा परीषह) को सहन करे ॥६॥
विवेचन-काल-यतना (विवेक)—प्रस्तुत तीन सूत्रगाथाओं (२१७ से २१९ तक) में समय पर सभी चर्या करने का, असमय में चर्या करने के परिणाम का, समय पर भिक्षाटन रूप पुरुषार्थ करने पर भी अप्राप्ति का खेद न करके अनायास तपश्चर्यालाभ मानने का निर्देश किया गया है।
___ अकाल और काल का आशय प्रस्तुत प्रसंग में अकाल का अर्थ है—जो काल जिस चर्या के लिए उचित न हो। जैसे—प्रतिलेखनकाल स्वाध्याय के लिए अकाल है, स्वाध्याय का काल प्रतिक्रमण के लिए अकाल है, इसी तरह स्वाध्याय का काल भिक्षाचर्या के लिए अकाल है। इसीलिए यहां कहा गया है—अकालं च विवजेत्ताकालमर्यादाविशेषज्ञ (कालज्ञ) साधु-साध्वी अकाल में कोई चर्या (क्रिया) न करे। इसके साथ ही दूसरा सूत्र हैकाले कालं समायरे—जिस काल में जो क्रिया करणीय है, वह उसी काल में करनी चाहिए। जिस गांव में जो भिक्षाकाल हो, उस समय में भिक्षाचर्या करना काल है। इसकी व्याख्या करते हुए जिनदास महत्तर कहते हैं"मुनि भिक्षाकाल में भिक्षाचरी करे, प्रतिलेखनवेला में प्रतिलेखन और स्वाध्यायकाल में स्वाध्याय करे।'' ___अकालचर्या से मानसिक असन्तोष—जो मुनि काल का अतिक्रमण करके भिक्षाचर्या आदि क्रियाएं करता है, उसके विक्षुब्ध मानस का चित्रण करते हुए आचार्य जिनदास कहते हैं-"एक अकालचारी भिक्षाकाल व्यतीत होने पर भिक्षा के लिए निकला, किन्तु बहुत भ्रमण करने पर किञ्चित् भी आहार न मिला। हताश और विक्षुब्ध देखकर एक कालचारी भिक्षु ने पूछा-'इस गांव में भिक्षा मिली तुम्हें ?' वह तुरन्त बोला—'इस वीरान गांव में कहां भिक्षा मिलती ?' कालचारी साधु ने उसे जो शिक्षाप्रद बातें कहीं, वही इस गाथा में अंकित हैं। उसका तात्पर्य यह है कि तुम अपने दोष को दूसरों पर डाल रहे हो। तुमने प्रमाददोष के कारण या स्वाध्याय के लोभ से काल का विचार नहीं किया। फलस्वरूप तुमने अपने आपको अत्यन्त भ्रमण से तथा भोजन के अलाभ के कारण खिन्न किया और इस ग्राम की निन्दा करने लगे।
सइकाले. : व्याख्या (१) भिक्षा का समय हो जाने पर ही भिक्षु भिक्षा के लिए जाए, (२) एक अन्य व्याख्या के अनुसार-भिक्षा का स्मृतिकाल होने पर ही भिक्षु भिक्षाचरी के लिए निकले। स्मृतिकाल ही भिक्षाकाल ६. दसवेयालियसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण), पृ. ३३ ७. (क) येन स्वाध्यायादि न संभाव्यते, स खल्वकालस्तमपास्य ।
-हारि. वृत्ति, पत्र १८३ (ख) अकालं च विवज्जित्ता णाम जहा पडिलेहणवेलाए सज्झायस्स अकालो, सज्झाय-वेलाए पडिलेहणाए अकालो, एवमादि अकालं विवज्जित्ता ।
-जिनदासचूर्णि, पृ. १९४ (ग) भिक्खावेलाए भिक्खं समायरे, पडिलेहणवेलाए पडिलेहणं....एवमादि ।-जिनदासचूर्णि, पृ. १९४-१९५ ८. जिनदासचूर्णि, पृ. १९५
एवमानित