Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shayyambhavsuri, Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 467
________________ ३८४ ५६२. अणुसोयसुहो लोगो, पढिसोओ आसवो अणुसोओ संसारो, आयारपरक्कमेण पडिसोओ ५६३. तम्हा चरिया गुणा य नियमा य, दशवैकालिकसूत्र सुविहियाणं । तस्स उत्तारो ॥ ३ ॥ [५६१] (नदी के जलप्रवाह में गिर कर प्रवाह के वेग से समुद्र की ओर बहते हुए काष्ठ के समान) बहुत-से लोग अनुस्रोत (विषयप्रवाह के वेग से संसार - समुद्र) की ओर प्रस्थान कर रहे (बहे जा रहे ) हैं, किन्तु मुक्त होना चाहता है, जिसे प्रतिस्रोत ( विषयभोगों के प्रवाह से विमुख - विपरीत होकर संयम के प्रवाह) में गति करने का लक्ष्य प्राप्त है, उसे अपनी आत्मा को प्रतिस्रोत की ओर (सांसारिक विषयभोगों के स्रोत से प्रतिकूल ) ले जाना चाहिए ॥ २ ॥ ३. संवर- समाहि-बहुलेणं । होंति साहूण दट्ठव्वा ॥ ४॥ [५६२] अनुस्रोत (विषयविकारों के अनुकूल प्रवाह) संसार (जन्म-मरण की परम्परा) है और प्रतिस्रोत उसका उत्तार (जन्ममरण के पार जाना) है। साधारण संसारीजन को अनुस्रोत चलने में सुख की अनुभूति होती है, किन्तु सुविहित साधुओं के लिए प्रतिस्रोत आश्रव (इन्द्रिय-विजय) होता है ॥ ३ ॥ [५६३] इसलिए ( प्रतिस्रोत की ओर गमन करने के लिए) आचार ( - पालन) में पराक्रम करके तथा संवर समाधियुक्त होकर, साधुओं को अपनी चर्या, गुणों (मूल - उत्तरगुणों) तथा नियमों ओर दृष्टिपात करना चाहिए ॥ ४ ॥ विवेचन- अनुस्रोत मार्ग और प्रतिस्त्रोत मार्ग : क्या, किसके लिए और कैसे ? – प्रस्तुत तीन गाथाओं (५६१ से ५६३ तक) में अनुस्रोतमार्ग की ओर गमन का निषेध और प्रतिस्रोतमार्ग-गमन का विधान करने के साथ ही दोनों का स्वरूप, उनके अधिकारी और प्रतिस्रोतमार्ग पर कैसे चला जाए ? इसका दिशानिर्देश किया गया है। अनुस्रोत और प्रतिस्रोत — स्रोत अर्थात् जलप्रवाह । अनुस्त्रोत का अर्थ है— स्रोत के पीछे-पीछे अथवा स्रोत के अनुकूल। जब जल का बहाव निम्न (नीचे) प्रदेश की ओर होता है, तब उसमें पड़ने वाली काठ आदि वस्तुएं उसी बहाव के अनुकूल होकर बहती हैं। उसे अनुत्रोत- प्रस्थान कहते हैं । यह द्रव्य - अनुस्रोत है, प्रस्तुत में द्रव्यअनुस्रोत की भांति भाव- अनुस्रोत बताया गया है। जैसे अनुस्रोतप्रस्थित काष्ठ की तरह जो सांसारिक जन इन्द्रियविषयों के स्रोत - प्रवाह में बहते जाते हैं, वे अनुस्रोतप्रस्थित हैं । प्रतिस्रोत का अर्थ है— प्रतिकूलप्रवाह, उलटी दिशा में बहना । प्रस्तुत में भाव - प्रतिस्रोत है —— शब्दादिविषयों के प्रवाह के प्रतिकूल गमन करना अर्थात् शब्दादिविषयों से निवृत्त होना । गाथा ५६२ में स्पष्ट बता दिया गया है कि अनुश्रोतगमन संसार का कारण है। यहां कारण में कार्य क उपचार करके संसार के कारण को 'संसार' कहा गया है। तस्स उत्तारो पडिसोओ—उस संसार से पार होना अर्थात् — प्रतिस्रोतगमन मुक्ति का कारण है। आसमो । अगस्त्यचूर्णि, जिनदासचूर्णि, पृ. ३६१ प्रतिस्त्रोत के अधिकारी सुविहियाणं आसवो ( आसमो) : पडिसोओ : आशय – सुविहित साधुओं के लिए इन्द्रियविजय (आश्रव) करना अथवा साधुदीक्षारूप आश्रय को स्वीकार करना प्रतिस्रोत है । पाठान्तर—

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