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दशवैकालिकसूत्र
[४७३] इसी प्रकार जो औपबाह्य हाथी और घोड़े अविनीत होते हैं, वे (सेवाकाल में) दुःख भोगते हुए तथा भार-वहन आदि निम्न कार्यों में जुटाये हुए देखे जाते हैं ॥५॥ ___[४७४] उसी प्रकार जो औपबाह्य हाथी और घोड़े सुविनीत होते हैं, वे (सेवाकाल में) सुख का अनुभव करते हुए महान् यश और ऋद्धि को प्राप्त करते देखे जाते हैं ॥६॥
[४७५-४७६] उपर्युक्त दृष्टान्त के अनुसार इस लोक में जो नर-नारी अविनीत होते हैं, वे चाबुक आदि के प्रहार से घायल (क्षत-विक्षत), (कान, नाक आदि के छेदन से) इन्द्रियविकल, दण्ड और शस्त्र से जर्जरित, असभ्य वचनों से ताड़ित (डांट-फटकार पाते हुए), करुण (दयनीय), पराधीन, भूख और प्यास से पीड़ित होकर दुःख का अनुभव करते हुए देखे जाते हैं ॥ ७-८॥
[४७७] इसी प्रकार लोक में जो नर-नारी सुविनीत होते हैं, वे ऋद्धि को प्राप्त कर महायशस्वी बने हुए सुख का अनुभव करते हुए देखे जाते हैं ॥९॥ ___[४७८] इसी प्रकार (अविनीत मनुष्यों की तरह) जो देव, यक्ष और गुह्यक (भवनवासी देव) अविनीत होते हैं, वे पराधीनता-दासता को प्राप्त होकर दुःख भोगते हुए देखे जाते हैं ॥१०॥
[४७९] इसके विपरीत जो देव, यक्ष और गुह्यक सुविनीत होते हैं, वे ऋद्धि और महान् यश को प्राप्त कर सुख का अनुभव करते हुए देखे जाते हैं ॥ ११॥
विवेचन अविनीत और सुविनीत को इसी लोक में मिलने वाले फल प्रस्तुत ९ गाथाओं (४७१ से ४७९ तक) में अविनीत और सुविनीत की होने वाली प्रत्यक्ष दशा का वर्णन किया गया है।
अविनीत के लक्षण–गाथा ४७१ में अविनीत के ५ लक्षण दिये गये हैं जो अत्यन्त क्रोधी हो, जो अपना हिताहित न समझने वाले पशु के समान जड़बुद्धि हो, अहंकारी हो, कपटी हो, कुटिल या धूर्त (शठ) हो और विनय की ओर प्रेरित करने पर जिसका कोप भड़क उठता हो, वह अविनीत कहलाता है। ___ सुविनीत के लक्षण इसके विपरीत जो क्षमावान् हो, गम्भीर और दीर्घदर्शी हो, हिताहित-विवेकी हो, नम्र हो, सरल एवं निश्छल हो, जो अहर्निश गुरुशिक्षा को ग्रहण करने के लिए लालायित रहता हो. गरु द्वारा विनयभक्ति में प्रेरित करने पर उस प्रेरणा को जो सविनय शिरोधार्य कर लेता हो, वह सुविनीत कहलाता है।
अविनीत को मिलने वाला प्रत्यक्ष फल (१) अविनीत संसारसमुद्र में इधर से उधर थपेड़े खाता रहता है, (२) आती हुई विनयरूपी लक्ष्मी को ठुकरा देता है, (३) दासवृत्ति में लगे हुए दुःखानुभव करते हैं, (४) अविनीत स्त्री-पुरुष क्षतविक्षत, इन्द्रियविकल, दण्ड और शस्त्र से जर्जर, असभ्य वचनों द्वारा प्रताडित, करुण, परवश और भूख-प्यास से पीड़ित होकर दुःखानुभव करते देखे जाते हैं, (५) अविनीत देव, यक्ष और गुह्यक भी नीच कार्यों में लगाये हुए दासभाव में रहकर दुःखानुभव करते देखे जाते हैं।
सुविनीत को मिलने वाले प्रत्यक्षफल (१) सुविनीत घोड़े-हाथी महान् यश और ऋद्धि को पाकर सेवाकाल में सुखानुभव करते देखे जाते हैं, (२) इसी प्रकार सुविनीत स्त्री-पुरुष भी ऋद्धि और महायश को पाकर सुखानुभव करते देखे जाते हैं, (३) सुविनीत देव, यज्ञ और गुह्यक भी ऋद्धि और यश को पाकर सुखानुभूति करते