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दशवैकालिकसूत्र शिष्य ने पूछा-'भगवन् ! स्त्री से भय है, ऐसा न कह कर 'स्त्रीशरीर से भय है' ऐसा क्यों कहा?' आचार्य ने कहा—'आयुष्मन् ! ब्रह्मचारी को स्त्री के सजीव शरीर से ही नहीं, अपितु मृत शरीर से भी भय है, यह बताने के लिए ऐसा कहा गया है। शिष्य ने पुनः प्रश्न किया—'भगवन् ! विविक्त स्थान में स्थित मुनि के लिए किसी प्रकार दर्शनार्थ आई हुई केवल स्त्रियों को कथा कहने का निषेध करने का क्या कारण है ?' ।
आचार्य ने कहा—'वत्स, तुम यथार्थ समझो कि चारित्रवान् पुरुष के लिए केवल स्त्री, बहुत बड़ा खतरा है।' शिष्य ने पूछा-'यह कैसे भगवन् ?'
इसके उत्तर में आचार्य ने जो उत्तर दिया, वह इसी गाथा (४४९) में अंकित है। उसका भावार्थ यह है कि "जिस प्रकार (जिसके पंख न आए हों ऐसे) मुर्गे के बच्चे को सदैव बिल्ली से भय होता है, उसी प्रकार ब्रह्मचारी को स्त्री के शरीर से भय होता है।'
—दश्यावै. अ.८, गा. ४४१, जिन. चूर्णि, पृ. २९१