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दसमं अज्झयणं : स-भिक्खु दसवां अध्ययन : स-भिक्षु
प्राथमिक
0 दशवैकालिकसूत्र के इस दसवें अध्ययन का नाम 'स-भिक्खु' है, संस्कृत में इसके दो रूपान्तर
होते हैं—सभिक्षु और सद्भिक्षु । आधुनिक युग की भाषा में 'सच्चा भिक्षु' या 'आदर्श भिक्षु' कहा
जा सकता है। 0 भिक्षु का अर्थ भिक्षाजीवी या भिक्षाशील होता है। अर्थात् —जो किसी भी वस्तु को खरीद कर
या अग्नि आदि में पकाकर सेवन नहीं करता, किन्तु भिक्षा के द्वारा ही जीवननिर्वाह करता है, भिक्षा करके ही खाता है या अन्य उपकरण प्राप्त करता है। परन्तु इस अर्थ पर से आदर्श या सच्चे भिक्षु की पहचान नहीं हो सकती। इस अर्थ की परिधि में तो वे लोग भी आ जाते हैं, जो भीख मांग कर खाते हैं, भिखारी हैं, जो लोगों से गिड़गिड़ा कर, दीनता और दयनीयता का स्वांग करके भीख मांगते हैं। इसके अतिरिक्त कई अन्य सम्प्रदायों के भिक्षु या साधु भी आ जाते हैं जो—(१) भीख मांगकर तो खाते हैं, परन्तु स्त्री-पुत्र वाले हैं, आरम्भरत हैं। (२) भिक्षा करके तो खाते हैं, पर हैं मिथ्यादृष्टि, तथा त्रस-स्थावर जीवों का वध करने-कराने में जिन्हें संकोच नहीं है। (३) भिक्षा मांग कर खाते हैं पर संचय करते हैं, परिग्रह में त्रिकरण-त्रियोग से आसक्त हैं। (४) भिक्षा मांग कर खाते हैं, परन्तु सचित्तभोजी हैं, खाद्यवस्तुएं मांग कर लाते हैं, स्वयं पकाते हैं, अथवा उद्दिष्टभोजी हैं। (५) भिक्षा करके लाते हैं, परन्तु त्रिकरण-त्रियोग से स्वपर-उभय के लिए सावद्य-प्रवृत्ति करते हैं, सार्थक-अनर्थकदण्ड में प्रवृत्त हैं। इन और ऐसे ही भिक्षुकों को, जो कि याचक तो हैं, परन्तु अविरत हैं, सैद्धान्तिक दृष्टि से 'द्रव्यभिक्षु' कहा जा सकता है, 'भावभिक्षु' नहीं * नाम और रूप से एक सरीखा प्रतीत होने पर भी जैसे असली सोना, अपने गुणों के कारण नकली सोने से सदा पृथक् होता है, वैसे ही सद्भिक्षु अपने गुणों से पृथक् होता है। इसीलिए दशवैकालिक सूत्र में कहा गया है—गुणों से साधु हो, उसे ही साधु कहा जा सकता है। जैसे कसौटी पर कसे जाने पर जो खरा उतरता है, वही खरा सोना कहलाता है, वैसे ही नाम, रूप या वेष से अथवा बाह्य क्रिया से सदृश होने पर भी सद्भिक्षु के अन्य गुणों की कसौटी पर कसने से जो गुणों की दृष्टि से खरा नहीं
उतरता वह असद्भिक्षु कहलाता है। 0 भिक्षु के वे गुण कौन-से हैं, जिनके कारण सद्भिक्षु और असद्भिक्षु का अन्तर जाना जा सके ? इस
* 'जे भिक्खू गुणरहिओ भिक्खं गिण्हइ न होई सो भिक्खू ।'
–दशवै. नियुक्ति गाथा ३५६